Tuesday, December 2, 2008

भोपाल गैस कांड : क्या आपको याद है वो रात...

2 दिसंबर 1984 की देर रात और 3 दिसंबर 1984 की सुबह ने भोपाल को हमेशा के लिए बदल दिया। चारों तरफ लाशें, जो उन सर्दियों में रजाई में सोए वो कभी न उठे। कइयों की जानें गई, कई ज़िंदगी भर के लिए विकलांग हो गए। आज भी उस त्रासदी को झेल चुके लोगों के बच्चों में किसी न किसी तरह की विकलांगता मिल रही हैं। कइयों का पूरा परिवार ख़त्म हो गया। किसी के बच्चे मर गए, तो कोई बच्चा अनाथ हो गया। ये जो आप पढ़ेगें वो यूँ तो काल्पनिक है। लेकिन, शायद कइयों की हकीक़त भी है...


रविवार...
हर छुट्टी की तरह बीता...
आराम, मौज-मस्ती, कुछ काम जो छुट्टी के नाम दर्ज होते हैं...
ठंड के दिन थे... भोपाल में उन दिनों ठंड पड़ती थी...
कुछ देर दिन में छत पर बैठे... कुछ छौड़ कच्चे खाए... तो कुछ छीलकर रख दिए भजिए बनाने के लिए...
पूरा घर साथ था... माँ, बाऊजी, ये, दोनों बच्चे...
कितना अच्छा लग रहा था...
10 की शादी थी मेरे भाई की... मैं बहुत खुश थी...
जाने की तैयारी में लगी हुई थी... उसी रात मुझे मायके निकलना था...
शाम ढली... मैंने मक्के की रोटी बनाई थी... सबने मिलकर खाना खाया...
मैंने बड़े बेटे को सुलाया... वो माँ-बाऊजी का लाड़ला था...
सो उनके साथ ही आनेवाला था... मुझे बस के लिए विदाकर माँ-बाऊजी भी सोने चले गए...
ये मुझे जवाहर चौकवाले बस अड्डे तक छोड़ने आए...
मेरे साथ छोटू था...
मेरी बस चली... रात गहराने लगी... मैं मायके के ख्यालों में सो गई...
सुबह बस अड्डे पर भाई लेने आया था... उसे देखा तो लगा कि चेहरा कुछ पीला है...
सोचा इतनी जल्दी हल्दी लग गई...
भाई कुछ ना बोला... चुपचाप मुझे घर ले गया...
घर पहुंचकर देखा तो सबके चेहरे पीले दिखे... माँ की आंखें सूजी हुई थी... पापा की कमर कुछ झुकी हुई...
पापा ने कहा - कल देर रात भोपाल में फ़ैक्ट्री से जहरीली गैस रिसी... लाखों मारे गए...
जिन्हें तू सुलाकर आई थी वो सोए रह गए...
वो अब कभी नहीं जागेंगे...

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