Friday, March 27, 2009

यही है आज की दुनिया का दस्तूर...

मैं जो कहने जा रहा हूँ.. आपके लिए शायद वो पुरानी या सामान्य बात हो सकती है... मेरे लिए भी है... फिर भी अहम् है.

कल सुबह दफ्तर से जहांगीरपुरी मेट्रो स्टेशन की तरफ जाते वक़्त हुए एक हादसे ने अभी तक मुझे सामान्य नहीं होने दिया है. सड़क पर आने जाने वालों की कमी नहीं थी. मेट्रो स्टेशन से करीब सौ मीटर की दूरी पर मेन रोड पर एक आदमी पूरी तरह आग की लपटों से घिरा हुआ बदहवास भाग रहा था. अचानक सामने आये उस आदमी को देख कर कुछ सेकंड तक तो मैं सन्न रह गया. लेकिन फिर उसे बचने की कोशिश में लग गया. पहले ही बता दिया की सड़क पर लोगों की कमी नहीं थी... लेकिन कोई भी सामने नहीं आया. मुझे समझ में नहीं आ रहा था की करू क्या..आग कैसे बुझाऊ. मैंने उस पर मिटटी डालनी शुरू की. आग इतनी तेज थी की उसके पास जाना संभव नहीं था. इस मिटटी से आग हलकी हो रही थी लेकिन बुझ नहीं रही थी. उस आदमी को जलते देख मेरी भी हालत ख़राब हो रही थी. सड़क के किनारे लोगों का जमावडा लगा हुआ था. बसे कारें रुक गई थी. लेकिन मदद के लिए कोई नहीं आया. संयोग से एक रिक्शे वाले ने अपनी सीट के नीचे से कम्बल निकाल कर दिया. तब जाकर किसी तरह आग को बुझा सका. इस बीच मैंने कई बार लोगो से आवाज लगाई, पुलिस बुलाने को कहा लेकिन सब तमाशाई बने रहे. आग बुझने के बाद मैंने पुलिस को फ़ोन किया. उस आदमी की किस्मत अच्छी थी की पुलिस और एम्बुलेंस तुंरत आ गई और उसे अस्पताल ले गई. इधर मैंने ऑफिस में भी खबर कर दी थी. उधर से पहला सवाल था जलते हुए फुटेज लिया या नहीं... इतनी देर से मैं मन ही मन वहां खड़े लोगों की ही कोस रहा था.. लेकिन उस सवाल के बाद मेरा दिमाग सन्न रह गया. कई पुरानी बाते याद आ गई. भोपाल में कॉलेज के ठीक बगल में बन रहे मेनहाल में गिर कर मर गए बच्चे के पिता से मेरे सहयोगी ने पूछा था..कैसा लग रहा है आपको... मुझे लगा अभी ये शख्स मेरे साथी की पिटाई कर दे तो क्या बुरा हो. दूसरी घटना तब की है जब मैं एक नामी प्रोडक्शन हॉउस में इंटर्नशिप कर रहा था. वो कई न्यूज़ चैनल्स को खबरे और प्रोग्राम बना कर देता था. काम के दौरान एक बार मैंने एक फ़ोन रिसिव किया. सामने वाला रो रो के कह रहा था की उसकी बेटी से किसी ने बलात्कार कर हत्या कर दी है. आप जल्दी से आइये... मैंने उस का पता ठिकाना नोट किया और अपने बॉस को बताया. उन्होंने पूछा प्रोफाइल क्या है. मैं उनकी बात समझ नहीं पाया. उन्होंने कहा वो आदमी करता क्या है ? मैंने कहा मजदूर है... सर की तरफ से मिले जवाब ने मुझे शून्य कर दिया. उनका कहना था की मामला बहुत लो प्रोफाइल है..खबर में जान नहीं आएगी. इन दोनों बातों ने मुझे झकझोर दिया था. फिर इतने दिनों बाद हुई इस घटना से वो बाते फिर आँखों के सामने आ गई. खैर तब तक वहा भीड़ जमा हो चुकी थी... तरह तरह की बातें..कयास.. उस आदमी के अस्पताल जाते ही मैं भी वहा से निकल गया. दिमाग में कई बातें कई सवाल घूम रहे है. कभी लगता है की मेरे सहयोगियों के सवाल भी अपनी जगह ठीक थे.. आखिर प्रोफेशंलिस्म तो इसे ही कहते है..कभी लगता है की थोडी इंसानियत भी जरूरी है. दूसरी तरफ इस वाकये के बाद इस बात का यकीन हो चला है की कल को मुझे राह चलते कुछ हो जाये तो मदद करने वाला कोई नहीं होगा. शायद यही दुनिया का दस्तूर हो गया है.

