एक ही बोगी में अलग-अलग चेहरे नज़र आते हैं। एक
सी लगनेवाली, एक ही बोगी में चढ़नेवाली, एक साथ सफर करनेवाली और आसपास ही काम
करनेवाली ये सवारियाँ एक-दूसरे से एकदम अलग मालूम होती हैं। वो दोनों भी तो नोएडा
के किसी स्टेशन से चढ़ती हैं और बाराखम्बा उतरती हैं। समय भी लगभग एक ही है।
सुबह-सुबह जाना और देर शाम की वापसी... एक को देखकर मन में आता है कि पूछूँ कितने
बजे उठ जाती हो? उसके ना सिर्फ़ कपड़े मैचिंग के होते है बल्कि
वो नेल पॉलिश भी मैचिंग की लगाती है। कभी कुर्ते के बॉर्डर की तो कभी शॉल के रंग
की... वो इतनी फ्रेश लगती हैं जैसे बस स्पा से निकलकर आई हो। उसे देखकर लगता है कि
या तो घर में खूब सारे नौकर होंगे या वो किसी पीजी में रहती होगी। सुबह उठकर खुद
को संवारने का समय मिल जाना बहुत बड़ी बात है। वहीं दूसरी को देखकर लगता है कि
क्यों आ गई यार... थोड़ी देर और आराम कर लेती... एकदम थकी हुई। कभी-कभी अपने बैग
से फॉइल में लपटा हुआ परांठा तोड़-तोड़कर खाती नज़र आती है। वैसे तो मैट्रो में
खाना मना है लेकिन, उसे देखकर लगता है कि पूछ लूँ कि क्या पानी पियोगी? यूँ
ही तुम सूखा परांठा खा रही हो। ना जाने अब कब कुछ खा पाओ... लगभग एक ही उम्र, एक
ही रास्ते, एक ही मंज़िल की ओर चल रहे इन दो चेहरों के बीच का अंतर बहुत साफ़ दिखाई
दे जाता है। कैसे एक सी दिखनेवाली ये मैट्रो सवारियाँ अपने-अपने सफ़र तय करते मिल
जाती हैं...
1 comment:
Aasani se dikh jata hai safar mein logon ka antar, sath chalne wale kahin anjaan nhi hote.
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