Monday, March 9, 2009

मिलिए स्लमडॉग खिलाड़ियों से...

स्लमडॉग मिलेनियर आज तक नहीं देख पाई हूँ। लेकिन, कुछ दिनों पहले दो मलीन बस्ती में रहनेवाले बच्चों ( आज की भाषा में स्लमडॉग्स) से मिलना हुआ। ये दोनों करोड़पति तो नहीं हैं लेकिन, बेहतरीन खिलाड़ी ज़रूर हैं। नाम हैं बृजेश और रीना। ये दोनों बच्चे दिल्ली के संजय कॉलोनी इलाके़ में रहते हैं। दोनों ही बच्चे कुछ ही दिनों पहले अमेरिका में हुए विशेष ओलंपिक से स्केटिंग में मैडल जीतकर आए हैं। विशेष इसलिए क्योंकि दोनों ही बच्चे गूंगे और बहरे हैं। दिल्ली स्थित एक एनजीओ की मदद से दोनों वहां तक पहुंच पाए हैं। जब ये बात मुझे पता लगी तो अपने कार्यक्रम के सिलसिले में मैंने उनसे मिलने की ठानी। एनजीओ में फोन किया और वक़्त तय हुआ। संजय कॉलोनी के फ़ैक्ट्री एरिया में बेहद गंदी जगह पर जब मैं अपनी टीम के साथ उतरी तो सबसे पहले नाक पर हाथ रखा। इतनी गंदगी और बदबू की सांस न लेते बनें। गंदगी को पार करके हम स्कूल तक पहुंचे। ऐसा लगा कि ये कोई अलग ही दुनिया है।

चारों तरफ छोटे बड़े बच्चे खेलते हुए, चिल्लाते हुए। सभी बारी-बारी आकर नमस्ते कर रहे थे। गंदी-सी स्कूल ड्रेस में सभी प्यारे लग रहे थे। लेकिन, हमें तो बृजेश और रीना से मिलना था। रीना सरकारी स्कूल में भी पढ़ती है सो वो परीक्षा देने गई थी। हमें बृजेश से मिलवाया गया। लगभग 12 साल का हट्टा कट्टा लड़का। गूंगे बहरे बच्चों के लिए बने स्पेशल कम्प्यूटर पर कुछ सीख रहा था। पहले हमने उसके कुछ शॉट कम्पोज़ किए और फिर बारी आई इन्टरव्यू की। वो न तो कुछ बोल पाता है और न ही कुछ सुन पाता है। ऐसे में बृजेश के एक टीचर ने हमारी मदद की। हमने बृजेश से कई सवाल किए उसने सभी का जवाब इशारों में दिया। जैसे कि कब से स्केटिंग सीख रहे हो? कैसा लगा था अमेरिका जाकर? या आगे चलकर क्या करोगे? बृजेश का इन्टरव्यू ख़त्म करते तब तक रीना आ गई। रीना अपनी उम्र 18 साल बताती है। वो अपने पिता के साथ आई थी। रीना का इन्टरव्यू भी हमने उसके टीचर की मदद से लिया। बोल और सुन नहीं पाने वाली रीना ऑंखों से बात कर रही थी। सांवली सी उस लड़की आँखें बेहद सुन्दर है। रीना ने इशारों में ही हमें बताया कि वो आगे चलकर खेलना चाहती है। इसके बाद हमने रीना और बृजेश के दोस्तों से बात की। सभी बेहद खुश थे। उनसे बात करने ऐसा लग रहा था मानो इनाम उन्हें ही मिला हो। यहाँ से हम गए रीना के घर। संजय कॉलोनी की गंदगी से भरी तंग गलियों से होते हुए... रास्ते में सभी हमें आश्चर्य से देख रहे थे। कही कपड़े धुल रहे थे, कही बच्चे खेल रहे थे, तंग गलियों की छोटी-छोटी दुकानों पर मंडलियाँ जमी हुई थी। जब रीना ने अपने घर का दरवाज़ा खोला तो मेरे पैर रूक गए। उसका घर शायद एक खोली से भी छोटा था। एक दम अंधेरा। लगा कि या तो मैं अंदर जा पाऊंगी या मेरा कैमरामैन। हमने तय किया कि छत पर शूट करेगें। रीना के घरवालों को छत पर बुलाया गया। चारों तरफ भीड़ जम चुकी थी। रीना के मम्मी, पापा और बहन का इन्टरव्यू हमने लिया।

