Wednesday, July 15, 2009

सच का सामना बकौल पैसे का खेल...

स्टार प्लस पर आज से शुरु होनेवाले रीयलीटी शो- सच का सामना को लेकर लोगों के बीच ऊपाओह शुरु हो चुकी है। टीवी, अख़बार, रेडियो और ब्लॉग सब जगह इसके आफ़्टर इफ़ैक्ट को लेकर चिंता है। सच का सामना की टैग लाइन में ये जताया जा रहा है कि सच केवल हिम्मतवाले ही बोल पाते है। ऐसे में अगर आप हिम्मती है तो आइए और कीजिए सच का सामना। लेकिन, विज्ञापनों में दिखाए जा रहे सभी सवाल सच सामने लाने से बढ़कर घर तोड़नेवाले या फिर रिश्ते बिगाड़नेवाले ज़्यादा लग रहे हैं। आज सुबह एक अख़बार में इसका फ़ुल पेज विज्ञापन था। उसमें लिखे कुछ सवालों में से एक मैंने अपने ऑफ़िस के कुछ साथियों से पूछे। इस मस्ती मज़ाक के बीच एक सवाल का जवाब गंभीर था। सवाल था कि क्या आपने कभी अपने माता पिता का अपमान किया है। मेरे साथी ने जवाब दिया कि ये तो बात पर और सोच पर निर्भर करता है। अब कई बार हमें ऐसा लगता है कि हमने कुछ ग़लत नहीं किया लेकिन माता पिता को बुरा लग जाता है। या फिर माता पिता की हर ग़लत बात तो हम सहन नहीं करेंगे।
हमेशा से ही हमे ये सीख दी जाती है कि हमेशा सच बोल और सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए। लेकिन, व्यवहारिक ज़िंदगी में ऐसा संभव नहीं होता। हम कई बार, कई लोगों से, अलग-अलग तरह के झूठ बोलते हैं। ऑफ़िस देर से पहुंचने पर ट्रैफ़िक का झूठ, ऑफ़िस में गप्पे लड़ाने के चक्कर में देर से घर पहुंचने पर काम के ज़्यादा होने का झूठ, पिक्चर देखने जाने के लिए कॉलेज में एक्सट्रा क्लास का झूठ या फिर और भी कई ऐसे झूठ। वैसे झूठ तो झूठ होते है फिर भी ऐसे झूठों को एक हद तक मासूम माना जा सकता है। लेकिन, कई झूठ धोखा भी होते है। जैसे कि एक रिश्ते में होते हुए भी किसी और के साथ संबंध, माता पिता से झूठ बोल संपत्ति पर अपना अधिकार जता लेना और भी कई ऐसे ही। कई बार गवाहों की झूठी गवाही ने मासूमों को सज़ा दिलवाई है। घर की शांति भंग करने में लगे लोग भी कई बार झूठ का सहारा लेते हैं। ऐसे में हरेक यही मानता है कि सच भले ही कितना भी कड़वा क्यों न हो लेकिन, उसे ही अपनाना चाहिए। आखिर शरीर को दुरुस्त रखनेवाली दवाइयाँ भी तो कड़वी ही होती है। लेकिन, कभी-कभी सच झूठ से ज़्यादा विस्फोटक हो सकता है। कई बार सच्चाई के चक्कर में लोगों ने नुक्सान उठाए है। ऐसे ही विस्फोटों से बचने के लिए लोग कहते है कि कभी-कभी किसी का दिल रखने के लिए झूठ बोल लेना चाहिए। या फिर कई बार सच बोलनेवाले से चिढ़कर लोग कह देते है- ये तो कलयुग का हरिशचंद्र है। इसे किसी बात में शामिल न करना सबके सामने सच बोल देगा। लेकिन, सच और झूठ से अलग एक तीसरी चीज़ भी है- चुप रहना कुछ न कहना। कई बार लोग अपने अतीत की कुछ गहरे रंग की सच्चाइयों को किसी से सांझा नहीं करते है। या फिर उनकी ज़िंदगी में चल रही किसी उथल-पुथल को चुपचाप ही सहते रहते है। अगर किसी से कोई दुर्भावना है या फिर कोई एतराज़ उसे ज़ाहिर ही नहीं करते हैं। ऐसे में इन बातों को सबके सामने ना लाना या फिर ऐसे लोगों से इसे सांझा ना करना जो इससे जुड़े है उसे क्या कहा जाएगा। क्या ये झूठ कहलाएगा। अब ये सवाल कि क्या कभी किसी और के साथ भी आपके संबंध रहे है इस सवाल का औचित्य क्या है। या फिर ये पूछना कि क्या आपने कभी धोखा देने के बारे में सोचा है ये किस तरह के सवाल हुए। इन सवालों के ज़रिए ही क्या सच जाना जा सकता है। सवाल और भी हो सकते है। मेरी एक दोस्त शादी लायक़ है उसकी माँ उसे हमेशा यही सलाह देती है कि कॉलेज के दिनों में तो हरेक इसांन को कोई न कोई पसंद आ जाता है, अफ़ेयर हो जाता है। लेकिन, आज वो कैसा है या आप कैसे हो ये मायने रखता है। अब शायद माँ की ऐसी सीख काम ना आए। खैर, ये सच का सामना कम मसालेदार टीआरपी घेरू शो ज़्यादा लग रहा है...

3 comments:

निर्मला कपिला said...

दीप्ती जी क्यों बेचारों के पेट पर लात मारती हैं ऐसे शो का सच सब को पता है् वैसे आपका सवाल सही है आभार्

कुश said...

इन सचो में नाटकीयता फुल रहती है.. कल रात ही देखा.. मूल वर्जन देख चूका हूँ.. इसलिए अधिक उत्सुकता नहीं रही..

neha said...

aapne is lekh ke jariye is show ko sach ka samna kara hi diya.....mera manana hai ki har ek ke liye sach uski soch se prabhavit hota hai...koi agar kamal ko gulaab samajhta hai to yahi uska sach hai aur koi ise uske liye jhoot nahi bata sakta....haan ye show kaiyon ka ghar to jaror barbaad karega.....pahli mahila ke saath sayad yahi hua hoga....