Friday, September 5, 2008

खोल दो... बोल दो...

कुछ दिन में हम पोस्ट करेंगे कि अब गर्मियाँ आ रही है मैंने ग्लिसरीन साबुन से नहाना छोड़ दिया है और सिंथाल अपना लिया है। फिर कमेंट आएंगे बहुत सही किया। फिर एक और कि ये गलत है। खुद को यूँ मौसम के साथ बदलना गलत है। आपकी खुद की कोई सोच नहीं। फिर एक कमेंट मैं दूसरेवाले कमेंट से सहमत हूँ। और ये बहस कुछ यूँ चलेगी कि फिर सर्दियाँ आ जाएगी। और एक पोस्ट फिर आएगा कि हम फिर ग्लिसरिन पर उतर आएं हैं। ये दौर है आत्मस्वीकारोक्ति का। यहाँ कुछ भी निजी नहीं है। हम बहुत बोल्ड हैं, हम बहुत आधुनिक हैं। अब हम सबकुछ दिखता है संस्कृति को अपना रहे हैं। चाहे वो ब्लॉग हो या टीवी।


हर जगह बस इसी का बोलबाला है। बिग बॉस इसका ताज़ा उदाहरण है। इस सीरियल का सिर्फ़ एक ही मोटो लगता है खोलो, खोलो और खोलो... मन की भड़ास निकालो, निजी से निजी बात की बखिया उधेड़ दो। बात तो यहाँ तक थी, कि एक स्ट्रगलिंग एक्टर ने इसमें आने की शर्त रख दी, कि वो तब ही आएगी जब उनके बाथरूम में भी कैमरा लगा हो।
लेकिन, बात यही तक सीमित रहती तो बात कुछ और होती। यहाँ आधुनिक होने का अर्थ है - खुलकर अपने निजी संबंध सबके सामने रख देना हो गया है। अपने निजी जीवन में आप किसके साथ क्या करते हैं, क्यों करते हैं, कैसे करते हैं। ये बातें बताना आधुनिक और खुल जाइए विचारधारा के अंतर्गत आता है। मन की सारी तथाकथित बुराइयों को ज़ाहिर कर दो। हर तरफ इस बात का शोर है कि मन को खोलिए, बोलिए। और हाँ अगर हिम्मत नहीं है सामने आकर कुछ बोलने की तो अनाम बनकर बोलो लेकिन बोलो। ये चलन है ब्लॉगिंग का। याने कि हम लोगों के मन की गंदगी या उस मन के चोर को देखना चाहते है बस। ये नहीं जानना चाहते कि वो कौन है और ऐसा क्यों सोच रहा है। ये बातें बहुत कुछ उलझाने वाली है। खुलने और बोलने की इस होड़ में कुछ भी निजी नहीं रह जाएगा। आपकी कोई ऐसी स्मृति नहीं रह जाएगी, जो सिर्फ़ आपकी हो। आपके उठने-बैठने, सोने-खाने से लेकर सारी बातें लोगों के सामने होगी। हर बात पर कमेंट आएगा।
मुद्दों पर बहस करना। अलग-अलग हिस्सों अलग-अलग सोचवालों की सोच को जानना मज़ेदार है। अनुभवों को सुनना और समझना भी मज़ेदार है। लेकिन मन की बातें। बेहद निजी सोच को सार्वजनिक कर, असहमति रखने वालों से वाक् युद्ध करना कुछ उलझन भरा है। कुछ दिनों पहले महिलाओं के लिए लिखा गया ज्ञानवर्धक लेख पढ़ा। लेख में लड़कियों को खुलकर बोलने के लिए प्रेरित किया जा रहा था। बोला जा रहा था - खुलकर बोलो जो बोलना है, सामने नहीं आना चाहती तो पर्दे के पीछे से बोलो। कितने प्रेमी थे कब-कब थे सब बोलो। जैसे कई मर्द बेधड़क होकर बोलते हैं तुम भी बोलो। उस लेख में ये भी कहा गया था, कि छात्राएं ज़्यादा बोले। क्योंकि उनके पास ज़्यादा मटैरियल होता हैं। वो सीखती भी है, तो शायद नौसीखिए की तरह गलती कर-करके। तो उस लेख के लेखक को लगा कि ऐसे अनुभव मसाला साथ लाएगें। पढ़कर लगा कि अब बोलना सिखाया जाएगा। फिर लिखा था कि नाम बदलकर अनुभव बताओ। बात कुछ उलझाने वाली लगी। ये क्या है अगर आप आधुनिक है आत्मस्वीकारोक्ति आपको फ़ैशनेबल लगती है तो डरते क्यों है? अगर आप ये सिखा रहे हैं कि बोलो तो ये क्यों साथ में सीखा रहे हैं कि नाम बदलकर बोलो या अपना नाम छुपाकर बोलो। अगर अनुभवों को जानने की प्रबल इच्छा रखते हैं तो ये भी तो जानिए कि वो कौन है और ऐसा क्या इतिहास है या भविष्य है उसका जो उसके साथ ऐसा हुआ या उसने ऐसा सोचा। बिना जाने किसी अनाम के रूपान्तरित अनुभवों पर कमेंट करना कुछ ऐसा ही होगा जैसे यूनिवर्सिटी के सामने लड़के किसी बस के काँच फोड़ रहे हो और आपने भी एक पत्थर फेंक दिया बिना जाने कि बात क्या थी। लेखक की छात्राओं के क्रांतिकारी अनुभव जानकर उन्हें अपने अनुरुप ढालने की इच्छा बहुत भयावह लगी। सोच को विकसित करने का ख्याल नहीं आया मन में? नारी उत्थान में पुरुषों की ये दिलचस्पी बेहद दिलचस्प लगी।

5 comments:

Unknown said...

acha likha aapne .badai

Rakesh Kaushik said...

theek likha hai parantu kahinkahin poori ki poori line hi miss hai thoda dyaan dijiye.

main aaj kal dekh rha hu ki har koi big boss par hi likh rha hai.

yahan bhi vahi add vala parchal shuru ho gya hai.


fir bhi aapne achcha likha
congratulation

Rakesh Kaushik

Dipti said...

आपकी सलाह के लिए धन्यवाद। असल में बिग बॉस के अलावा कोई और ऐसा सीरियल मुझे नज़र नहीं आया जिसमें फिलहाल ऐसी बखियाँ उधेड़ी जा रही हो।

Udan Tashtari said...

अच्छा आलेख!!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

दीप्ती जी,
......दरअसल ये कोई अनुभवों की पड़ताल थोड़े ही ना होती है,ये तो बस दूसरों को (मतलब लड़कियों को) उकसाकर उनसे रोचक बातें सुन-सुनाकर मज़ा लेने की प्रक्रिया होती है,असल में पुरूष इतना ज्यादा लम्पट बुद्दिमान है कि वो अपनी घटिया जुगुप्सा को आधुनिकता का जामा पहनाकर किसी भी बात को न सिर्फ़ स्त्रियों के हित की साबित कर देता है,बल्कि उसे स्त्री जात में स्वीकार्य भी करवा लेता है,मजा यह कि उसकी ऐसी इच्छाएं स्त्री भी बड़ी मासूमियत से पूरी कर देती हैं!!धन्य है पुरूष जाती !!