Tuesday, December 18, 2012

शादी: एक परम सत्य


आधुनिक इंसान दो तरह से होता है। पहला अपने पहनावे, रहन-सहन और बोलचाल से। और, दूसरा अपनी सोच से। ये बात तो तय है कि लोग ऊपरी तौर पर धड़ाधड़ आधुनिक होते जा रहे है। लेकिन, सोच के बारे में वो सोचना भी नहीं चाहते है। लोगों की इसी सोच को धारावाहिक भी कैश करने पर तुले हुए है। धारावाहिक किसी भी मुद्दे या सोच के साथ शुरु हुआ हो उसका अंत किसी ढकियानूसी सोच पर जाकर ही होता है। फिलहाल सबसे ज्वलंत मुद्दा है- शादी। बाल विवाह के मुद्दे से शुरु हुआ बालिका वधू। कई क्रांतिकारी परिवर्तनों और हालातों से गुज़रते हुए फिलहाल शादी पर आकर अटक गया है। आनंदी कितनी भी मज़बूत दिमाग और हृदय की क्यों न हो, उसका साथ देनेवालों को फिर भी शादी का होना ही परम सत्य लगा। कलर्स पर फिल्मी दुनिया के चित्रण के साथ शुरु हुआ मधुबाला भी शादी के ट्रेक पर चल पड़ा है और सोनी पर शुरु होनेवाला नया धारावाहिक तो शुरु ही होनेवाला है शादी और ससुराल के विषय से। इस तरह के कार्यक्रमों को मिलनेवाली टीआरपी लोगों के मनोविज्ञान को समझाती है। लड़का या लड़की कितना भी पढ़-लिख ले, कहीं भी नौकरी करने लगे, कितना ही सफल क्यों न हो जाएं सामाजिक रूप से वो तब ही सफल है जब वो शादी कर लेता है। अगर तीस के पार होते हुए भी आप शादीशुदा नहीं है तो लोगों के सवाल आपकी शादी तक ही सीमित होने लगते है। आपकी सफलता, खुशहाल ज़िंदगी सबकुछ उन्हें फीकी लगने लगती है। शादी ना करना उन्हें शादी का न होना लगने लगता है। किसी व्यक्ति का अकेले रहने का फैसला मन में अजीब-अजीब सवाल उठाने लगता है। किसी को लगता है कि किसी के चक्कर में है, किसी को लगता है कि दिल टूट गया है, तो किसी को लगता है कि उसमें कोई मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट है तो किसी को कुछ और... दरअसल हमारे समाज को तीस पार किसी को अकेले और खुश देखने की आदत नहीं है। अकेले भी अपनी पसंद और मर्ज़ी से ज़िंदगी जी जा सकती है ये विचार लोगों को हजम नहीं होता है। बार-बार लगातार उस इंसान की स्केनिंग की जाती है। उसके गुस्से, उसके प्यार, उसके चलने, उसके खाने सब कुछ को शादी से जोड़कर देखा जाता है। अगर कम खाया तो शादी न होने की वजह से... अगर ज्यादा खाया तो शादी न होने की वजह से... और, अगर ऐसे में कोई दो इंसान बिना शादी के साथ रहने का फैसला कर ले तब तो और बवाल। बिना शादी के अपनी पसंद से, साथ होते हुए भी बिना किसी ज़िम्मेदारी के रिश्ता निभाना आज भी मज़े लेने की कैटेगरी में ही आता है। कई बार ऐसा महसूस होता है कि शादी ही ज़िंदगी का एक परम सत्य है। और, अगर आपको इस सत्य का ज्ञान नहीं है तो या तो आप इंसान नहीं है और है तो आपको समाज की परवाह नहीं है...     

1 comment:

rashmi ravija said...

बहुत सही लिखा है दीप्ति ,
सीरियल वाले इस सोच को बढ़ावा ही दे रहे हैं कि शादी ही परम सत्य है।
कोई लड़की या लड़का अपनी मर्जी से अकेले रहने का फैसला कर ले तो हज़ार शंकालु निगाहें उनका जीवन दूभर कर देती हैं।