Friday, October 16, 2020

खाद्यान्न की महत्ता को पुनर्प्रतिष्ठापित करने के लिये मनाया जाता है विश्व खाद्य दिवस - राजा दुबे

 विश्व की समग्र आबादी में खाद्यान्न की महत्ता को पुनर्प्रतिष्ठापित करने और खाद्य सामग्री की बर्बादी को रोकने के लिये -" विश्व खाद्य दिवस " पर विशेष अभियान चलाये जाते हैं.विश्व की जनसंख्या में हो रही वृद्धि और खाद्य पदार्थों के सीमित भण्डार को देखते हुए अब खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत भी  महसूस की जा रही है. इसे ध्यान में रखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र ने 16 अक्टूबर, 1945 को रोम में  " खाद्य एवं कृषि संगठन " ( फूड एण्ड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन) की स्थापना की थी. विश्व में व्याप्त भुखमरी के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने व इसके समापन के लिए वर्ष 1980 से प्रतिवर्ष 16 अक्टूबर को  विश्व खाद्य दिवस  का आयोजन शुरू किया था .विश्व समाज के संतुलित विकास के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य का सर्वांगीण विकास हो.विश्व में लोगों को संतुलित भोजन की इतनी मात्रा मिले कि वे कुपोषण के दायरे से बाहर निकल कर एक स्वस्थ जीवन जी सकें.लोगों को संतुलित भोजन मिल सके, इसके लिए आवश्यक है कि विश्व में खाद्यान्न का उत्पादन भी पर्याप्त मात्रा में हो. भारत में विश्व खाद्य दिवस पर भारतीय संस्कृति के अनुरुप खाद्य पदार्थ को दिव्य स्वरुप में स्वीकार किया जाता है और इस दिन खाद्यान्न के अनुशासित उपभोग और संरक्षण का संकल्प लिया जाता है. इस दिन खाद्यान्न सुरक्षा के पारम्परिक उपायों को अपनाने और नई पीढी को खाद्यान्न के दुरुपयोग को रोकने की सीख दी जाती है.


वैश्विक स्तर पर ऐसे प्रयास हों कि भुखमरी से किसी को न जूझना पडे़

इस दिवस को मनाते हुए बत्तीस वर्ष हो चुके हैं, लेकिन दुनिया भर में भूखे पेट सोने वालों की संख्या में अभी भी अपेक्षित कमी नहीं आई है इस दिवस के आयोजन का लक्ष्य वैश्विक स्तर पर ऐसे प्रयास करने का है कि विश्व में भुखमरी की स्थिति में भारी गिरावट आये और विश्व के किसी भी हिस्से में साधनहीन और  विपन्न आबादी को भुखमरी से न जूझना पड़े.इस मामले में विकासशील या विकसित देशों में किसी तरह का कोई फ़र्क़ नहीं है. विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक नौ अरब होने का अनुमान लगाया जा रहा है और इसमें क़रीब 80 फीसदी लोग विकासशील देशों में रहेंगे .ऐसे में किस तरह खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, यह एक बड़ा प्रश्न है. एक ओर तो ऐसे  सम्पन लोग हैं जो प्रतिदिन काफी पका हुआ भोजन फैंक देते हैं तो दूसरी ओर ऐसे विपन्न लोग हैं जिन्हें एक समय भी भरपेट भोजन नहीं मिलता है.खाद्यान्न की इसी असमान उपलब्धता और संवितरण की समस्या को देखते हुए 16 अक्टूबर' को हर साल " विश्व खाद्य दिवस " मनाने की घोषणा की गई थी. विश्व में खाद्यान्न के उत्पादन में बढ़ोतरी के बावजूद उसके असमान वितरण के कारण भुखमरी की समस्या का प्रसार हो रहा है.भारत में सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कारण मिल-बाँट कर खाने और किसी को भी भूखा न रखने का जो जीवन दर्शन है उसका इस दिन व्यापक प्रचार किया जाता है. हमारे देश में सिक्ख सम्प्रदाय की -"लँगर“ परम्परा इसीका एक प्रचलित स्वरुप है.

खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिये भी इस एक अवसर पर विचार विमर्श होता है

विश्व खाद्य दिवस मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य विश्व में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिये व्यापक विचार विमर्श
होता है. इसके लिए विकासशील देशों के मध्य तकनीकी एवं वित्तीय सहयोग बढ़ाने और विकसित देशों से आधुनिक तकनीकी मदद उपलब्ध कराने के भी प्रयास होते हैं. संयुक्त राष्ट्र और खाद्य एवम् कृषि संगठन के अनुसार विश्व में खाद्यान्न की कीमतों में जब गैर आनुपातिक बढ़ोतरी होती है और विश्व का एक बड़ा भू भाग खाद्यान्न संकट का सामना करता है तब विश्व खाद्य दिवस पर सभी प्रभावशाली देश इस संकट से उबरने की तजवीज़ भी करते हैं.जनांकिकी अनुमान के अनुसाार विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक नौ अरब होने का अनुमान लगाया जा रहा है और इस बड़ी आबादी के लिये खाद्यान्न जरुरत भी व्यापक होगी. इस दिशा में विश्व खाद्य दिवस पर उत्पादन की मात्रा में बढ़ोतरी की तजवीज़ भी की जाती है. इसके साथ ही खाद्यान्न के असमान वितरण के कारणों का भी विश्लेषण किया जाता है. खाद्यान के उत्पादन में  मात्रिक ( कवांटिटेटव)  और गुणात्मक ( क्वलिटेटिव) बढ़ोत्तरी के लिये भी अनुसंधान पर भी इस दिन विमर्श होता है. विश्व के सकल खाद्यान उत्पादन की यदि हम बात करें तो वो उसे समुचित ही माना जायेगा मगर विभिन्न देशों की जरुरत के मुताबिक खाद्यान का असमान वितरण परेशानी का कारण है और विश्व खाद्य दिवस पर इस परेशानी का समाधान खोजने का यत्न भी किया जाता है.



कोरोना संक्रमण काल में खाद्य आपूर्ति के बड़े कदम 

कोरोना संक्रमण काल में खासकर लॉकडाउन में जब
देश के असंगठित कामगार और अपने मूल निवास से
बाहर काम करने गये कामगारों के वहाँ फँस गये थे तब उन्हें भुखमरी, बेरोजगारी और परिस्थितिजन्य पलायन के कठिन दौर से गुजरना पड़ा था ऐसे समय में सरकार, जनकल्याणकारी संस्थाओं और सामान्यजन ने अपनी क्षमता से बढ़कर काम किया.एक रोजगार-सर्वेक्ष केअनुसार,भारत के कुल कार्यबल का 80% से अधिक हिस्‍सा अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, इनमें एक तिहाई कैज़ुअल मजदूर हैं.आरम्भ में लॉकडाउन के कड़े प्रावधानों के कारण इनको संकट का सामना करना पड़ा जल्दी ही केन्द्र सरकार ने इस वर्ग को जो जहाँ हैं वहीं उन्हें अनाज मुहैया करवाकर उन्हें भुखमरी से बचाया. इधर अधिकृत कॉरिडोर मिलने के पहले अपने कार्यस्थल से अपने मूल निवास जाने के लिये सड़कों पर जमा कामगारों को जनता ने खाद्यान और दीगर उपभोक्ता सामग्री मुहैया करवाई. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (नेशनल फुड सिक्यूरिटी एक्ट) के भारत में लागू होने के बाद से भारतीय जनसंख्या की दो- तिहाई आबादी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम) में शामिल होने का लाभ इस वर्ग को कुछ औपचारिकताओं से छूट देकर दिलवाया गया.इस मामले में केन्द्र और राज्य सरकारों ने विभिन्न प्रचलित योजनाओं और नये पैकेज में कोरोना काल के पीड़ितों को व्यापक खाद्यान्न सहायता दी है.
 

