Monday, August 31, 2009

सदियों और सोच के बीच फंसता और फंसाता युवा...

दिल्ली और भोपाल के बीच की दूरी का मुझे अंदाज़ा नहीं लेकिन, हाँ रातभर में ज़रुर पहुंच जाती हूँ। ये बात मैं इसलिए बता रही हूँ क्योंकि कई बार मुझे ये रातभर की यात्रा सदियों की यात्रा लगती है। दिल्ली देश की राजधानी होने के साथ-साथ एक महानगर भी है। यहाँ बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स के है, मैट्रो चलती है, विदेशी आते हैं, देश के बाक़ी हिस्सों से लोग नौकरी और पढ़ाई के लिए यहाँ आते हैं। भोपाल भी राजधानी है और वहाँ भी लोग आसपास के कस्बों आते हैं पढ़ने के लिए काम करने के लिए। इन सारी समानताओं के बावजूद दोनों शहरों की सोच और रहन-सहन में सदियों का अंतर साफ़ नज़र आता हैं। भोपाल में रहना आज के मुश्किल हुआ है लेकिन, दिल्ली जैसा जटिल नहीं। भोपाल में दूरियाँ इतनी भी लंबी नहीं हुई है कि घंटों लग जाए। फिर भी जो फ़र्क सबसे बड़ा हैं वो ये युवाओं की सोच का। दिल्ली में रहनेवाला युवा किसी बंधन में बंधना नहीं चाहता है। वो अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीता हैं। भोपाल का युवा भी आज़ाद ख्यालोंवाला नौकरी कर रहा है, अपनी पसंद से काम करता है लेकिन, फिर भी सोच में बहुत बड़ा अंतर है। वो अंतर है रिश्तों को समझने और उसे निभाने का। यहां युवा जब किसी रिश्ते को पकड़ता है तो उसे किसी न किसी मजबूरी के तहत ही उसे छोड़ता हैं। वो मजबूरी अधिकतर माँ-बाप का दबाव होती है। माँ-बाप का दबाव भी बहुत ही कम होता है युवाओं के मन का डर ही सबकुछ होता है। मेरे आसपास मौजूद कई दोस्तों को मैंने अपने माता-पिता के आगे झुकते देखा हैं। कई बार देखा है कि अगर कोई निभानेवाला प्यार करता भी है तो ये देखकर की जात क्या है कैसा परिवार है और घर में निभ सकता है या नहीं। ऐसे में कुछ अपवाद भी है जोकि अपनी बात पर अड़े ही रहते हैं। लेकिन, इस देश का राजधानी के हालात कुछ अलग हैं। यहाँ का युवा फ़्री है हर बंधन से आज़ाद। वो किसी भी झंझट में नहीं पड़ता हैं। अपनी मर्ज़ी से रिश्ते कायम करता है निभाता है और तोड़ता हैं। वो कभी ये नहीं सोचता है कि अगले की जात क्या है या कि इस रिश्ते का इस समाज में भविष्य क्या है। या फिर ये कि अगर मैं इस रिश्ते को तोड़ता हूँ तो इसका असर क्या होगा। एक ही समय और एक समाज के दो अलग-अलग युवा वर्गों की ये वो सोच है जो मुझे ओवर नाइट जर्नी नहीं एक सदी का अंतर नज़र आती है। लेकिन, कुछ और भी है जो मुझे खटकता हैं। वो हमारा, हम युवाओं का दोहरा स्वभाव, दोहरा मापदंड। दिल्ली के इस खुलेपन का मज़ा हरेक युवा लेना चाहता हैं, वो चाहता हैं कि वो भी मज़े ले इस खुलेपन के। कोई बॉयफ़्रेन्ड बनाएं गर्लफ़्रेन्ड बनाएं। उसके साथ घूमे फिरे और मौज करें। भोपाल में एक सादगी भरी ज़िंदगी बितानेवाला युवा यहाँ हेप बन जाए तो कोई ताज्जुब नहीं। दिल्ली आते ही वो अपने रूम पर मस्ती करना चाहता है। लेकिन, घर पर रहते हुए वो ऐसा कुछ नहीं करता है। युवाओं की मस्ती मनमर्ज़ी में केवल तब ही बदलती हैं जब उसके इरादे मजूबत हो या फिर वो अपने माँ-बाप को अपने पैसे के दम पर दबाना जान गया हो। माँ-बाप के कर्ज़े चुकता करके और उन्हें पैसों के तले दबाकर अपनी मर्ज़ी चलानेवाले ये युवा मेरे आसपास थोक के भाव में उपलब्ध है। दिल्ली में रहकर स्वछन्द ज़िंदगी जीनेवाले ये युवा अगर अपने-अपने भोपालों में ही रह जाते तो शायद ऐसा न करते। भोपालों में रहनेवाले युवाओं में भी कई वो होते हैं जो कि किसी कस्बे से उठकर वहाँ आए हो। युवाओं की ये सोच बहुत ही खतरनाक है। अपनी मर्ज़ी से जीवन जीना या फिर अपनी मर्ज़ी का जीवन साथी खोजना बिल्कुल ग़लत नहीं हैं। लेकिन, ऐसा सिर्फ़ इसलिए करना कि आपके पास शक्ति है ग़लत है। क्योंकि इन दिल्लियों में भी ऐसे युवा मौजूद है जो मस्ती तो पूरी करते हैं लेकिन, शादी जात देखकर...

3 comments:

विनीत कुमार said...

अपना भी कुछ ऐसा ही अनुभव है। आपकी ये लाइन बहुत ही अपीलिंग है कि माँ-बाप के कर्ज़े चुकता करके और उन्हें पैसों के तले दबाकर अपनी मर्ज़ी चलानेवाले ये युवा मेरे आसपास थोक के भाव में उपलब्ध है

अंकुर गुप्ता said...

"अपनी मर्ज़ी से जीवन जीना या फिर अपनी मर्ज़ी का जीवन साथी खोजना बिल्कुल ग़लत नहीं हैं। लेकिन, ऐसा सिर्फ़ इसलिए करना कि आपके पास शक्ति है ग़लत है।"
पूरे लेख का सार ये लाइने कहती हैं. एकदम सही बात.

SHANKAR said...

Well, its not possible to repay good deeds of our parents. No doubt modern youth has this kind of thinking. They love to have Sweet Corn being sold in packaged form in Shopping Malls, but having Bhutta looks cheap.

We can't help it. This distance is not only between Delhi and Bhopal. Its about so called western culture and our original values. I belong to Gaya (in Bihar), spent 6 years in Delhi and now in Bhopal since last 3 years. So, witnessed the truth behind your words very closely.