Wednesday, August 27, 2008

क्या अलग अंदाज़ है...

ये संस्मरण मैंने कुछ 5 महीने पहले लिखा था। उस वक़्त में मेरा ऑफ़िस नोएडा में हुआ करता था। ऑफ़िस तक पहुंचने के लिए मुझे शेयरिंग ऑटो का सहारा लेना पड़ता था। उस दौरान के मेरे कुछ अनुभव मुझे ज़िंदगी भर याद रहेंगे। ये उनमें से एक है।

क्या अलग अंदाज़ है...
हर काम को टाला करते हैं... ये सपने पाला करते है...
सुबह-सुबह रेडियो पर यही गाना सुना और दिनभर गुन-गुनाती रही। शाम को जब ऑफ़िस से रूम जाने को ऑटो स्टैण्ड पहुंची तो अचानक एक ऑटो अचानक मेरे आगे आकर रूका। चार बच्चे ऑटो से कूदे और एक साथ एक सांस में चिल्लाए - मैडम पटपड़???
मैंने कहा हाँ जाना है। चारों फिर एक साथ बोले - तो बैठो ना।
मैं जैसे ही बैठने लगी मेरी साथी ने कहा दूसरा ऑटो देख ले बच्चा 12 साल का भी नहीं है, ऑटो कैसे चलाएगा। वो फिर एक साथ बोले - चल जाएगा मैडम डेली चलता है।
मैं बैठ गई। चारों बच्चों के काम अलग-अलग थे। एक ड्राइवर था। समझदार, दुनियादारी समझनेवाला, उम्र से कुछ बड़ा व्यवहार करता हुआ। दो बच्चे आजू बाजू वाले ऑटो की सवारी खिंचने और हंसी मज़ाक में लगे थे। चौथा जो सबमें अलग था। उसका काम था सवारी को आवाज़ लगाकर बुलाना। वो ये काम बिल्कुल ठीक से नहीं कर रहा था। थोड़ा चिल्लाता और ऑटो में आकर बैठ जाता। ड्राइवर बच्चा फिर उसे डाँट लगाता और फिर वो जाकर सड़क पर खड़ा हो जाता। मासूम-सा बड़ी-बड़ी आँखों वाला। चारों अपनी मस्ती में थे। तब ही पुलिसवाले ने ऑटो पर ज़ोर का डंडा मारा और दो की गर्दन पकड़ी। दो ये नज़ारा दूर से देखकर ही भाग निकले और बाक़ी दोनों बच्चे भागे और जल्दी से ऑटो में कूदे और पुलिसवाले पर हंसते हुए ऑटो स्टार्ट कर दिया। अब ऑटो में ड्राइवर बच्चा और शांत बच्चा ही था। सिग्नल पर गाड़ी रूकी ऑटो के साइड में एक मिनी ट्रक रूका। धूल में सना हुआ। शांत बच्चा उस पर ऊंगली से रेखाएं बनाने लगा। मैं सोच रही थी कि बस यही कर सकता है लिखना शायद नहीं जानता होगा। तब ही उसने A बना दिया। मैं मन ही मन खुश हो गई। आगे जाकर और सवारियाँ ऑटो में चढ़ी और वो बच्चा उतर गया।
मैंने पूछा - तुम कहाँ बैठोगे?
वो कुछ नहीं बोला और सड़क किनारे चला गया। ऑटो चल दिया। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वो सड़क किनारे ज़मीन पर बैठा हाथों से कुछ लिख रहा था।
अचानक मन में आया - "क्या अलग अंदाज़ है..."

3 comments:

संगीता पुरी said...

आपके लेखन का भी एक अलग ही अंदाज है।

नीरज गोस्वामी said...

मार्मिक संस्मरण...बहुत असरदार ढंग से लिपि बद्ध किया है आपने..
नीरज

Udan Tashtari said...

वाकई जुदा अंदाज है!!