Friday, June 19, 2009

माँ के बिना...


मैं 25 साल की हूँ और पिछले 3 साल से दिल्ली में अकेली रह रही हूँ। आज भी जब ऑफ़िस से रूम जाती हूँ तो रूम का ताला खोलने में रुलाई आती है। आज भी जब थकी हुई हालत में खाना बनाती हूँ तो मम्मी की गर्म रोटियाँ याद आती हैं। घर पर रहते हुए आज तक मैंने कभी ख़ुद से खाना तक नहीं परोसा था। हर बार मम्मी ही खाना देती थी...

वही, मेरे ऑफ़िस में मेरी एक सहकर्मी अपनी चार साल सात महीने की बेटी के लिए एक बोर्डिंग स्कूल खोज रही हैं। मेरी सहकर्मी और उसका पति दोनों ही नौकरी पेशा हैं और मीडिया में होने के कारण उनकी शिफ़्ट भी लगातार बदलने वाली है। ऐसे में बेटी को स्कूल छोड़ना, फिर लाना, फिर किसी झूलाघर में छोड़ना संभव नहीं है। मेरी सहकर्मी इस बात से फ़िलहाल बेहद परेशान है और दिनभर वो इसी विषय में बातें करती रहती हैं। वो बताती है कि उसकी बेटी को पहले वो दो साल के लिए अपनी माँ के घर रख चुकी है, लेकिन अब वो वहाँ भी नहीं रख सकती क्योंकि माँ की ज़िम्मेदारियाँ (भाई के बच्चे) बढ़ गई हैं और फिर उड़ीसा वो साल में एक बार ही जा पाती हैं। ऐसे में बेटी से केवल एक बार मुलाक़ात होती थी। अब वो दिल्ली में ही एक अच्छा-सा बोर्डिंग खोज रही है जिससे हफ़्ते में एक बार मिल सके उससे। उसके ससुराल में भी ऐसा कोई नहीं जो उनके साथ रह सके और सास की तबीयत ऐसी है कि उन्हें सेवा की ज़रूरत है। मेरी सहकर्मी परेशान है।


मेरी सहकर्मी से ज़्यादा मैं परेशान हो रही हूँ। मुझे लगातार ये बात लग रही है कि मैं इतनी बड़ी और परिस्थितियों को समझने वाली लड़की जब पिछले तीन सालों में ख़ुद को इस अकेलेपन में ढाल नहीं पाई है, तो कैसे वो चार साल सात महीने की लड़की यूँ अकेले रह पाएगी। कॉलेज के दिनों तक मैं ख़ुद से चोटी नहीं कर पाती थी। दिल्ली आकर मैंने रोटी बनाना और कपड़े धोना सीखा। कैसे वो बच्ची माँ और पापा के बिना कुछ भी कर पाएगी। जिस उम्र में उसे नई बातें सीखना चाहिए कैसे वो हर काम खु़द से करना सीखेगी। कैसे रहेगी वो माँ के बिना। मेरी नज़रों के सामने उस बच्ची का चेहरा घूम रहा है। अगर मैं उसकी जगह होती तो शायद अपनी माँ से इतना ज़रूर पूछती कि- जब वक़्त नहीं था मेरे लिए तो जन्म ही क्यों दिया मुझे...

15 comments:

रंजन said...

एकल परिवार.. पति पत्नी दोनों के नौकरी करने का प्रभाव बच्चों पर दिखता है... बोर्डिगं स्कुल के फाय़दे है तो नुकसान भी है.. और शायद नुकसान ज्यादा है.. लेकिन बहुत मुश्किल निर्णय हैं.. हम भी एसी परिस्थिती से गुजरे है.. शुक्र है अभी कुछ व्यव्स्था हुई और हम दोनों नौकरी कर रहें हैं.. लेकिन कब तक? ये नहीं पता....

मनोज द्विवेदी said...

Gahara prashn kiya hai apne

M VERMA said...

bhawanatmak 'Empathy' is very deep in your post. Very good posting.

Bhawna Kukreti said...

abhi to kaafi samay hai.... lekin likhe bina nahin raha jaa raha ..."AAP SHAYAD ACHHI MAA BANENGI ":)

ghughutibasuti said...

