Friday, November 28, 2008

सोच समझ को छीनता ये हादसा...

कल सुबह से... जब से ख़बर देखी है... लगातार इसे देख रही हूँ... एक के बाद एक ब्रेकिंग न्यूज़... ब्रेकिंग न्यूज़... ब्रेकिंग न्यूज़... इतनी ब्रेकिंग न्यूज़ के बीच में दिमाग ब्रेक होता लगा रहा है। क्या हो रहा है, अब आगे क्या होगा, किसने क्या किया, कौन निक्कमा, कौन शातिर, कितने मरे... अब क्या होगा... आगे क्या...
इस बीच दिमाग में ज्वार भाटे की तरह विचार आते रहे जाते रहे। कभी लगाकि सब्र रखो सब ठीक होगा, फिर अगले ही पल टीवी देख आँसू टपकने लगे, फिर लगाकि सभी असुरक्षित है, फिर लगाकि कुछ लगने लायक ही नहीं रहे हम...



नीचे लिखी मेरी सोच उसी ज्वार भाटे का नतीज़ा है...
तकनीक के मामले में भारतीय शायद उतने फीसड्डी नहीं रहे हैं जितने की पहले थे। लेकिन, ये तकनीकी ज्ञान और तकनीकी उपकरण काम किसके आ रहे हैं ये सोचनेवाली बात हैं। 26 नवंबर की रात से मुंबई में हो रही गोलीबारी का सीधा प्रसारण चल रहा है। कितने कमान्डो आए, कहाँ गए, क्या हो रहा है, कैसे हो रहा है। हर घटना का सीधा प्रसारण। होटलों के आसपास तैनात सुरक्षाकर्मी लगातार अपील कर रहे हैं कि ये सब मत दिखाइए। लोकिन, मीडिया ये बात भी दिखा रहा है कि वो हमें मनाकर रहे हैं। हर बात जनता पहुंचाते हम सबसे बेहतर...
अगर कोई एक थोड़ी देर के लिए ये मान भी लेता है कि अच्छा चलो हम नहीं दिखाते तो दर्शक बस चैनल बदल लेता हैं। क्योंकि अगली जगह तो दिखाई दे ही रहा होगा। मुझे नहीं पता कि आतंकी इस प्रसारण का कितना फायदा उठा सकते हैं, उठा सकते भी हैं या नहीं। लेकिन, सुरक्षा बल का कहना यही है कि मत दिखाइए। लेकिन, चैनल बेबस है। टीआरपी का कीड़ा जो एक बार काट ले तो वो दर्द हमेशा रहता है। फिर बढ़िया विजुअल पर ही तो अगली बार का चैनल प्रोमो बनना है। ये सारे दुख दूसरे क्या पहचाने...

इस सब के बीच एक ख़बर मेरे घर की तरफ से आई कि एक रिश्तेदार की सीएसटी पर हुई गोलीबारी में मौत हो गई। वो रेल्वे में टीसी थे। गोलियाँ लगी और उसी जगह उनकी मौत हो गई। ख़बर सुनकर एकदम आँखों में आंसू आ गए। दुख भी हुआ। फिर अपने कामों में उलझ गई। लगातार टीवी पर चल रही ख़बर ने कुछ भी भूलने न दिया। तब से लेकर अब तक मैं यही सोच रही हूँ कि जब तक मुझे अपने रिश्तेदार की मौत का पता नहीं लगा था मरनेवाले मेरे लिए संख्या थे, आंकड़ें थे। लेकिन, अब इस हादसे में मर रहे है हर व्यक्ति से एक जुड़ाव लग रहा है। शर्म भी आई अपनी इस सोच पर की जब ख़ुद पर बीती तो लगा कि क्या होता है किसी का मरना।

फिर रात को एनडीटीवी पर 9 बजे के कार्यक्रम में पूर्व रॉ प्रमुख की बात ने एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया। सुरक्षा एजेन्सी की हार को वो मानते है लेकिन, साथ ही उन्होंने कहा कि क्या आप जानते हैं कि हम कितनी बार कामयाब भी हुए हैं। सच भी है कि जब कोई हादसा टल जाता है तो वो महज एक कॉलम की ख़बर बन कर रह जाता है। उससे ज़्यादा कुछ नहीं।


फिर याद आई राज ठाकरे की। आखिर कहाँ है राज ठाकरे मुंबई तो उनकी है तो वो क्यों नहीं आ रहे हैं आगे गोलियाँ खाने के लिए, उन आतंकियों को मारने के लिए। कहाँ गए वो लोग जो मुंबई में भईया लोगों को घुसने नहीं देना चाहते हैं। आतंकी क्या उन्हें मंजूर है मुंबई में... इस विवाद में भईयाओं को मारनेवाले कुछ-कुछ ऐसे ही हैं जैसे गली मोहल्ले में कुछ टुट्पुन्जिया से गुंडे होते है। जो लड़की को छेड़ते तो हैं लेकिन, जैसे ही वो पलटकर देखती है डर के मारे भाग जाते हैं...
इस वक़्त भी मेरे चारों ओर टीवी चल रहे हैं। यही ख़बरें... ब्रेकिंग न्यूज़... सीएसटी पर फिर गोलीबारी... ब्रेकिंग न्यूज़... ऑबेरॉय के रेस्टॉरेन्ट में सभी लोग मारे गए... ब्रेकिंग न्यूज़... ब्रेकिंग न्यूज़...

3 comments:

Anil Pusadkar said...

धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा.हम सब इस घटना को भूल जायेँगे और जब कही फिर कोइ धमाका होगा सब कुछ इसी तरह से दोहराया जायेगा.

Bhuwan said...

...सब शोर मचाते है जब तक लहू ये ताज़ा है...

हमने घटनाओ से कभी सीख नही ले दीप्ती जी.. अभी ही देख लीजीये... देश पर इतना बड़ा हमला हुआ है.. आडवानी जे ने तो कहा हम सरकार के साथ है लेकिन नरेन्द्र मोदी के लिए ये बढ़िया मौका था.. केन्द्र सरकार की जम कर खिंचाई की.. भूल गए की अभी इसका वक्त नही आया है...

राजन् said...

वोट की राजनीति ने आतंकी हमलों से निपटने की दृढ इच्छाशक्ति खत्म कर दी है, खुफिया तंत्र की नाकामयाबी की वजह भी सत्ता है, संकीर्ण हितों- क्षेत्र, भाषा, धर्म, जाति, लिंग- से ऊपर उठ कर सोचने वाले नेता का अभाव तो समाज को ही झेलना होगा, मुंबई हमलों के बारे में सुनने के बाद मैं काफ़ी बेचैन हूँ. सवाल है ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी का या कुछ और. इसे मैं सिर्फ़ राजनीतिक नाकामी कहूंगा जिसकी वजह से भारत में इतनी बड़ी आतंकवादी घटना हुई.