कुपोषण से मुक्ति के लिये भी इस दिन संकल्प लिया जाता है 

विश्व खाद्य दिवस पर विश्व से भुखमरी की समाप्ति के साथ ही कुपोषण से मुक्ति का भी संकल्प भी लिया जाता है. विकासशील और अविकसित देशों में कुपोषण की समस्या कुछ ज्यादा है और इसी परिप्रेक्ष्य में भारत में पिछले वर्ष सितम्बर 2019 को -" राष्ट्रीय पोषण माह " के रुप में मनाया गया था.इस आयोजन का उद्देश्य महिलाओं और बच्चों को कुपोषण से मुक्ति और एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय पोषण अभियान के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाना था.भारत में मृत्यु और विकलांगता के प्रमुख कारणों में कुपोषण एक मुख्य कारण है और खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार भारत में कुल जनसंख्या के साढ़े चौदह प्रतिशत अर्थात्  लगभग 194 मिलियन लोग अल्पपोषित है भारत में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा नीति आयोग द्वारा संयुक्त रूप से वर्ष 2017-2018 में राष्ट्रीय पोषण अभियान शुरू किया था.इस मिशन का लक्ष्य कुपोषण और जन्म के समय बच्चों का वज़न कम होने संबंधी समस्याओं को प्रत्येक वर्ष 2 प्रतिशत तक कम करना है.इसके साथ ही कुपोषण के उन्मूलन से संबंधित सभी मौजूदा योजनाओं एवं कार्यक्रमों को एकजुट कर एक बेहतर और समन्वित मंच प्रदान करना है. इससे देश में कुपोषण की समस्या से छुटकारा पाया जा सकेगा. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि कुपोषण से सर्वाधिक प्रभावित बच्चे ही होते हैं.





सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये कृषि को सर्वोच्च प्रथमिकता दी जा रही है

वर्ष 2015 में विश्व में विकास के जो डेढ़ दशक के जो
सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों की रीति-नीति बनाई गई थी वोवर्ष 2000 से वर्ष 2015 तक के लिये थी इन लक्ष्यों की प्राप्ति में भी कृषि को प्राथमिक लक्ष्यों में रखा गया था.अब जबकि विश्व के अन्य देशों के साथ ही भारत में भी सतत विकास लक्ष्य -2030 (सस्टेनेबल डेवलपमेन्ट गोल्स - 2030 ) के अनुसार विकास की योजनाएँ बनाईं गईं हैं उसमें भी कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है. भारत सहित सभी विकासशील देश इस बात को महसूस करते हैं कि यदि सतत विकास लक्ष्य -2030 को प्राप्त करना है तो कृषि पर ही फोकस करने की जरुरत होगी. इसके लिये देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से किसानों की क्षमता बढ़ाने की ज़रूरत होगी.कृषि क्षेत्र में अधिक निवेश, कृषि के लिये अनिवार्य अधोसंरचना के विकास यथा - कोल्ड स्टोरेज (प्रशीतन गृहों) के निर्माण, कृषि उपज मंडियों ं तक सड़कों के निर्माण और राष्ट्रीय कृषि बाज़ार और कृषि उपज मंडियों के बीच सतत सम्पर्क स्थापित करने के प्रयत्न होंगे. कृषि क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिये कोल्ड स्टोरेज और सप्लाई चैन में निवेश बढ़ाने के लिये निजी कम्पनियों को भी आगे लाना होगा.सतत विकास लक्ष्यों की इन प्राथमिकता के लक्ष्यों को हांसिल करने के लिये वस्तुत: सार्वजनिक क्षेत्रों और निजी क्षेत्रों दोनों को समन्वित
प्रयास करने होंगे तभी वांछित लक्ष्य प्राप्त होंगे.

राजा दुबे 


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