Friday, September 11, 2009

कुंडली मारकर बैठी कुंडलियाँ...


इंटरनेट पर घूमते हुए जयप्रकाश चौकसे का पर्दे के पीछे पढ़ा। आशुतोष गोवत्रीकर की नई फ़िल्म वॉट्स यूअर राशि के बारे में उन्होंने लिखा कि एक ही राशि के होते हुए भी दो इंसान एक से नहीं होते। भगवान कोई फ़ोटो कॉपीयर मशीन नहीं है जोकि एक से कई छाप दे। ये बात सही भी है कि सृष्टि में मौजूद हरेक वस्तु अलग-अलग है, हरेक की अपनी एक पहचान है। किन्हीं भी दो इंसानों के अंगुली के निशान भी कभी आपस में नहीं मेल खाते हैं। ऐसे में राशि के मुताबिक़ लोगों को एक सांचे में ढ़ाल देना कहाँ तक ठीक हुआ। खैर, फ़िल्म कैसी होगी ये कहना मुश्किल है। लेकिन, ये फ़िल्म हमारी भारतीय मानसिकता को ज़रूर दर्शाती है। कुंडली का मिलान हमारे समाज में (ख़ासकर हिन्दू) इतना ज़रूरी है कि उसके आगे और कुछ नहीं। मेरे घर में ही मेरे बड़े भाई के लिए लड़की खोजी जा रही है सबसे पहली चीज़ जो मेरे घरवाले मांगते है वो कुंडली होती है। बाक़ी सब बाद की बात होती हैं। कुंडली के मिलान से ये बताया जाता हैं कि दांपत्य जीवन कितना सुखी बीतेगा। ये बात अलग है कि आसपास ऐसे कई उदाहरण मौजूद है जिनकी कुंडली मिलान से शादी तो हुई लेकिन, चली नहीं। कई बुज़ुर्ग कुंडली की महिमा सीना फुलाकर सुनाते हैं। कहते हैं कि देखो मिलान कर शादी की थी सो अंत तक टीकी रही। लेकिन, इस बारे में मेरी सोच कुछ अलग है। पहले के समय में शादी के न टूटने की वजह समाज और परिवार का दबाव होता था। मेरे घर में ही ऐसे उदाहरण मौजूद है जहाँ शादी को 30 साल होने को आए लेकिन, पति-पत्नी में कभी प्रेम नहीं रहा। या फिर ये कि केवल परिवार के दबाव में बच्चे पैदा किए गए। लड़की न चाहते हुए भी ससुराल में ज़िंदगी काटती रही। कुछेक तो मार भी दी गई। ऐसे मौक़े पर सुना जाता है कि शादी टूटी तो नहीं लड़की के भाग्य थे कि सुहागन मर गई। आज के दौर में बच्चे के जन्म का एकदम सही वक़्त बताना आसान काम है। मेरी बहन के दोनों बच्चे तो पंडितजी के बताएं समय पर पैदा करवाए गए हैं। लेकिन, पहले के समय में जब माता-पिता को बच्चों की जन्म तिथि तक याद नहीं रहती थी ये कुंडलियाँ बनती कैसे थी। अंदाज़ से ही भाग्य तय किए जाते थे और फिर उसे ढोने के लिए लोगों को मज़बूर किया जाता था। ये वक़्त प्रेम विवाह का है। अब कोई कुंडली देखकर तो प्यार करता नहीं है। ऐसे में जो बिना कुंडली के मेल शादी कर ली तो परिवार के मन में कुछ अपशगुन की धुकधुकी लगी ही रहती है। और, नहीं तो कुंडली के दोषों को दूर करने के लिए हवन पूजा। जैसे कि कुत्ते या फिर पेड़ से शादी... कई बार लगता है कि इंसान कितना मतलबी होता हैं। जब उसे न करना होता है तो वो इसी कुंडली के सहारे मनाकर देता हैं और जब करना होता है तो दस प्रपंच करके उसे घुमा देता हैं। उम्मीद है कि वॉट्स यूअर राशि कुंडली मारकर बैठी इन कुंडलियों की सोच पर चोट करेंगी...

13 comments:

श्यामल सुमन said...

चर्चा अच्छी लगी और आपके विचार भी। हर रविवार को अक्सर प्रायः हर अखबार में साप्ताहिक राशिफल निकलता है। आप किसी भी रविवार को किसी एक राशि का साप्ताहिक राशिफल अलग अलग अखबार में देखें तो काफी भिन्न मिलेगा और कभी कभी विपरीत भी।

संगीता पुरी said...

