Friday, July 31, 2020

फिल्मों मे " कोरियोग्राफी " को अहम स्थान दिलवाया था सरोज खान ने

बॉलीवुड की मशहूर कोरियोग्राफर सरोज खान का इकहत्तर साल की उम्र में गत 03 जुलाई 2020 को मुम्बई में निधन हो गया. उनके अवसान के साथ ही फिल्मजगत ने एक ऐसी शख्सियत को खो दिया जिसने फिल्मों मे कोरियोग्राफी को एक अहम् स्थान दिलवाया और फिल्म में कोरियोग्राफर्स की भूमिका को नये सिरे से पारिभाषित कर कोरियोग्राफर को एक मुकम्मल स्धान दिलवाया.किसी भी पेशे में अपने अस्तित्व की लड़ाई तो हर पेशेवर लड़ लेता है मगर वो व्यक्ति जो अपने पेशे, अपने कैरियर से जुड़े साथियों की पेशे से जुड़ी समस्याओं के समाधान और उनकी लड़ाई में कँधे से कँधा भिड़ाकर जुटता है वो सच्चे अर्थों में एक मसीहा होता है और कोरियोग्राफर सरोज खान एक ऐसी ही मसीहा थीं. उन्हेंअपने जीवन की आखिरी सांस तक साथी कोरियोग्राफर्स की चिंता थी .यही कारण है कि वह सिने डांसर्स एसोसिएशन (सीडीए) में फूट डालने की चाहत रखने वालों से जूझती रहतीं थीं .सरोज खान नेअपने एक साक्षात्कार में कहा था कि कुछ लोग सीडीए को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जो नहीं होना चाहिए.मैं जब 10 बरस की थी, तब इस एसोसिएशन को ज्वाइन किया था.यह एसोसिएशन वस्तुत: नये और संभावनाशील  कोरियोग्राफर को अवसर दिलवाने और उनके संरक्षण के लिये काम करता है और सरोज खान उसे हित सरक्षण की भूमिका में बनाया रखना चाहती थीं.

सरोज खान ने कोरियोग्राफी का बाकायदा शिक्षण - प्रशिक्षण लिया था 

सरोज खान का जन्म 22 नवंबर 1948 में निर्मला नागपाल के रूप में हुआ था .तीन साल की उम्र में ही उन्होंने बाल कलाकार के रुप में काम करना शुरू कर दिया था.फिल्मों के उस समय के मशहूर कोरियोग्राफर बी.सोहनलाल की शागिर्दी में उन्होंने नृत्य निर्देशन की आरम्भिक शिक्षा गृहण की बाद में उन्होंने खुद नृत्य निर्देशन के कैरियर का आग़ाज किया. पहले असिस्टेंट कोरियोग्राफर के रुप में और बाद में एक स्वतंत्र कोरियोग्राफर के रुप में वर्ष 1974 में फिल्म "गीता मेरा नाम" की कोरियोग्राफी की थी.हालाँकि, उन्हें ख्याति प्रप्त करने के लिये कई साल इन्तज़ार करना पड़ा  लेकिन एक बार जब उनकीप्रतिभा का जादू चला तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा, सुप्रसिद्ध अभिनेत्री श्रीदेवी के साथ वर्ष 1987 में मिस्टर इंडिया में - " हवा हवाई " और वर्ष 1989 में चाँदनी फिल्म के गाने -" मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियाँ "की कोरियोग्राफी से  उन्हें ख्याति मिली.बाद में माधुरी दीक्षित के साथ, वर्ष 1988 में तेजाब फिल्म के गाने - "एक दो तीन.. ", वर्ष 1990 में थानेदार फिल्म में -" तम्मा तम्मा लोगे.. " औ वर्ष 1992 में बेटा फिल्म में गाने -"धक् धक् करने लगा.. " की बेहतरीन कोरियोग्राफी की और एक नया ट्रैंड कायम किया.इन गानों की कोरियोग्राफी के बाद सरोज खान का नाम बॉलीवुड के सफलतम कोरियोग्राफरों में आ गया.वर्ष 2013 में सरोज खान ने फिर एक बार माधुरी दीक्षित के लिये फिल्म -  " गुलाबी गैंग " में कोरियोग्राफी की थी. 

तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने वाली बिरली कोरियोग्राफर थीं सरोज खान

सरोज खान को कोरियोग्राफी के लिये अपने लम्बे कैरियर में अनेक पुरस्कार मिले.बेस्ट कोरियोग्राफी के लिये उन्हें तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले.ऐसा सम्मान पाने वाली सरोज खान संभवतः पहली नृत्य निर्देशक थीं. उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार वर्ष 2002 में फिल्म-" देवदास "के लिये, वर्ष 2006 में एक तमिल फिल्म -"श्रृँगारम् "के लिये और वर्ष 2007 में फिल्म -"जब वी मेट "के लिये मिला. इसीप्रकार उन्हें बेस्ट कोरियोग्राफी के लिये आठ बार फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले. वर्ष 1989 में फिल्म-"तेजाब" के लिये, वर्ष 1990 में फिल्म -"चालबाज" के लिये, वर्ष 1991 में -"सैलाब" , वर्ष 1993 में -"बेटा" , वर्ष 1994 में -"खलनायक " , वर्ष 2000 में फिल्म- "हम दिल दे चुके सनम" के लिये, वर्ष 2003 में - फिल्म -"देवदास " के लिये और वर्ष 2008 मे -" गुरु " फिल्म के लिये उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिले.

छोटे परदे पर भी सरोज खान की उपस्थिति आकर्षण का केंद्र होती थी
फिल्मों से इतर टीवी पर यानी छोटे परदे पर भी सरोज खान की उपस्थिति आकर्षण का केंद्र होती थी. सरोज खान ने डाँस के टीवी शो में ज़ज के रुप में भी प्रतिष्ठा अर्जित की. वर्ष 2005 में स्टार वन के रियलिटी टीवी डाँस शो -"नच बलिये" में वो तीन जज़ेस की पैनल में शामिल थीं.वे इसी डाँस शो के दूसरे सीज़न में भी जज़ थीं. पिछले दिनों सोनी इंटरटेनमेंट टेलीविजन (इंडिया) के एक टीवी शो " उस्तादों के उस्ताद ' में भी जज़ थीं. एन. डी.टी.वी.इमेजिन पर आपने वर्ष 2008 में नृत्य शिक्षण का कार्यक्रम - " नच ले वे विद सरोज खान " भी प्रस्तुत किया था.और आपने कुछ और टीवी शो जैसे - बूगी-बूगी और झलक दिखला जा भी प्रस्तुत किया था. वर्ष 2012 में  भारत सरकार के फिल्म प्रभाग ने निधी तुली के निर्देशन में उनके अवदान पर एक फिल्म भी बनाई थी.

सरोज खान नृत्य निर्देशन की कला में दीक्षित ही नहीं, प्रवीण भी थीं

सरोज खान बतौर कोरियोग्राफर इतनी परिपूर्ण थीं कि  वे अपने कलाकारों खासतौर पर अभिनेत्रियों से उसी परिपूर्णता की अपेक्षा करती थीं.दरअसल सरोज खान नृत्य निर्देशन की कला में दीक्षित ही नहीं प्रवीण भी थीं.वो अक्सर फिल्म की अभिनेत्रियों से कहतीं थीं कि लगन, अभ्यास और एकाग्रता से कोई भी अच्छा नृत्य कर सकता है.अक्षयकुमार ने अपने शोक संदेश में इसी बात की पुष्टि करते हुए यह  बात कही है कि महान कोरियोग्राफर सरोज खान ने नृत्य को लगभग आसान और सहज -सुलभ बना दिया था और बकौल मास्टरजी ( सरोज खान को बॉलीवुड के सभी सितारे इसी नाम से पुकारते थे ) ज़रा-सी भी दिली इच्छा हो तो कोई भी नृत्य कर सकता है - जी हाँ एवरी बडी केन डाँस.  यही संभवतः सरोज खान का भी
अल्टीमेट संदेश था.

  राजा दुबे


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