9 comments:

saket said...

इंसानियत के नाते आपने जो किया वो बिलकुल जायज है...शायद मैं भी होता तो यही करता...पर अफ़सोस की आप और हम जैसे लोगो की संख्या न के बराबर ही है ...दूसरी बात हमलोग जिस फिल्ड से जुड़े है उसमे लो प्रोफाइल खबरों के लिए कोई जगह नहीं है....इस फिल्ड में तो अब बस ख़बरों को मापने का एक ही पैमाना है और वो है टीआरपी ...फिर चाहे नाग नागिन का खेल दिखा दीजिये या फिर बिना ड्राईवर की चलती कार ...ऐसी खबरे जिनमे न तो अस्पष्टता होती है , न तो मौलिकता और न ही आम लोगो से इन खबरों का कोई लगाव होता है.

saket said...

इंसानियत के नाते आपने जो किया वो बिलकुल जायज है...शायद मैं भी होता तो यही करता...पर अफ़सोस की आप और हम जैसे लोगो की संख्या न के बराबर ही है ...दूसरी बात हमलोग जिस फिल्ड से जुड़े है उसमे लो प्रोफाइल खबरों के लिए कोई जगह नहीं है....इस फिल्ड में तो अब बस ख़बरों को मापने का एक ही पैमाना है और वो है टीआरपी ...फिर चाहे नाग नागिन का खेल दिखा दीजिये या फिर बिना ड्राईवर की चलती कार ...ऐसी खबरे जिनमे न तो स्पष्टता होती है , न तो मौलिकता और न ही आम लोगो से इन खबरों का कोई लगाव होता है.

MANVINDER BHIMBER said...

essa hi haota hai bade bade shahron mai

अनिल कान्त said...

आपमें इंसानियत आज भी जिंदा है

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हां भई, सडक पर बम विस्फोट हो तो कोई न्यूज कुछ घंटे तक ही दे सकेगा पर वही ताज में हो तो पांच दिन चलेगा....आई बात समझ में..:)

mediapariwar said...

dear bhuwan jee............
aapke sath hui ghatna ko bariki se pada.realy nice.....sabse acha laga ki apne aage badke uski help ki.....aur delhi ke tathakathit sambhrant logo ne iski jaroorat bhi nahi samjhi.........aapka ye zajba acha laga..................aur aaa=pke lekh ko pad ke laga ki main khud bhi kitna asurshit hun.na sirf main balki hum sab............hum media ke log logo ke haq ki ladai main unke sath hote hai but shayad hum bhi akele hi ho jate hai kabhi kabhi................aur news chnl wale inhe to bus.........footage chahiye.................realy dukh hua media ka ye rukh dekh ke..............................

mediapariwar said...

dear bhuwan jee............
aapke sath hui ghatna ko bariki se pada.realy nice.....sabse acha laga ki apne aage badke uski help ki.....aur delhi ke tathakathit sambhrant logo ne iski jaroorat bhi nahi samjhi.........aapka ye zajba acha laga..................aur aaa=pke lekh ko pad ke laga ki main khud bhi kitna asurshit hun.na sirf main balki hum sab............hum media ke log logo ke haq ki ladai main unke sath hote hai but shayad hum bhi akele hi ho jate hai kabhi kabhi................aur news chnl wale inhe to bus.........footage chahiye.................realy dukh hua media ka ye rukh dekh ke..............................

Pankaj said...

ये आज की बदलती हुई समाज की सच्ची हकीकत है. लेकिन लोग ये भूल जाते है की भागती दौड़ती हुई जिंदगी में कोई भी हादसा उनके साथ भी घट सकता है. और उस वक़्त दूसरे लोग उसी तरह तमाशा देखते रहेंगे-- जरुरत है की हमारा ज़मीर जिन्दा रहे. मुझे ये जान कर अच्छा लगा की मेरा दोस्त ने उन तमाशबिनो में शामिल नहीं था-- ये उन लोगों के चहरे पर एक करारा जबाब है जो सिर्फ दूसरों की और उंगली उठाते है

Unknown said...

आप का ये कदम प्रशंसनीय है देश मैं हो रही इस तरह की घटना एक उधाहरण है इस से भी बड़ी घटना हुई और होती है जैसे फूलन देवी के साथ सामूहिक बलात्कार....इत्यादि लेकिन किसी भी समस्या के मूल में जाने की जरुरत है.....आखिर देश की इस शासन तंत्र में ऐसा कियों हो रहा है ........इस आम आदमी का सुध लेने वाला कोई कियों नहीं है .........लोग तमाशबीन क्यों है ........