Tuesday, July 7, 2009

शहर की भीड़ में खोया हुआ आदिवासी संग्रहालय...

हमारे देश में आदिवासियों की दशा अगर बुरी है तो उनसे जुड़े संग्रहालय की हालत तो बदतर है। आज अपने कार्यक्रम के सिलसिले में मैं दिल्ली में बने आदिवासी संग्रहालय गई। झंडेवालान मैट्रो स्टेशन के पास बने इस संग्रहालय को ढ़ूढ पाना ही अपने आप में बहुत बड़ा काम है। अंतरर्राष्ट्रीय कंपनियों के कपड़ों की मशहूर ब्रांडों की सेल के बीच कुछ आदिवासियों की मूर्तियाँ लगी हुई हैं। आज तो संग्रहालय का नाम तक दिखाई नहीं दे रहा था। असल में संग्रहालय के क़रीब ही बने हनुमान मंदिर में मंगलवार का भंडारा था। बड़ी लंबी लाइन लगी हुई थी भक्तों की। इन्हीं भक्तों के लिए लगे टेंट के पीछे संग्रहालय का कही छुप गया था। हम जब इस रेलम पेल में संग्रहालय के अंदर जाने का रास्ता खोज रहे थे तो कुछ लोगों ने रोका भी कि भई लाइन में आइए। उन्हें लगा कि हम मंदिर की लाइन में हैं। खैर हम संग्रहालय तक पहुंच गए। संग्रहालय कुछ अलग अलग कमरों को मिलकर बना हुआ था। सभी में ताले लगे हुए थे। जैसे जैसे हम आगे बढ़ते संग्रहालय का केयर टेकर ताले खोलते जाता। संग्रहालय में रखी एक एक वस्तु बहुत ही सुन्दर और ज्ञानवर्धक थी। हालांकि सबकुछ धूल में सना हुआ था लेकिन, इन सब में दिलचस्पी रखनेवाले के लिए ये एक बहुत ही बेहतरीन जगह थी। इस संग्रहालय में एक लाइब्रेरी भी है। इस लाइब्रेरी में आदिवासियों से जुड़ी हर सामग्री उपलब्ध है। इस छोटे-से कमरे में आकर आप आदिवासियों से जुड़ी हर जानकारी पा सकते हैं। लेकिन, अफसोस की इस संग्रहालय के बारे में यहां से रोज़ाना गुज़रनेवाले लोग भी इस बारे में नहीं जानते हैं। आदिवासी जो हमारे देश की धरोहर है जिनसे हमारा देश बना है, जो हमारे पूर्वज है। उनके बारे ही में हम आज कुछ नहीं जानना चाहते है। आधुनिकता की इस भीड़ भाड़ में हम आदिवासियों को भूलते जा रहे हैं। अगर आप कही दिल्ली आए तो लाला क़िले और कुतुबमीनार के साथ-साथ इस आदिवासी संग्रहालय में भी ज़रूर आए।

5 comments:

श्यामल सुमन said...

आधुनिकता की इस भीड़ भाड़ में हम आदिवासियों को भूलते जा रहे हैं।

ठीक कहा आपने। आधुनिकता की अंधी दौड़ में बहुत कुछ छूट रहा है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

P.N. Subramanian said...

इस संग्रहालय का तो पता ही नहीं था. अब जाना हुआ तो अवश्य ही जायेंगे.,बहुत बहुत आभार इस जानकारी के लिए..

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

इस संग्रहालय का तो पता ही नहीं था. अब जाना हुआ तो अवश्य ही जायेंगे.

आदर्श राठौर said...

मैं आज इसी विषय पर लिखने वाला था। लेकिन भाव सटीक रूप से अभिव्यक्त हुए हैं। एक सप्ताह पहले कुछ दिन लगातार झंडेवालान स्टेशन पर जाना हुआ था। एक दिन कौतूहलवश घूम आया था। मैट्रो स्टेशन ने इसके अस्तित्व को कुछ दबा सा दिया है।

विजय प्रताप said...

aap ne rasta bata diya, agli baar delhi jaunga to jyad dhundhana nahi padega.