Tuesday, January 19, 2010

मेरी-सी लड़कियाँ...

नए साल की शुरुआत में सोनी पर वॉयआरएफ़ टीवी की शुरुआत हुई हैं। सप्ताहांत के प्राइम टाइम के स्लॉट यशराज ने शायद खरीद लिए हैं। इन नए सीरियलों को देखने पर जो सबसे पहली बात नज़र आती हैं वो है इनकी बेहतर क्वालिटी। खैर, इससे भी ज़्यादा जो मुझे भा रहा है वो है दो सीरियलों का कॉन्सेप्ट। पहला है- माही वे। दिल्ली में रहनेवाली और एक मैगज़ीन में कॉलम लिखनेवाली माही 25 साल की है। आधुनिक है। उसके पास सब कुछ हैं। और जो नहीं है वो है ज़ीरो साइज़ फ़ीगर। माही क्यूट है, काम करने में तेज़ है, उसके दोस्त भी हैं। लेकिन, उसका कोई बॉय फ़्रेन्ड नहीं हैं। माही की ज़िंदगी का वन पॉइंट ऐजेन्डा ही है सपनों का राज कुमार ढ़ूंढना। नेवर बीन किस्ड माही इस फ़्रसटेशन में है कि क्यों उसका कोई बॉय फ़्रेन्ड नहीं हैं। दरअसल ये हमारी आज की असलियत हैं। ये एक ऐसी असलियत है जोकि हमारी पीढ़ी जानती हैं लेकिन, हमसे ऊपरवाली इससे बेख़बर सी हैं। हमारी पीढ़ी में भी जाननेवाले इसे खुलकर स्वीकार नहीं करते हैं। माही में वो हर लड़की ख़ुद को देख सकती हैं जोकि आज के नियमों के अनुसार सुन्दर नहीं हैं। जिस परेशानी में माही है वो परेशानी लगभग हरेक लड़की झेल रही हैं। ये बात अलग है कि वो खुलकर इसे किसी के आगे बयां नहीं करती हैं।
ऐसा ही है दूसरा सीरियल- रिश्ता डॉट कॉम। इस सीरियल में दो युवा मिलकर एक ऐसी कंपनी चलाते हैं जिसमें लोगों की शादियां करवाई जाती हैं। प्राफ़ाईल आधुनिक तरीक़े से मैच होते हैं और दोनों को मिलने के मौक़े भी दिए जाते हैं। इस सीरियल में जो सबसे अहम हैं वो इन युवाओं का प्रोफ़ाइल। लड़की 27 साल की है। दिनभर काम करती हैं। उसका भी कोई बॉय फ़्रेन्ड नहीं हैं और न ही वो अभी इस तरह के रिश्ते में बंधना चाहती हैं। अपने करियर में व्यस्त ये लड़की दूसरों की ज़िंदगी का अकेलापन तो दूर करती हैं लेकिन, उसे ख़ुद का अकेलापन नहीं खलता हैं।
ये दोनों ही सीरियल मुझे इसलिए पंसद हैं क्योंकि इन दोनों ही लड़कियों में मुझे मेरी झलक नज़र आती हैं। मेरी सोच भी कई मायनों में ऐसी ही हैं। मेरी उम्र समाज के नियमों के मुताबिक़ शादी करने की हो गई हैं लेकिन, मुझे इस वक़्त इसकी ज़रूरत महसूस नहीं होती। आज के समय में लड़का ही नहीं लड़की भी अपने करियर को एक मुकाम तक पहुंचा चाहती हैं ये बात शायद सभी को समझाने की ज़रूरत हैं। शादी के मुद्दे पर जाति या परिवार के स्टेटस से ज़्यादा अहम लड़के और लड़की की सोच का मिलना है ये बात कम ही मानते हैं। यशराज की कुछ साल पहले की फ़िल्मों पर नज़र डाले तो ये साफ़ नज़र आता हैं कि उन फ़िल्मों में लड़कियाँ कभी 19 से ज़्यादा नहीं होती थी लेकिन, इनके इस सीरियलों की मेन लीड लड़कियाँ 27 साल की हैं। यशराज ने ख़ुद को बदला हैं। देखते हैं हम कब बदलेंगे।

3 comments:

Murari Pareek said...

सुन्दर प्रतिक्रिया !!

डॉ .अनुराग said...

पता नहीं मुझे क्यों इंट्यूशन हुआ था के आप इस पर जरूर लिखेगी.......वैसे अभी दो एपिसोड तक एकदम धांसू है..एक दम ढक चिक.....उम्मीद है न भटके ..क्यूंकि क्वालिटी मेंटेन करना मुश्किल है ....पर इससे टी.वी के कंटेंट सुधरेगे ...

दीपक 'मशाल' said...

Muafi chahta hoon magar mujhe to ye serial palle hi nahin padte... sivaye bhavnaon ke dohan ke kuchh nahin karte.
samaaj ko sandesh to dene se rahe.. ulta bewajah ka tanaav badhate hain... aakhir kab koi 'Malgudi days', Sinhasan battisi aur tamas jaisa serial aayega... abhi kuchh saal pahle yuvaaon ki samasyaon ko leke Campus aur Teacher serials aaye the ab wo bhi nahin..
lagta hai mujhe hi ye line chhod ke wapas aana padega apni pasandeeda dunia me.. :)
Jai Hind...