Friday, June 26, 2009

हमने भी गधा जनम छुड़ाया...

हमारे इलाके में कहावत है की कुछ खास या विशेष कर लिए मानो गधा जनम छुड़ा लिए.. तो हमने भी अपना गधा जनम छुड़ा लिया पहली बार हवाई जहाज़ पर चढ़ कर. हालाँकि ये मौका मुझे मजबूरी वश मिला. जाना जरूरी था और ट्रेन में टिकट लेने की हर कोशिश जाया गई.. अपनी हैसियत भी नहीं थी प्लेन से जाने की.. जितने में एक बार दिल्ली से पटना तक गया... ट्रेन से कम से कम चार पांच बार तो जा ही सकता था. खैर पहली बार जा रहा था तो थोड़ी घबराहट... थोड़ा उत्साह... एयरपोर्ट समय से काफी पहले पहुँच गया.. बोर्डिंग पास लेकर सामान की जाँच करवाई और वेटिंग हाल में बैठ गया। करीब एक घंटे बाद मेरे प्लेन की एनाउंसमेंट हुई. सामान लेकर बस में जा बैठा और वहां से प्लेन तक. सीट खिड़की वाली मिली थी..सामान ऊपर रखा और बैठ गया। बगल वाली सीट पर करीब पैंतीस साला व्यक्ति अपनी पत्नी, बच्चे और एक महिला रिश्तेदार के साथ थे. पति पत्नी मेरे बगल में और बाकी दूसरी लाइन वाली सीट पर बैठे थे. वो अपने साथ कुछ ज्यादा ही बड़ा बैग ले आये थे. फ्लाइट अटेंडेंट ने आपत्ति की.. तो कहा मैं तो हमेशा ही ले जाता हूँ.. अगर ऊपर नहीं अटेगा तो यही पैरों के पास रख लूँगा. मेरे साथ साथ वो अटेंडेंट भी हैरत में था. मैंने सोचा बस में तो आने जाने वाले रस्ते में सामान रखते देखा है..पर प्लेन में कैसे....
इतनी देर में उस बेचारे अटेंडेंट ने सामान को किसी तरह ठूंस कर ऊपर रखा. जहाज़ में अब सुरक्षा उपाय बताये जा रहे थे.. पहली दफा सफ़र करने के कारण मैं बहुत ध्यान से उन्हें सुन रहा था. उसके बाद जहाज़ रनवे की तरह ले जाया जाने लगा. मैंने अपनी सीट बेल्ट बांधी और खिड़की से बाहर देखने लगा... अचानक बगल वाले श्रीमान ने उस अटेंडेंट से वोमेटिंग बैग की मांग की... ये सुनते ही मेरा पूरा ध्यान उनपर ही चला गया। अटेंडेंट ने तुरंत ही उन्हें कुछ पकेट्स पकड़ाये. अब तक प्लेन रफ़्तार पकड़ चुका था. खिड़की से बाहर की ज़मीन तेजी से पीछे छूटती नजर आने लगी और पल भर में ही जहाज़ हवा में उड़ गया. थोड़ी देर में अटेंडेंट ने यात्रियों से पानी के पूछना शुरू किया. अटेंडेंट को देखते ही मेरे बगल वाले महोदय ने आवाज़ लगाई - पानी... वो भागा आया और उन्हें पानी की एक बोतल थमाई। बोतल पकड़ते हुए उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चे को भी पानी लेने को कहा. दोनों ने मना किया॥कहा प्यास नहीं लगी है अभी..लेकिन उन्होंने तो पत्नी और बच्चे को पहले डांट पिलाई और फिर पानी. मैं अब अख़बार पढने लगा..वो लोग भी अपनी बातें करने लगे. थोड़ी देर में जानकारी दी गई की नाश्ता मिलने वाला है..और अनुरोध किया गया की इस दौरान कोई अपनी सीट से न उठे.. दरअसल नाश्ता लाने वाली ट्राली आने के बाद बीच के रास्ते में चलने के लिए जगह नहीं बचती.. नाश्ते का पता चलते ही वो सज्जन बार-बार उठ कर पीछे देखने लगे जिधर से नाश्ता आना था.. खैर इतनी देर में मुझे समझ में आ गया था की महोदय बड़े बेसब्र हो रहे हैं..लेकिन ये नहीं सोचा था की वो उठ कर बाहर निकल जायेंगे. वो उठे और आगे बढ़ गए..जैसे उनका नाश्ता किसी और को दे दिया जायेगा. अटेंडेंट ने लगभग डांटते हुए उन्हें सीट पर बैठने को कहा. जल्द ही हमारे सामने नाश्ते की प्लेट थी. मैंने खाना शुरू किया.. उनलोगों ने भी.. इस दौरान वो अजीब-अजीब हरकतें करते हुए कुछ न कुछ मांगते रहे. आखिर में काफ़ी की बारी आई. कप, पाउच में चीनी और मिल्क पाउडर पहले से ही दी गई थी. कप में गर्म काफ़ी डाल दी गई. मैंने सब मिलाया और काफ़ी पीनी शुरू की.. बगल वाले भाई साहब ने भी चीनी, दूध मिलाया और... फिर आवाज़ लगाई - वन मोर सुगर पाउच प्लीज़. अटेंडेंट ने उन्हें चीनी दी और उन्होंने पाउच फाड़ा और पूरी चीनी काफ़ी में डाल ली..मिलाया और पहली चुस्की लेते ही पत्नी से कहा थोड़ी मीठी हो गई.. मैंने सर पकड़ लिया. अरे भैया पहले टेस्ट तो कर लो मीठी है या नहीं..फिर लेना चीनी. मैंने अब उनकी तरफ ध्यान देना बंद कर दिया. प्लेन की ऊँचाई कम होती लग रही थी. पहुँचने का समय भी होता जा रहा था. थोड़ा और नीचे आने पर गंगा नदी दिखाई देने लगी. फिर स्टेडियम और पटना रेलवे स्टेशन. पटना पहुँचने की सूचना देते हुए सीट बेल्ट बांधने के निर्देश दिए गए. कहा गया जब तक जहाज़ पूरी तरह रूक न जाये तब तक न तो सीट बेल्ट खोले और न सीट से उठें. घूमता हुआ एयरपोर्ट तक आ पहुंचा और थोड़ी ही देर में जहाज़ का पहिया ज़मीन को छूने लगा. लेकिन ये क्या..जहाज़ के लैंड करते ही वो महाशय उठ खड़े हुए और अपना सामान निकलने लगे..यही नहीं अपने साथ के लोगों को भी जल्दी से उठने को कहा.. मै बस अचरज भरी नज़रों से उन्हें देखता रहा. थोड़ी देर में प्लेन रुक गया और दरवाजा खोल दिया गया. वो आगे वाले दरवाजे से और मैं पीछे के गेट से बाहर निकला. नीचे भी उनकी हड़बड़ी जारी थी. बैग उठाये वो तेजी से बाहर निकल रहे थे.. इसी हड़बड़ी में उन्होंने फर्श की लेवलिंग पर ध्यान नहीं दिया और लड़खड़ा कर गिर गए... फिर उठे और पत्नी के आने का इंतज़ार करने लगे. मैं उनको क्रॉस करता हुआ बाहर आ गया. मेरे चेहरे पर थोड़ी मुस्कराहट थी.. शायद पहली बार हवाई जहाज़ में सफ़र करने की ख़ुशी में या फिर...