पिता खुश थे कि बेटी ने नाम कर दिया नहीं तो हम कब जिए कब मरे किसी को क्या पता चलता... माँ को खुशी थी कि अब बेटी की शादी हो सकेगी। माँ की इच्छा थी कि बेटी मर्ज़ी से शादी करें अब। बहन को तो दोस्त के बीच धांक जमाने का मौक़ा मिल गया था। सभी बेहद खुश थे। इतननी गंदगी, सीलन, घुटन के बीच भी सभी के चेहरे खिले हुए थे। रीना के घर से जब निकल रहे थे तो उसके पिता ने हाथ जोड़कर कहा मैडमजी ये टीवी पर दिखाना ज़रूर। पिछली बार जो चैनलवाले आए थे उन्होंने कुछ दिखाया ही नहीं था। ऐसे में रीना बड़ी उदास हो जाती है। मैंने वादा किया कि मैं ज़रूर इसे टीवी पर दिखाऊंगी।
इसके बाद हम बृजेश के घर गए। बृजेश का रीना के घर से कुछ बड़ा था क्योंकि उसके घर में एक चाय की दुकान थी। बृजेश के पिता अपने बेटे की इस उपल्बधि से बेहद खुश थे। उनका कहना था कि उनके बेटे के ज़रिए उनका जीवन सफल हो गया। बृजेश की माँ तो कैमरे के आगे कुछ बोल ही नहीं पाई। बस मुस्कुराती रही। इसके बाद हम रीना और बृजेश को लेकर उस जगह गए जहाँ उन्होंने स्केटिंग सीखी है। हमें लग रहा था कि कोई अच्छा सा खेल का मैदान होगा। लेकिन, असलियत में वो एनजीओ के स्कूल का आंगन था। एक दम छोटा-सा, उसी में वो बच्चे स्केटिंग सीखते थे। वही चक्कर काटते काटते वो बच्चे अमेरीका से मैडल जीत लाए थे। उस स्कूल में बृजेश और रीना जैसे और भी कई बच्चे थे। कोई बोल नहीं पाता था तो कोई सुन नहीं पाता था। लेकिन, हर चेहरा खिला हुआ था। कोई परेशानी, कोई दुख नहीं, सभी अपनी मस्ती में मस्त थे। शूटिंग खत्म करके जब हमारी टीम वहाँ से रवाना हुई, तो सभी ने गर्मजोशी से हमें विदा किया। वापस आते समय उन बदहाली और गंदगी में जीनेवाले बच्चों के चेहरे बार-बार नज़रों के आगे घूम रहे थे। लग रहा था कि मैं जो आज अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से, अपनी मर्ज़ी से जी रही हूँ। हाँ परेशानियों को भी झेल रही हूँ। लेकिन, फिर भी उन बच्चों से बेहतर परिस्थिति में हूँ फिर भी कितनी उदास रहती हूँ और वो बच्चे इस सब के बावजूद कितने खुश हैं। शायद जीना इसी का नाम है....

2 comments:

amitabhpriyadarshi said...

aapne vastav men hamen guddiyon men pal rahe,paristhitiyon aur vyavastha se lad rahe bachhon se milvaayaa, unki prtibha se avgat krvaayaa. achha laga.
haan inki recarding TV par aayee ki nahi? uski vyavastha ho jane se bachho aur unke parivaar walon ka hausala badhata.

khali panne

anil yadav said...

होली की शुभकामनाएँ.........