Wednesday, April 23, 2014

2 स्टेट्स

       मैंने कई ऐसी फिल्में देखी हैं जो किसी उपन्यास पर आधारित होती थी। लेकिन, शब्द दर शब्द किसी उपन्यास की कार्बन कॉपी कल पहली बार देखी। उपन्यास में हमें बुक मार्क की सुविधा मिलती है हम किसी भी पन्ने पर रुक सकते हैं लेकिन, फिल्म के साथ ऐसा नहीं है (खासकर सिनेमा हॉल में)। मैंने कल सचमुच रिमोट को मिस किया। चेतन भगत को अभी फिल्मों की कहानी लिखना सीखना होगा (वैसे तो उन्हें उपन्यास लिखना भी सीखना ही है)। निर्देशक अभिषेक भी नए है इसलिए शायद लिहाज में चेतन को कुछ बोल नहीं पाए होगें। बाक़ी फिल्म में अगर कलाकारों की बात की जाए तो सभी बढ़िया थे। आलिया तो खैर इस वक्त कमाल कर ही रही है। और, इस बार वो अपनी बच्चीवाले लुक से बाहर निकलकर युवती भी लगी है। अर्जुन औरंगजेब के बाद दूसरी बार मुझे अच्छे लगे है (लुक और अभिनय दोनों में)। अर्जुन की किस्मत बहुत चमकीली नहीं है कि केवल उनके अच्छे अभिनय के दम पर फिल्म चल जाए। उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि वो किसके साथ काम कर रहे हैं। इस फिल्म में उनके अभिनय पर निर्देशक और लेखक ने मिलकर पानी ढोला है। फिल्म में सबसे अच्छे रहे रोनित रॉय और अमृता सिंह। दोनों ही अभिनय की इस दूसरी पारी में बेहतरीन काम कर रहे हैं। मेरे मुताबिक एक महीने रुक जाए और इसे कमर्शियल ब्रेक के साथ टीवी पर देखे। उतनी बोझिल नहीं लगेगी जितनी कि सिनेमा हॉल में...






    अंत में कल सिनेमा हॉल में सबसे अच्छा मुझे टाइगर श्रॉफ़ लगा। फिल्म शुरु होने से पहले हीरोपंथी का प्रोमो दिखाया गया। टाइगर दिखने में अच्छे लगे और पहली फिल्म के हिसाब से उनकी संवाद अदायगी और अभिनय शैली अच्छी है। जैकी श्रॉफ़ एक अच्छे कलाकार है और टाइगर हर मामले में उन पर गए लगते हैं।  

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