Monday, May 11, 2009
मंटो के जन्मदिन पर: मंटो आज भी प्रांसगिक हैं...
आज सआदत हसन मंटो का जन्मदिन है। सन् 1912 में जन्मे मंटो अगर आज ज़िंदा होते तो 97 साल पूरे कर चुके होते। सुबह-सुबह बीबीसी हिन्दी की वेब साइट पर उनकी बेटी निकहत पटेल से हुई बातचीत पढ़ते हुए लगा कि इतनी सारी विदादास्पद कहानियाँ लिखनेवाला ये लेखक अपने निजी जीवन में बेहद सरल और साधारण रहा होगा। मंटो को कुछ सालों पहले ही जाना, उनकी कुछ विदादास्पद कहानियों के ज़रिए। उन्हें पढ़कर मुझे लगा था कि कैसे कोई इंसान ज़िंदगी की सच्चाई को, हमारे आसपास हो रही बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी से घटना को इतनी सरलता से काग़जों पर उतार सकता हैं। खोल दो, ठंडा गोश्त और बू को पढ़कर तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसा लगता है कि हम कोई कहानी नहीं पढ़ रहे हैं। बल्कि हम वहाँ मौजूद है और उन हालातों को क़रीब से महसूस कर रहे हैं। बहुत ज़्यादा शराब पीने के चलते साल 1955 की जनवरी में मंटो ने हमेशा के लिए आंखे मूंद ली। लेकिन वो अपनी कहानियों के ज़रिए आज भी ज़िंदा हैं और आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने की उस वक़्त रहे थे। मंटो ने अपनी ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीना सिखाया था। मंटो ने वो सब लिखा जो वो महसूस करते थे। हालांकि उनका बेहद विरोध हुआ, कई मुक़दमें चले लेकिन, मंटो ने हमेशा अपने मन की सुनी। आज से लगभग पाँच-छः दशक पहले लिखी गई ये कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमारा समाज भी। मेरे विचार से अगर ये कहानियाँ आज से दौर में लिखी जाती तब भी उनका इतना ही विरोध होता। मंटो अपने वक़्त से आगे थे और हमारा समाज वक़्त से कई पीछे...
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6 comments:
अभी अभी एक ऑर पोस्ट पढ़ी मंटो के बारे में.. कभी खुद मैंने कोई किताब पढ़ी नहीं मंटो की.. पर मंच पर कई नाटक देखे है ऑर दोस्तों से कई बार सुन चूका हूँ..
मंटो जैसी शख्शियत सदियों में पैदा होती है...क्रिशन चंदर ने उनपर कुछ बहुत यादगार संस्मरण लिखें हैं...
नीरज
यह सच है मंटो अपनी शर्तो पर जीये। और मंटो हमेशा इंसानी दिलों में जिंदा रहेगे।
बहुत सही कहा, मंटो का लिखा हुआ आज भी प्रासांगिक है.
दीप्ति मंटो ने एक बार अश्लील कहानियों पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा था कि समाज अगर नंगा है तो उसके कपड़े पहनाना मेरा काम नहीं क्योंकि मैं दर्जी नहीं हूं।
एक भूल सुधार भी - मंटो की कहानी का नाम खोल दो है न कि उतार दो
धन्यवाद
good
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