Monday, September 8, 2008

स्त्री: गालियों के संसार की जननी???

महिलाएं वीकर सेक्स होती है। उनके उत्थान के लिए आरक्षण बेहद ज़रूरी है। महिलाएं इसके लिए लड़ भी रही हैं। ये लड़ाई बस में महिला सीट से लेकर संसद में महिला आरक्षण तक ज़ारी है... लेकिन, इन सब के बीच एक ऐसा संसार है जो महिलाओं को ही समर्पित है। ये है गालियों का संसार...

मेरे कानों में पड़ने वाली, मेरी जानकारी के दायरे में आनेवाली लगभग सारी गालियाँ कही ना कही महिलाओं को ही केन्द्र में रखती हैं। बहन... और मादर... तो अब यूनिवर्सली एक्सेप्टेट गालियाँ बन चुकीं हैं। वही साला तो अब कइयों का तकिया कलाम बन चुका है। लड़ाई कही होती है, लड़ता कोई है। लेकिन, गालियाँ खाती है स्त्रियाँ। लगभग सारी गालियाँ स्त्रियों के चरित्र को ही घेरे में लेती है। सड़क पर कोई रिक्शेवाला या राहगीर बस को साइड ना दे तो, कन्डक्टर चिल्लाता है - साले बहन... हट सामने से। कई बार लगता है जैसे पुरुषों की अपनी बनाई कोई इज़्ज़त है ही नहीं। उनकी इज़्ज़त बनती और बिगड़ती है स्त्रियों से। अगर माँ, बेटी, बहन या पत्नी इज़्ज़तदार है तो पुरुष कितना भी चरित्रहीन हो सब ढक जाता है। वैसे ही अगर घर की महिला सामजिक परिभाषा के मुताबिक़ चरित्रहीन हुई तो पुरुष की इज़्ज़त का बट्टा बैठ जाता है। मुझे गालियों के उद्गम के बारे में कोई जानकारी नहीं। हाँ ये ज़रूर समझती हूँ कि गाली भले ही पुरुष को दी जा रही हो लेकिन, उसका संबंध स्त्री से ही होता है। आखिर गाली खुद में एक स्त्रीवाचक शब्द है...

4 comments:

ओमप्रकाश तिवारी said...

Dipti ji Aap ne sawal bahut sahi uthaya hai. darasal hamra smaj purush pradhan raha hai.galiyan bhai esi ki upaj hain1. espar vistar se bahas ki jaroorat hai.

सचिन मिश्रा said...

Bahut sahi mudda udaya hai.

दिनेशराय द्विवेदी said...

इस बात को उठाने के लिए बधाई।

anil yadav said...

bahut jandar