Friday, September 10, 2010

10 मिनिट में 100 खबरें...

रोज़ाना कम से कम तीन से चार बार परिचितों के फोन केवल दिल्ली में बाढ़ की स्थिति पूछने के लिए आते हैं। मैं ये बताते-बताते थक जाती हूँ कि ऐसी कोई बात नहीं है। दिल्ली में बाढ़ नहीं आई है। हाँ कुछेक यमुना के पास बसे निचले इलाकों में पानी भर गया है। लेकिन, किसी को मेरी बात पर यकीन नहीं होता हैं। हरेक को लगता है कि मैं झूठ ही बोल रही हूँ। आज सुबह ही फोन पर मुझसे ये पूछा गया कि इंडिया गेट तक सुना है पानी आ गया है....ग़लती इसमें दिल्ली से दूर दूसरे शहरों में रहनेवाले लोगों की नहीं बल्कि खबरिया चैनलों की है। दनादन खबरें दिखाते ये चैनल जोकि हमें खबरें ठूंसाते है आजकल नाव में बैठकर बुलेटिन पढ़ रहे हैं। खबर देखने के लालच में कल जब टीवी ऑन किया तो एक खबरिया चैनल पर एंकर क्रोमा की नाव में बैठी थी तो दूसरे में असल की नाव में। पूर्वी दिल्ली के डूबने की खबरें में पूर्वी दिल्ली के निचले इलाके में बने अपने रूम पर बैठकर ही सुन रही थी। अचानक से कही से रिपोर्टर आ जाता है और चिल्लाने लगता है कि देखिए मेरे पीछे का नज़ारा कैसे सब कुछ डूब चुका हैं। अब बारिश के दिनों में कौन सी ऐसी नदी होती होगी जिसके किनारे पर पानी ना आ जाता हो। लेकिन, हमारे चैनलों पर आजकल खबर दिखाने का चलन कुछ कम हो चला हैं। अब तो डराने का मौसम आ गया है। बारिश से डराओ, तूफान से डराओ, तहखाने की मौत से डराओ, डराओ, डराओ और बस डराओ। डराने के साथ-साथ इन चैनलों पर दूसरी जो चीज़ आपको मिल जाएगी वो है उधार का मनोरंजन। अगर आपको कोई भी कामेडी शो मिस हो गया हो घबराईए मत आपको प्राइम टाइम पर कॉमेडी से लेकर खतरों के खिलाड़ी और यू ट्यूब के विडियो सब कुछ मिल जाएगे। खबरें भी मिलेगी, लेकिन उसके लिए आपको लगातार देखते रहना पड़ेगा पता नहीं कब अचानक 10 मिनिट में 100 खबरें खत्म हो जाए और फिर आपको खबरिया चैनल पर खबरें देखने के लिए दो यै तीन घंटे का लंबा इतंज़ार करना पड़े...

2 comments:

Anonymous said...

Thank you, that was extremely valuable and interesting...I will be back again to read more on this topic.

विनीत कुमार said...

बिल्कुल सही बात लिखी आपने। मैंने भी पोस्ट लिखी थी- मां तुम सास-बहू ही देखती रहना,न्यूज चैनल्स नहीं।.