Friday, February 22, 2013

मोबाइल पागलपन...


कुछ दस साल पहले ज़ी टीवी पर गुब्बारे आया करता था। हर हफ्ते नई कहानियाँ, नए कलाकार, नए निर्देशक... लेकिन, लेखक हर बार एक ही गुलज़ार। उस किश्त में एक कहानी मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर थी। जिसमें टीनू आनंद को कन्वेन्स करने के लिए सेल्समैन उन्हें सीता, राम और लक्ष्मण की कहानी सुनाता है। जिसमें रावण के भिखारी के रूप में आता है और सीता को लक्ष्मण रेखा पार करने के लिए कहता है। ठीक उसी वक्त सीता लक्ष्मण को मोबाइल पर कॉल करती है और लक्ष्मण आकर रावण को वहाँ से चलता कर देते हैं। ये गुलज़ार की दूरदर्शिता ही थी कि उन्हें दस साल पहले ही मोबाइल के प्रति लोगों की आसक्ति का अंदाज़ा हो गया था। लेकिन, अब महसूस होता है कि ये आसक्ति अब एक बुरी लत में बदल गई है। पिछले चार दिन में मैंने, भुवन ने पंकज ने कुल जमा तीन नाटक श्रीराम आर्ट सेन्टर में देखें। इन नाटकों के मुफ्त में दिखाए जाने की वजह से भीड़ का अपार होना लाज़मी था। लेकिन, इस भीड़ में जो सबसे दिलचस्प था। वो था, लोगों का मोबाइल प्रेम। अव्वल तो इतने सालों में और लगातार बोले जाने के बाद लोगों को अब अपने आप ही सिनेमा हॉल या सभागरों में मोबाइल को शांत करने की आदत हो जानी चाहिए थी। लेकिन, अफसोस की ऐसा नहीं हुआ है। सभागार में रोज़ाना ही मोबाइल बंद या शांत करने का आदेश दिया जाता था। सौम्य और कभी-कभी व्यंग के लहेजे में दर्शकों को ये कहा जाता था। लेकिन, बावजूद इसके लोगों के लगातार मोबाइल बजते रहते थे। कुछ दर्शक तो ऐसे थे जिनके मोबाइल एस निश्चित अंतराल पर बजते ही बजते थे। शायद उन्हें मोबाइल को साइलेन्ट करना नहीं आता होगा... खैर, कल जब रैलिंग पर लटककर हम नाटक देख रहे थे तो ऐसा महसूस हो रहा था कि तारे ज़मीं पर आ गए हो। अंधेरे में मोबाइल की रौशनी पूरे वक्त टीम-टीमा रही थी। सीटों पर आराम से बैठकर नाटक देखने के बजाय मोबाइल की एप्लीकेशन में उलझे लोगों (ख़ासकर युवाओं) को देखकर लग रहा था कि घर पर बैठकर ही ये काम कर लेते। कम से कम हम ही बैठकर आराम से देख लेते नाटक। खैर, मोबाइल की लत शराब या गुटखे की लत से भी ज्यादा जानलेवा है क्योंकि ये लत के आदी को कम और आसपासवालों को ज्यादा नुक्सान पहुँचाती है। सिनेमा या नाटक देखनेवालों का ध्यान भंग करवाती है और साथ ही मंच पर खड़े कलाकारों में झुंझलाहट पैदा करवाती है। बड़े-बड़े, मंहगे-मंहगे, नई-नई तकनीकों से लैस मोबाइल फोन जहाँ इस्तेमाल करनेवाले की हथेली पर पूरा संसार सजा देते है वहीं आसपासवालों को बिना किसी गुनाह के सज़ा मिल रही है... 

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