Saturday, December 28, 2013

फारुख का जाना...


उनका जाना...

         फारुख शेख के पोस्टर शायद ही किसी ने अपने कमरे में लगाए हो। लेकिन, ये तय है कि वो हरेक के पसंदीदा कलाकारों की सूची में होगें। वो हिन्दी सिनेमा के हिसाब से हीरो मटैरियल ना होते हुए भी बेहतरीन हीरो थे। मुख्य कलाकार के रूप में उन्होंने जो भी फिल्म की, जो किरदार उन्होंने निभाया उसे कोई निभा सकता है ये सोचना भी मुश्किल काम है। उनके चेहरे की सौम्यता ही थी जो मुझे आकर्षित करती थी। और, उनकी कलाकारी जो नकारात्मक या कुटिल किरदार में उसी चेहरे को ऐसा बना देती थी कि आपको चिढ़ आ जाए। मुझे उनकी लगभग सभी फिल्में पसंद है नूरी को छोड़कर (और तूफान को मैं उनकी फिल्म नहीं मानती हूँ)। वो कथा हो, किसी से ना कहना हो, पीछा करो जैसी कुछ तो भी कॉमेडी हो या रेखा के साथ उमराव जान और बीवी हो तो ऐसी हो... फारुख शेख एक ऐसे अभिनेता है जिनके बारे में मैं बहुत ज्यादा कुछ नहीं जानती। ना मैंने कभी कोई कोशिश की जानने की। दरअसल मेरे मुताबिक वो अपने आप में रहने इंसान थे। जो चाहते होगे कि दर्शक उन्हें सिर्फ़ उनके काम से जाने... किरदार से पहचानें। टेलिविज़न पर उनका धारावाहिक चमत्कार एक समय पर मेरा पसंदीदा था और जीना इसी का नाम के ज़रिए तो मेरे मुताबिक़ उन्होंने संचालन को एक नया रूप दिया था।
      फारूख शेख की सभी फिल्मों में मेरी पसंदीदा है- साथ-साथ। शायद दीप्ति नवल का निभाया हुआ किरदार गीता मुझए बेहद पसंद है इसलिए। अविनाश और गीता के बीच के प्यार और तनाव को जिस खूबसूरती से फारुख शेख और दीप्ति नवल ने निभाया है वो दूसरी बार हो पाना असंभव है। ये दोनों जब एक साथ पर्दे पर आते थे तो लगता था कि बस यहीं दोनों अस्तित्व में हैं।
           फारूख शेख का यूँ अचानक चले जाना दुखद है। लेकिन, वो मेरी पसंदीदा हीरो की सूची में थे और हमेशा बनें रहेंगे...  

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