सचमुच ज्‍योतिष विषय इतना छिछला नहीं .. जितना इसे प्रचारित कर दिया गया है .. कुंडली मिलान के लिए मेरा एकवैज्ञानिक आलेखपढें .. आशा करती हूं .. इस फिल्‍म के माध्‍यम से समाज से ज्‍योतिषीय भ्रांतियों को दूर करने में मदद मिलेगी !!

bhawna said...

pata nahi kundali to ram aur seeta ki bhi milai gai thi(aisa suna hai) aur kya hua ye sab jaante hain! rahi film ki baat to film sirf manoranjan hai aur kuchh nahi (kabhi kabhi manoranjan sang siksha bhi dikh jaahai)

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

कितना महत्वपूर्ण है--विवाह पूर्ण कुण्डली मिलान

संजय तिवारी said...

आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.

Harshvardhan said...

nice post.......

Harshvardhan said...

nice post.........

शिवम् मिश्रा said...

एक जागरूक परिवार की सदस्य होने पर आपको बहुत बहुत बधाई !

शिवम् मिश्रा said...

"इंटरनेट पर घूमते हुए जयप्रकाश चौकसे का पर्दे के पीछे पढ़ा। आशुतोष गोवत्रीकर की नई फ़िल्म वॉट्स यूअर राशि के बारे में उन्होंने लिखा कि एक ही राशि के होते हुए भी दो इंसान ...... से नहीं होते।"

'एक' missing है।


बाकी का पूरा लेख जबरदस्त प्रहार करता है कुंडलीयो पर जो सच में कुंडली मारे बैठी है |
एक बढ़िया लेख के लिए बहुत बहुत बधाई हो |

शिवम् मिश्रा said...

संजू जी,
अब तो शक होने लगा है कि आप क्या सच में पूरा लेख पढ़ते है या केवल टिप्पणी कॉपी - पेस्ट करते है ? लगभग हर ब्लॉग में आप की येही टिप्पणी होती है :-
"लेखनी प्रभावित करती है" या फिर "आपकी लेखन शैली का कायल हूँ"
मामला समझ के परे है, भाई |

Kindly check the given link for verification of the above statement.

http://burabhala.blogspot.com/2009/09/911.html?showComment=1252676474981#comment-c1311390002671756215

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

ऐसे में राशि के मुताबिक़ लोगों को एक सांचे में ढ़ाल देना कहाँ तक ठीक हुआ........ thik kaha apne.....


waise bhi jyotish ek s cience hai.......

na ki koi bhavishya batane ki machine.........

bahut hi oomda lekh.....

Unknown said...

अच्छा उदाहरण दिया है... भगवान कोई फोटोकॉपियर मशीन थोड़े ही है... की कुंडली के हिसाब से फोटोकॉपी निकलता रहे...
अच्छा लिखती हैं आप... शुभकामनायें.....!!!

http://nayikalam.blogspot.com/

Sanjay Grover said...

किसी शहर पर जब बम बम गिरता है या सुनामी आती है तो वो किसी के हाथकी रेखाएं नहीं देखती।

कहते हैं कि ओशो रजनीश के पास एक बहुत बड़े ‘भविष्य-टैलर’ को लाया गया। रजनीश ने पूछा कि क्या तुमने अपना आज का भविष्य देख लिया है ? अच्छा मेरा भविष्य बताओ ! बताओ कि अगले पांच मिनट में मैं तुम्हारे गाल पर चांटा मारुंगा कि नहीं मारुंगा ? और मैं तुम्हे पहले ही बता दूं कि अगर तुम कहोगे कि मारुंगा तो मैं नहीं मारुंगा। कहोगे कि नहीं मारुंगा तो मारुंगा।
अब ‘भविष्य-वाचक’ कहे कि ई कहां फंसा दिए हमको !? दक्षिणा देओ और हमका जाने देओ। रजनीश कहे कि ‘दक्षिणा’ ! सुबह हाथ नहीं देखे थे क्या अपना ? नहीं मालूम कि दक्षिणा नहीं मिलने वाला है आज !?
अपना आज नहीं मालूम ! हमारा कल कैसे देखोगे, भाई !?

ab in ........ se kya kaha jaye !?