8 comments:

Dr. Praveen Kumar Sharma said...

बढ़िया रही आपकी यात्रा. एयरलाइन्स वालो ने आपके लिए एक जोकर का इंतजाम कर के रखा था

संगीता पुरी said...

अच्‍छा लगा आपका संस्‍मरण .. गधा जन्‍म छूटने की .. आपके कहे अनुसार .. मैं नहीं कह रही .. बहुत बहुत बधाई।

ghughutibasuti said...

आपकी यात्रा तो बहुत रोचक रही।
घुघूती बासूती

अर्कजेश said...

ha..ha..ha..
आपके सहयात्री ने यात्रा के दौरान नीचे उतरने के अलावा सारी हरकतें कर डालीं । भूल गये होंगे की हवाई यात्रा कर रहे हैं ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

लगता है कि आपके सहयात्री बस/ट्रेन के अनुभव का प्रयोग हवाई जहाज की यात्रा में कर रहे थे.....

uday kumar singh said...

बहुत अच्छे, मंगलमय यात्रा का आपने विस्तृत और मनोरम चित्रण
वर्णन किया है..मज़बूरी में आप यात्रा कर रहे थे..लेकिन किसी बात को लेकर परेशान और वो सज्जन थे जो आपकी बगल वाली सीट पर पूरे
हे परिवार थे साथ.. बैठे थे..हाँ ये जरूर है कि वो सज्जन और उनके परिवार के सदस्यों ने आपका खूब मनोरंजन किया...

प्रकाश गोविंद said...

अच्छा लगी आपकी यात्रा संस्मरण

कई पिछडे गाँवों में तो आज भी इसे देवताओं की सवारी माना जाता है !
चलिए आप भी वीआईपी सूची में दर्ज हो गए !

हार्दिक शुभकामनाएं !

आज की आवाज

hempandey said...

संस्मरण रोचक रहा.