Friday, August 22, 2008

बरसता बादल...

नीरद जनवेणु


"सारे जग का दर्द समेटे बरसा बादल
झूम-झूम और टूट-टूट कर बरसा बादल...
धरती पर फैली हिंसा और पापों को धोने बरसा बादल...
गुस्से या फिर प्यार में पागल...
एक ताल में उमड़-घुमड़ के...
जी भर के बरसा बादल..."

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