Monday, August 25, 2008

गुमशुदा की तलाश...

ट्रैफ़िक पुलिसवाले की!

दिल्ली के चौराहों पर जहाँ हर वक़्त ट्रैफ़िक जाम होता है, वहाँ खड़े ट्रैफ़िक पुलिस अधिकारी कहीं गायब हो गए हैं। अगर वो ये पढ़ रहे हो, तो जल्दी ही चौराहों पर लौट आए। यहाँ फंसे यात्रियों का उनकी याद में रो-रोकर बुरा हाल हैं। बस में ठूंसे लोगों ने तो सांस भी लेना बंदकर दिया हैं और लटके लोग चारों तरफ बस आपको ही खोज रहे हैं। जल्दी से जल्दी लौट आओ। अब आपको कोई बुरा-भला नहीं कहेगा, जितना पैसा मांगोगें मिलेगा...

सफाई कर्मचारी की!


तलाश है दिल्ली नगर निगम के सफाई अधिकारियों की। जब से तुम गए हो सांसें रुक गई हैं। अब तो महीनों बीत गए हैं तुम्हें देखें। महोल्ले के कूड़े के ढेर कुछ यूँ बढ़ रहे हैं कि कुछ दिन में कुतुब मीनार से ऊंचे हो जाएंगे। प्लीज़-प्लीज़ लौट आओ। तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। दो दिन तक कूड़ा ना उठाने पर भी हम कुछ नहीं कहेंगे। तुम्हें होली-दीवाली क्या खानदानवालों के जन्मदिन पर भी इनाम देंगे। तुम बस लौट आओ...

डीटीसी बस की!


तुम यूँ मुझे इतनी जल्दी छोड़कर चली गई? थोड़ा तो और साथ निभाती। आ जाओ जहाँ भी। तुम्हारे बिना मैं रात को आठ बजे ऑफीस से रूम कैसे जाऊंगी? कहाँ चली गई मेरी डीटीसी बस। बस आठ बजे है अभी। आ भी जाओ। इतना भी क्या सितम करती हो, जानती तो हो ना तुम दिल्ली के ऑटो को। वो वहाँ थोड़े ही जाते हैं जहाँ मुझे जाना है, वो तो वहाँ ले जाते हैं जहाँ उन्हें जाना हैं। इससे पहले की मेरी हम्मत टूटे लौट आओ...

1 comment:

Rakesh Kaushik said...

aji bahut hi achcha likha hai aapne.

aaapke is vyang ne hmare bhi jakhmo ko ched diya hai.
bahut hi achcha.