Friday, April 22, 2011
सफ़र से मिलती सीख...
बांटने से डर बढ़ता है। आप अगर जानबूझकर किसी वस्तु या व्यक्ति से दूर रहेंगे तो आपकी उसके बारे में राय आभासी होगी। ऐसे वक़्त में अगर उसके बारे में एक भी नकारात्मक ख़बर आ गई तो बस। ये बात मुझे महसूस हुई गुरुवार को। जब रात साढ़े दस बजे मैं ग्रीन पार्क मेट्रो स्टेशन पहुंची। मेट्रो से सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन का साधन शायद ही कोई हो। इस बात को जानते हुए भी मैं थोड़ी बेचैन सी थी। मुझे आजकल ट्रेन के लेडीज़ कोच में महिलाओं के साथ सफ़र करने की ऐसी आदत हो गई है कि सामान्य कोच में पुरुषों के साथ यात्रा करने में घबराहट होती है। ऐसे में रात के साढ़े दस बजे तो लेडीज़ कोच के मायने को ही पुरुष यात्री नकार देते है। खैर, मेट्रो आई और लेडीज़ कोच में एक भी पुरुष यात्री नहीं था। दरअसल पूरा कोच खाखी रंग में पुता हुआ सा लग रहा था। पूरे कोच में सीआईएसएफ़ की महिला सिपाही बैठी हुई थी। हर स्टेशन से चार-पांच का इजाफ़ा भी हो रहा था। सभी अपनी-अपनी ड्यूटी ख़त्म करके आ रही थी। बस उनकी खाखी वर्दी के डर से ही किसी की हिम्मत नहीं हुई लेडीज़ कोच में घुसने की। ग्रीन पार्क से राजीव चौक का सफर मैंने सूकून से काटा। मेरे मन को खाखी वर्दी पहनी महिलाओं को देखकर बहुत आराम मिला। अंजान डर से थोड़ी सी राहत। इसके बाद राजीव चौक पहुंचते ही मन फिर डूबने लगा। दिन की आखिर मेट्रो को पकड़ने के लिए मुझे चालीस मिनिट तक वही रुके रहना पड़ा। पूरे समय यही तनाव कि लेडीज़ कोच में पुरुष ना बैठे हो। अंजान पुरुषों के साथ सफ़र ना करने का हश्र ऐसा होगा कभी सोचा नहीं था। एक समय था जब मैं बस और मेट्रो में उनके साथ कंधे से कंधा टकराकर सफ़र करती थी। आगेवाले डिब्बे की तरफ टहल रहे लड़कों को देखकर मेरा बीपी बढ़ रहा था। मुझे अचानक से लगने लगा कि इस तरह का बंटवारा भले ही सहुलियत देता हो लेकिन, ये मन में कई भय भी छोड़ देता है। अचानक से ही साथ में बैठा अंजान पुरुष वहशी लगने लगता है। एक आरामदायक सफर तनाव भरा हो जाता है। स्टेशन पर बिताए चालीस मिनिट और उसके बाद ट्रेन में गुज़ारे 20 मिनिट पूरे तनाव में गुज़रे। हालांकि इस दौरान न तो किसी पुरुष ने मुझे घूरा और न ही बदतमीज़ी की। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि इस तनाव से ही मैं इतनी कमज़ोर हो रही हूँ कि अगर किसी ने कोई बदतमीज़ी की भी तो मैं शायद अपना बचाव न कर सकूं। समाज ऐसा होना चाहिए जहां सभी एक साथ आरामदायक और दोस्ताना तरीक़े से रह सके। यूं अलग-अलग कोच में बांट देने से एक दूसरे के प्रति सम्मान कम और डर ज़्यादा बस जाता है। हमें एक दूसरे के साथ रहकर एक दूसरे का सम्मान करना आना चाहिए। ना कि जिस चीज़ से डर लगे उससे यूं दूर भागना चाहिए।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment