Thursday, December 25, 2008

पोस्ट को ख़ुद भी पढ़े और दस लोगों को पढ़ने के लिए भी कहें... नहीं तो...

आज रोज़ाना की तरह सुबह उठी और ऑफ़िस जाने की तैयारियों मे जुट गई। तभी मोबाइल पर एक मैसेज फ़्लेश हुआ। सोचाकि क्रिसमस का दिन है किसी का बधाई संदेश होगा। लेकिन, मैसेज था कि - 29 को साईं बाबा का जन्मदिन है। अगर आप उनका आशीष चाहते हैं तो ये मैसेज 12 लोगों को भेजे। अगर ऐसा नहीं किया तो कुछ बुरा भी हो सकता हैं। अगर भेज दिया तो शाम तक कोई अच्छा समाचार मिलेगा। मैसेज पढ़ते ही मन में आया कि जिस मेरी पढ़ी-लिखी मीडियाकर्मी दोस्त ने मुझे ये भेजा है उसे फ़ोन करके थोड़ा लताड़ लगाऊँ कि क्या इस तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा देती हो। फिर एक मन हुआ कि इस मैसेज को 12 बार उसी को भेज देती हूँ। परेशान होकर जब फोन करेगी तब ही बात होगी। बहरहाल मैंने दोनों में से कुछ भी नहीं किया, मैसेज डीलिट करके ऑफ़िस को निकल पड़ी। ये पहली बार नहीं है कि इस तरह के मैसेज आया हो। पहले भी ऐसे मैसेज आते रहे हैं। यहाँ तक की मेल पर भी गणपति या कृष्ण की तस्वीर के साथ ये लिखा होता था कि इसे 20 लोगों को 10 मिनिट में भेजे और चमत्कार होता देखें। बहुत चिढ़ होती है ऐसे लोगों से जो इस तरह के काम करते हैं। पढ़े-लिखे होकर, सही-गलत को समझते हुए भी इस तरह की हरकतें...
ऐसा ही एक मैसेज मुझे कॉलेज के दिनों में मेरी एक दोस्त ने किया था। मैं उस वक़्त भोपाल में माखनलाल यूनिवर्सिटी से मास्टर्स कर रही थी। वो मेरी सहपाठी थी। उसने मैसेज किया कि अगर आप अपने पिता से प्यार करते हैं, तो इस मैसेज को 10 लोगों को फ़ार्वर्ड करें। अगर ऐसा नहीं किया तो आपके पिता को कुछ भी हो सकता हैं। मैसेज पढ़ते ही मैंने रिप्लाई किया कि - मैं अपने पिता से बहुत प्यार करती हूँ, और साथ ही इस तरह के ढोकोसलों में यकीन नहीं। मुझे ये मैसेज किया ठीक है लेकिन किसी और को नहीं करें और ऐसे अंधविश्वास को बढ़ावा न दे। दोस्त का तुरंत रीप्लाई में सॉरी आ गया। इस तरह से अंधविश्वास और डर को फैलाने का ये महज एक आधुनिक तरीका है। पहले भी घर में संतोषी माँ और जगन्नाथजी के नाम के पोस्ट कार्ड पापा को फाड़ते देखा है। पापा हमेशा यही कहते है कि इन्हें बंद करने का केवल एक ही तरीका है कि हम इसे आगे न बढ़ाए। लेकिन, ये सभी आज भी ज़िंदा है, और तकनीकों के आधुनिक होने के साथ ये भी आधुनिक होते जा रहे हैं। अफसोस इन्हें फैलानेवाले कम पढ़े-लिखे या नादान लोग नहीं बल्कि सो कॉल्ड समझदार तबका हैं...

6 comments:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

अब तो एस एम एस की सुविधा है। कुछ साल पहले तक एक मित्र की प्रिंटिंग प्रेस में ऐसे बहुत से इंसानों से मुलाकात होती थी जो एक पोस्ट कार्ड के कारण घबराये हुए आते थे और वैसा ही संदेश 100-50 कार्डों में छपवा कर भेजना चाहते थे। मैं सबको यही कहता था कि यदि भगवान है तो वह इतना निर्दयी नहीं होगा कि इस तरह से उसका नाम ना लिये जाने पर वह खफा हो जाये। फिर भी संशय रखने वालों को समझाता था कि ठीक है मैं मना कर रहा हूं तो दंड़ भी मुझे मिलेगा आप निश्चिंत रहें। कुछ समझ जाते थे। कुछ किसी और जगह छपवाने चल देते थे।
आज अनहोनी का डर, असुरक्षा की भावना इतनी गहरी पैठ गयी है लोगों के मन में कि दिमाग हर बात पर आशंकित रहता है।

PD said...

आपकी बात पढ़कर मुझे भी कुछ याद आ रहा है.. मैंने एक टेंप्लेट बना रखा था ऐसे ईमेल और एस.एम.एस. के लिये.. और मैं ईमेल हमेशा रीप्लाई टू ऑल करता था, आज इतना तो जरूर है कि मुझे कोई उस तरह का मेल नहीं करता है..
अगर आपको भी वो टेंप्लेट चाहिये तो कहिये मैं फारवार्ड कर दूंगा या फिर आप अपना ही टेंप्लेट जैसा कुछ बना लें.. :)

G Vishwanath said...

पुराने ज़माने में पोस्ट कार्ड मिलते थे।
आजकल email/sms के जरिए फैलने लगे हैं।
हमने हर बार ध्यान नहीं दिया।
अब तक कोई आपत्ति नहीं आई।
It's just a harmless nuisance.
Learn to live with it.
Nothing can be done about it.
Regards
G Vishwanath, JP Nagar, Bangalore

Anonymous said...

ऐसे मेसेज आज मोबाइल पर आते है बहुत साल पहले जब ये साधन नही हुआ करते थे तब संतोषी माता के नाम के पोस्ट कार्ड आया करते थे उनमे भी आगे कुछ पोस्ट कार्ड लिखकर भेजने का अनुरोध हुआ करता था !

Anonymous said...

सुंदर लेख. एक बार हमारे पास भी आया. एक पढ़े लिखे व्यक्ति ने यह कहते हुए फॉर्वर्ड किया कि देखो लोग कैसी बेवकूफी करते हैं.
साँप भी मर जाए लाठी भी ना टूटे.

डा० अमर कुमार said...


अजी उस दिन का इंतज़ार है, जब ऎसे पोस्टकार्ड या संदेश नष्ट करने के प्रायश्चित का विधान हमारे पंडितजी लोग अविष्कृत कर लेंगे !