Monday, December 7, 2009

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कल रात मैंने ना जाने किस सज्जन के गले से निकली उल्टी साफ की। ये गंदगी भोपाल एक्सप्रेस की बोगी नम्बर नौ की बर्थ नम्बर ग्यारह और उसके आसपास जमकर सूख चुकी थी। दरअसल, कल मम्मी भोपाल लौट गई। ये बर्थ मम्मी की थी। ट्रैन में पहुंचते ही मन खराब हो गया। मम्मी परेशान थी कि ऐसी बर्थ पर कैसे लेट कर जाएगी। मैंने स्टेशन पर तैनात रेल्वे पुलिस अधिकारी से इस बारे में शिकायत की। मुझे ये आश्वासन दिलाया गया कि जल्द ही कोई सफाई कर्मचारी वहाँ पहुंच जाएगा। लगभाग पाँच मिनिट बाद हम सभी ने ये आकाशवाणी भी सुनी कि फलां कोच की फलां बर्थ सफाई कर्मचारी पहुंचे। हम फिर पाँच मिनिट तक उस देव पुरुष के इंतज़ार में बैठे रहे। खैर, वही हुआ जो होना था सफाई कर्मचारी नहीं आया या फिर नौ बजने का इंतज़ार कर रह होगा कि कब ट्रेन चले और मैं वहाँ खानापूर्ति के लिए पहुंच जाऊं। इसके बाद हमारा काम शुरु हुआ। ट्रेन चलने मैं कुछ 15 मिनिट बचे थे। मैंने स्टेशन से पानी का इंतज़ाम किया। प्लटफ़ॉर्म की कुछ दुकानों पर अख़बार पूछे जो कि नहीं मिले। इसके बाद प्लेटफ़ॉर्म पर यूँ बिखरे पड़े ट्रेन चार्टों को बंटोरा और उस गंदगी की सफाई की। आसपास बैठे यात्रियों ने भी अपने-अपने तरीक़े से मदद की। मैंने मम्मी को कहा कि वो टीसी से इस बारे में शिकायत करें। मम्मी ने शिकायत तो कि लेकिन, जवाब टका-सा मिला कि सफाई तो नहीं होगी। मम्मी आज सकुशल भोपाल पहुंच गई लेकिन, मन में व्यवस्था के प्रति गुस्सा इतना भर गया कि मैंने सोच लिया इसका विरोध ज़रूरी है। मैं भारतीय रेल्वे में इसके खिलाफ शिकायत करना चाहती हूँ। अगर किसी को तरीक़े की जानकारी हो तो मुझे ज़रूर बताएं।

5 comments:

संजय बेंगाणी said...

तरीका तो पता नहीं, ब्लॉग पर डाल कर जरूर अच्छा किया.

हमें भी जानने की जिज्ञासा है.

Anonymous said...

दीप्ति जी,

आप इन गैर-सरकारी वेबसाईट्स की सहायता ले सकती हैं

http://www.consumercomplaints.in/bycompany/indian-railway-a12053.html

http://www.icomplaints.in/indian-railways-complaints.html

http://www.consumercourt.in/railways/

http://www.complaintsboard.com/byurl/indianrail.gov.in.html

बी एस पाबला

विवेक रस्तोगी said...

रेल्वे स्टेशन पर शिकायत पुस्तिका उपलब्ध होती है स्टेशन मास्टर के पास, आप उसमें शिकायत दर्ज करवा दीजिये हालांकि ये झोनल ओफ़िस से निवारण की जाती हैं परंतु टका सा जबाब ही सुनने को मिलता है। ये कर के देखा जा सकता है।

Shambhu kumar said...

आप तो पत्रकार हैं... दिन रात लोकसभा चैनल के लोकसभा में रहती हैं... क्यों न सीधे बंगाली शेरनी को फोन लगा देती... फोन नंबर सरकारी टेल पर मिल जाएगा... देर किस बात की.. लगा दीजिए फोन... नहीं तो वहीं आमरण अनशन पर बैठ जाती... सिर्फ कलम से ब्लॉग पर लिख डालने से नहीं होगा... कुछ तो धरातल पर कीजिए मैडम

Aadarsh Rathore said...

पत्रकार को अपने व्यवसायिक 'विशेषाधिकार' का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए..। दीप्ति जी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल नहीं किया इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। बहरहाल धरातल पर कुछ करने की सलाह देने वाला व्यक्ति वह शख्स है जो एक जीता जागता इंसान है...और जिसके रहने और न रहने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता...
ये व्यवस्था तभी सुधर सकती है जब लोगों के अंदर खुद से ये भावना जगाई जाए... लेकिन ऐसा करना मुश्किल है। फिर एक रास्ता है कि कानूनों को कड़ा कर दिया जाए...। इसके लिए राजनेताओं को कुछ करना होगा...।
और मैं कुछ ऐसा ही सोचकर राजनीति में जाने की इच्छा रखता हूं।