Saturday, June 15, 2013

जी हम यहाँ रहते हैं... आप अपना समझिए...

जैसे ही किसी पर्यटन स्थल पर कदम पड़ते है हर चीज़, हर व्यक्ति, मौसम का हर मिजाज़ और हवा का हर झोंका  हम गौर से देखने, महसूस करने लगते हैं। कैमरा क्रांति के बाद से हर पल को बस अपने कैमरों में कैद करने पर तुल जाते हैं।
ओह!!! वो देखो कैसा घर है...
अरे!!! यहाँ पेड़ कैसे उगते है ना...
ये वाला पौधा...
वो बच्चों का स्कूल...
अरे!!! दादाजी की टोपी देखी क्या???

हर चीज़ को हम हतप्रभ मुद्रा में देखते रह जाते हैं। कभी कुछ अपना-सा लगता है, कभी सब कुछ अंजान और अनोखा। ऐसी जगह पर आपके उतरते ही लोग आपको घेर लेते हैं।
हाँ साब होटल देखना है आपको...
कहाँ जाना है आपको....
मैं आपको बताता हूँ साब बढ़िया-सी जगह...
साइट सींइग भी करवा दूंगा साब...
वहाँ उतरते ही लगता है हाय राम कहाँ जाएं, क्या करें। लेकिन, पर्यटन के लिए मशहूर किसी भी जगह पर आम लोग भी रहते हैं, हमारी तरह ही काम करते हैं, आराम करते हैं... ये सब कौन सोचता होगा।


             इस बार जब चंबा के बस स्टैण्ड पर हम उतरे तो दोनों को ही एक नया-सा अनुभव हुआ। यहाँ किसी ने आकर हमें घेरा नहीं। अव्वल हमें ही आगे होकर चंबा के सर्किट हाऊस का पता पूछना पड़ा। कोई कुली हम पर लपका नहीं। ऐसा लगा जैसे देवास या मंदसौर के बस स्टैण्ड पर आ गए है। जहाँ से आगे का रास्ता हमें मालूम हो। बाज़ार में कोई आपको अपनी दुकान की ओर नहीं खींचता है, डलहौजी के मुख्य बाज़ार में स्कूली बच्चों की और स्थानीय लोगों की भीड़ से तो मैं चौंक ही गई। कुछ इक्का दुक्का सैलानी खुद के लिए जगह बनाते चल रहे थे। चंबा शहर में तो वो भी नज़र नहीं आएं। शहर के बगीचे चंबा चौगान में आसपास के दफ्तरों, दुकानों और घरों में रहनेवाले आराम फरमाते दिखाई देते थे। रावी के किनारे बने कैफे में शाम होते-होते बुज़ुर्गों का समूह अपना अड्डा जमा लेता था। चंबा वैली के लगभग सात-आठ गांव हमने घूमे। किसी भी गांव में हमें कोई हड़बड़ाहट नज़र नहीं आई। हम आगे होकर कुछ पूछते तो वो मुस्कुराकर जवाब दे देते। एक दो ने कहा भी कि आप कहाँ यहाँ आ गए मनाली या शिमला जाना था यहाँ तो कुछ घूमने के लिए नहीं है हम लोग तो बस ऐसे ही रहते हैं। अब उन्हें हम क्या बताते है कि उनके बस ऐसे ही रहने की कला ने हमें आकर्षित किया। शहर की भीड़ से निकलकर फिर किसी हिल स्टेशन की भीड़ का हिस्सा बनना न मुझे पसंद है, ना भुवन को। हम दोनों जब भी दिल्ली से भागते है तो या तो ऑफ सीज़न जाते हैं या ऐसी जगह जहाँ बस आराम पसरा हो। इस बार चंबा वैली के गांव, पहाड़, घुमावदार सड़कें, छोटे-छोटे चाय के टप्पर और लोगों को देखकर महसूस हुआ कि ये पर्टयन स्थल नहीं इन लोगों का घर हैं। जहाँ ये लोग आराम से रहते हैं, अपना काम करते हैं, आपसे इन्हें कोई मतलब नहीं, ये बस अपने में ही खुश हैं। आपको घूमना है तो अपना घूमिए... अपना समझिए... ये तो अपने में ही मस्त हैं...


 

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