Monday, June 15, 2009

कुटिल महिलाओं के बीच निर्दोष और मासूम पुरुष...

कुछ दिन पहले ब्लॉगवाणी में सबसे पसंदीदा पोस्ट पर क्लिक किया। पोस्ट का विषय था लड़कियाँ और उनका उत्पादन प्रेम। ये लेख एक व्यंग था और इस पर टिप्पणी करनेवाले सभी पुरुष थे। हालांकि व्यंग को लेकर न तो ज़्यादा व्यक्तिगत होना सही है और नहीं गंभीर होना। फिर भी मुझे उस व्यंग के विषय से एतराज़ है। ये एक आम धारणा है कि किसी भी उत्पाद के विज्ञापन में महिलाओं को दिखाने से वो उत्पाद भी बिकता है और उस उत्पाद की बिक्री भी बढ़ती हैं। व्यंग के मुताबिक़ विज्ञापनों में दिखाई जानेवाली लड़कियाँ किसी भी चीज़ पर फिसल जाती हैं, किसी भी उत्पाद के चक्कर में किसी को भी दिल दे बैठती हैं। लेकिन, व्यंग में उसी विज्ञापन जगत के लड़कों का कोई ज़िक्र नहीं था जोकि हर जगह लड़कियों को चाहते हैं और अपने जीवन का परम उद्देश्य लड़कियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना रहता हैं। लेखक को बाइक का विज्ञापन देख ये तो लग गया कि लड़की को लड़के में नहीं बाइक में दिलचस्पी है और लड़की को लालची मान लिया गया। लेकिन, वो लड़का उन्हें शायद बेहद ही निर्दोष और मासूम लगा जोकि लड़की को अपने पीछे बैठाने और उसके क़रीब जाने के मक़सद से बाइक खरीदता हैं। विज्ञापन जगत की लड़कियाँ अगर बेहद लालची और उत्पादन के पीछे जान देनेवाली हैं तो क्या लड़के मासूम हैं। लड़के आज डियो शरीर की दुर्गंध दूर करने के लिए नहीं बल्कि लड़कियों के लिए लगाने लगे हैं शायद इसमें भी लड़कियों की ग़लती हैं। या फिर लड़के बाइक लड़कियों के लिए खरीदते है इसमें भी लड़कियाँ ग़लत हैं। बाइक के ढेरों विज्ञापनों में उस विज्ञापन पर कोई नहीं लिखता है जहाँ लड़कियाँ ख़ुद बाइक चलाने लगती हैं तो लड़के अपने पुराने सुहाने दिन याद करते हैं कि कैसे वो हमारे पीछे बैठती थी और हम बार-बार ब्रेक लगाते थे। या फिर कोई उस विज्ञापन पर कुछ नहीं लिखता है जहाँ बनियान के विज्ञापन में लड़कियों पर हो रहे गंभीर अपराधों को मज़ाक में उड़ाया जाता हैं। या फिर कुकिंग आइल का विज्ञापन जिसमें पत्नी घर के पूरे काम करके पति के लिए खाना बनाकर, पिक्चर की टिकीट लेकर बेटी सहित पति का मिठाई लिए इंतज़ार करती रहती है। शायद व्यंग लेखकों के लिए ऐसी ज़िम्मेदार महिलाएं लिखने का मुद्दा नहीं है या फिर लेखक भी पुरुष हैं और वो पुरुष का मज़ाक उड़ाना अवोईड करता हैं। मुद्दा सिर्फ़ इतना है कि लेख को एक तरफा नहीं होना चाहिए। विज्ञापन जगत क्या हर जगत में महिला और पुरुष दोनों ही बराबरी से सही और ग़लत है।

2 comments:

निर्मला कपिला said...

dipti ji bilkul sahi kaha apne ye aise lekh likhte hue ye nahin sochate ki mahilaon me sabhi aati hain unke parivar ki mahilayen bhi khair gambheer vishay ab majak ka vishay banataa jaa rahaa hai

L.Goswami said...

sahmat hun aapse.