Monday, June 16, 2014

हौसलों की मिसाल: आर अनुराधा

जबरन सौंपे गए काम को हर कोई बेमन से ही करता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था जब मुझे अचानक ही हौसलों की उड़ान नाम के साप्ताहिक कार्यक्रम का कार्यभार सौंपा गया था। तब मैं सुर्खियों से परे कर रही थी और उसके साथ एक और कार्यक्रम मेरे लिए बोझ के समान था। खासकर शूट पर जाना वो भी पूरा दिन सर्दी-गर्मी देखें बिना और फिर किसी अनजान के साथ पूरा दिन बिताना। खैर, शुरुआती एक-दो शूट के बाद के ही मैं ये समझ गई थी कि ये कार्यक्रम सामान्य नहीं। हम जहाँ ज़रा-सी चोट से घबरा जाते हैं। वहाँ शारीरिक या मानसिक रुप से अक्षम व्यक्ति के साथ दिन बिताना और ये समझना कि कैसे उसने अपनी अक्षमता को अपनी हिम्मत बना लिया सुखद था।

हौसलों की उड़ान के सिलसिले में ही मैं आर अनुराधा से मिली थी। कैंसर से अपनी लड़ाई लड़ रही अनुराधा मेरे लिए चौंकानेवाली शख्सियत थी। मैं पूरा दिन उनके साथ रही। उनकी बिमारी और उनकी निजी ज़िंदगी के बारे में कई सारे सवाल किए। अनुराधा ने मेरी हरेक बात का स्पष्ट और बिना किसी उलझन के जवाब दिया। कई सवाल जो मैंने झिझक में नहीं पूछें उनके जवाब भी उन्होंने खुद दे दिए थे। कैंसर जैसी बिमारी से इस तरह हिम्मत के साथ लड़ना कोई आसान काम नहीं। मैं अपने परिवार में कइयों को इससे मरते देख चुकी हूँ। कई इससे अभी-भी जूझ रहे हैं। लेकिन, इतना खुलकर कोई इस पर बात नहीं करता। आर अनुराधा वो पहली शख्स थी जो इस पर बातें करती थी, लिखती थी, लोगों को समझाती थी।

हौसलों की मिसाल: आर अनुराधा 
इस मुलाकात के कई साल बाद फिर शूट के सिलसिले में मैं उनसे मिली। वो मुझे पहले से कमज़ोर दिखी। मैंने पूछा तो बोली कैंसर ने एक बार फिर घेर लिया है। मैं आगे कुछ नहीं बोल पाई। लेकिन, उनके उत्साह में बिमारी के चलते कोई कमी नहीं आई थी। उस दिन वो मेरे साथ सेल्फ डिफेन्स कैंप में भी गई थी। वो देखना चाह रही थी कि हम वहाँ क्या शूट करेंगे। क्या सवाल करेंगे।

वो हमेशा मुझसे शूट के बारे में बात करती थी। कैसे एपिसोड बनाओगी, किस-किस से और बात करोगी, क्या सवाल करोगी... ऐसे कई सारे सवाल। बीच-बीच में वो मुझे कुछ दिलचस्प स्टोरी भी भेजती रहती थी। मुझसे कहती कि इस पर कार्यक्रम बनाओ अच्छा बनेगा।

मेरी उनसे आखिरी मुलाकात भी उन्हीं के सुझाए शूट पर हुई थी। उस दिन हम एम्स में पिंक अक्टूबर पर हो रहे सेमिनार को शूट करने गए थे। वहाँ कैंसर से लड़ रही कई महिलाओं से मैं मिली थी। अनुराधा उस दिन कुछ देर से वहाँ पहुंची थी। मैं उन्हें पूरे दस महीने बाद देख रही थी। वो बहुत कमज़ोर नज़र आ रही थी। उस दिन मैंने उन्हें पहली बार भावुक होते देखा था। अपने डॉक्टर्स को धन्यवाद देते हुए वो रो पड़ी थी। लेकिन, इसके बाद वो फिर सामान्य थी। पूरे वक्त मेरे साथ थी। देख रही थी मैं क्या शूट कर रही हूँ। किस से और क्या सवाल पूछ रही हूँ। वो हमेशा बहुत उत्साही रहती थी।


अब जब वो नहीं हैं तो मेरे मन में बार-बार उनकी हिम्मत के साथ-साथ दिलीप मंडल का संयम भी घूमने लगता है। अनुराधा पर जब मैंने हौसलों की उड़ान कार्यक्रम बनाया था तब उनका भी इंटरव्यू लिया था। जिस तरह से वो हमसे अनुराधा कि बिमारी के बारे में बात कर रहे थे लगा ही नहीं कि वो कभी परेशान भी हुए होगें। बहुत ही शांत और संयमित तरीके से हर बात का जवाब दिया। लगभग 18 साल अनुराधा ने कैंसर के साथ लड़ाई लड़ी थी। लेकिन, ये लड़ाई वो अकेले नहीं लड़ रही थी। दिलीप और उनका बेटा इस लड़ाई में उनके सेनापति थे। 
   मेरी नज़रों में वो पूरा परिवार ही हिम्मत, साहस और संयम की मिसाल है। उन तीनों ने मिलकर ज़िंदगी की हर विपरित परिस्थिति को अपने सामने प्यार से घुटने टेकने पर मज़बूर कर दिया था। आर अनुराधा एक योद्धा थी जो पूरी ज़िंदगी डटकर कैंसर के खिलाफ़ अपने युद्ध को लड़ती रही और, कैंसर को हराकर ही शहीद हुई है... 

2 comments:

अनूप शुक्ल said...

आर. अनुराधा वाकई हौसले की मिसाल थीं !

Unknown said...

Hauslon ki udaan!!!!!!!!!!!!!!