आपकी सोच बिल्कुल सही है। यदि समय नहीं हो और कोई देखभाल करने में सहायता भी करने वाला भी न हो तो बच्चों को जन्म नहीं देना चाहिए।
वैसे शायद सुरक्षा की दृष्टि से आपको यह बात यहाँ नेट पर नहीं कहनी चाहिए कि आप अकेली रहती हैं।
घुघूती बासूती

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

दीप्ती का अंतिम सवाल- जब वक़्त नहीं था मेरे लिए तो जन्म ही क्यों दिया मुझे... इस सवाल को एक बार मैंने अपने मां-बाप से भी पूछा था।
खुद का अनुभव है, केवल ज्ञान में दो साल मां-बाबूजी के साथ रहा हूं, बांकि हॉस्टल और फिर दिल्ली..। कभी-कभी अकेलापन मुझे अंदर से खोखला बना देता है, तो उसी समय यह भी ख्याल आता है कि इसी अकेले रहने की आदत ने काफी कुछ सीखाया भी,,,,,,

ab inconvenienti said...

मुझे भी चार साल की उम्र में हॉस्टल भेज दिया गया था, आज लगता है की इतनी कम उम्र में होस्टल भेजे जाने के कारण मेरा भावनात्मक विकास धीमा पड़ गया. किशोरावस्था पूरी होने तक अभिभावकों को बच्चों को अपने पास ही रखना चाहिए. माता पिता की मजबूरियां कुछ भी हों, पर उनकी वजह से बच्चे का बचपन और भावी जीवन छीना जाना गलत है.

prashant sharma said...

main 31 sal ka hooo and jaldi delhi aa raha hoo...apke blog par delhi ke bare main padkar darr lagta hain....mera indore and naidunia chodne la mann nahi ho raha,,aap bada achha likhti hain keep it up

sushant jha said...

दीप्ती...तुमने सोचने पर मजबूर कर दिया।

Anil Pusadkar said...

ज़िंदगी की भागदौड़ मे खोते बचपन का सच्।

Anil Pusadkar said...

ज़िंदगी की भागदौड़ मे खोते बचपन का सच्।

udtakagaz said...

deepti
is prashan ka koi jawab nah
mine is haalat ko kuch is tarah likha hai

paet me padte hi dukh dardo ne samjhaya hai
jis ghar me pida hoge wohe ghar paraya hai
sandeep mishra

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर सवाल, जो आज के मां बाप से जरुर पूछना चाहिये, लेकिन उन का जबाब यही होगा कि हम सब ओलाद के लिये कर रहे है ,लेकिन यह भी झूठ,शायद आप के सवाल का जबाब ऎसे मां बाप के पास नही होगा,
आप ने बहुत सुंदर सवाल उठाया, ओर बहुत नपे तुले शव्दो मै, काश जो लोग ऎसा करते है, वो भी इसे पढ कर लज्जित होने की जगह अपनी गलती सुधारे, अपने बच्चो को उन का हिस्सा, उन का समय, उन का बचपन उन्हे दे, अपने लालच के लिये, अपनी इच्छा पुरी करने के लिये उन का बचपन उन से ना छीने.
दीप्ती जी आप का धन्यवाद यह मासुम बच्चे जरुर करेगे, जिनके मां बाप आप का लेख पढ कर अब भी सुधर जाये.
धन्यवाद

मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे

राजन अग्रवाल said...

KYA AAPKI SAHKARMI NAUKRI NAHI CHOD SAKTI?

Anonymous said...

dipti,
tumahre khayal sahe hai lekin us maa ka socho jo beti ka future secure karne ke liye he kaam kar rahe hai. uske dil se pucho kaise apni petjaye ko jhulaghar mein rakhte hoge. ho sakta hai tum bhi yahe karo. galti jhulaghar ya hostel nahe hai. galti risto ki garmahat ke khatam hone ki hai, jinme humare bade sath nahe hai. system to pura bigda hai na family tree ka. isko theek karne ke liye naye shuruaat kar apne bujurgo ko thamna hoga.
shubhkamnaye