कुछ दिन पहले की बात है। मैट्रो में चढ़ते ही मुझे एक चेहरा पहचाना सा लगा। उसे देखकर लगाकि ये तो मेरी बैचमेट सी लगती हैं। मैं लोगों को पहचानने के मामले में बहुत ही कच्ची हूँ। इसलिए मैं उसे देखकर भी चुप रही। मेरे साथ मेरा एक दोस्त भी था। हम सभी एक साथ ही पढ़े हुए हैं। सो, मैंने उससे कहा कि- इसकी शक्ल हमारी एक बैचमेट से मिलती है। उसने उसे देखा और कहा कि अरे ये तो वही हैं। इसके बाद हमने देखा कि वो भी हमें देख रही हैं। मेरे दोस्त के कहने पर भी मेरा शक बना रहा और न उसने हमें टोका और न हमने उसे। खैर, वो हमारे साथ में दो साल पढ़ी हुई एक बैच मेट लड़की ही थी। वो मेरे फेसबुक में मेरी दोस्त भी है। एक दूसरे के स्टेट्स पर कमेन्ट हम करते रहते हैं। हाय से लेकर हैलो तक जारी हैं। लेकिन, इस सबके बाद भी सामने पड़ने पर मैं उसे पहचान नहीं पाई। उसके मन या दिमाग में क्या था ये मैं नहीं जानती। इस घटना के बाद से मैं लगातार यही सोच रही हूँ। कि हमें कैसे होते जा रहे हैं। फेसबुक पर दोस्ती किए जा रहे हैं और असल में मिलने पर एक दूसरे को पहचान भी नहीं पा रहे हैं।
फेसबुक पर मैं बहुत ही मशहूर या फिर बहुत सक्रीय नहीं हूँ। बावजूद इसके मेरी फ्रेन्ड लिस्ट में पचास से ज़्यादा लोग पेन्डिंग हैं। आधे से अधिक को मैं जानती नहीं हूँ और आधों को जानती तो हूँ लेकिन, कभी दोस्तीवाली बात महसूस नहीं की मैंने। ऐसे में, मैं यही सोचती रहती हूँ कि इनका क्या करूँ। इगनोर करने से डर लगता है कि कही वो बुरा न मान जाए। सच में अतिसामाजिक होना मेरे लिए एक बहुत ही कठिन काम है। मेरे लिए किसी को दोस्त कहना एक बहुत ही बड़ी बात हैं। ग्रेजुएशन में एक सौ बीस लड़कियों की क्लास में दो ही मेरी दोस्त बन पाई। फेसबुक पर अकाउन्ट बनाने के महीनों बाद मुझे वो समझ में आया। खैर, सामाजिक होना ही मेरे लिए मुश्किल बात हैं ऐसे में वर्चुअली सामाजिक होना तो और भई भारी काम लगता है। ऐसे में एक साथ में पढ़े हुए साथी के सामने पड़ने पर उसे नहीं पहचान पाना और फिर उसके साथ वरचुअली दोस्ती बढ़ाना मेरे लिए बहुत ही कष्टदायी है...
1 comment:
फेसबुक पर ही नही ज़िन्दगी की फेसबुक पर भी यह समस्या आती है जब कोई अचानक मिल जाता है और पूछता है पहचाना और हम उसे पहचान नही पाते हैं ।ऐसा क्यों होता है , कुछ समय बाद बताउंगा अपने ब्लॉग " ना जादू न टोना " पर ।
Post a Comment