Saturday, October 24, 2020

मन्दसौर में होती रावण प्रतिमा की पूजा- राजा दुबे

 



मन्दसौर में नामदेव समाज दशहरे पर रावण प्रतिमा की पूजा करता है. मध्यप्रदेश की दक्षिण-पश्चिम सीमा पर राजस्थान से लगा मन्दसौर जिला अपनी एक परम्परा के कारण हर वर्ष दशहरे के पर्व पर चर्चा में आ जाता है. उस दिन जब समूचे देश मे दशहरा पर्व  विजय उत्सव के रुप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान राम ने अहंकारी रावण का वध कर लंका पर विजय पाई थी. यह विजय आश्विन शुक्ल की दशमी को प्राप्त हुई थी अत: इसे विजयादशमी भी कहा जाता है. इस दिन समूचे उत्तर भारत में दुराचारी रावण के पुतले के दहन की परम्परा है. मगर मंदसौर में नामदेव समाज के लोग रावण के पुतले के दहन के स्थान पर उसकी ठोस प्रतिमा की पूजा करते हैं.


एक किवदंती के अनुसार रावण की धर्मपत्नी मंदोदरी मंदसौर की बेटी थी. इस नाते मंदसौर के लोग रावण को अपना दामाद मानते है. नामदेव समाज के लोग तो दशहरे के दिन खानपुरा स्थित रावण प्रतिमा के सामने उपस्थित होकर पूजा-अर्चना करते हैं. उसके बाद राम और रावण की सेनाएं निकलती है. वध से पहले लोग रावण के समक्ष खड़े होकर क्षमा-याचना माँगते है. मंदोदरी उनके वंश की बेटी थी इस नाते वे आज भी रावण को अपने जमाई जैसा सम्मान देते है. यहाँ तक की समाज की महिलाएं जो खुले में बनी इस रावण प्रतिमा के सामने से गुजरती हैं तो सम्मानस्वरुप घूँघट ले लेती हैं खानपुरा में रूण्डी स्थित रावण की प्रतिमा नामदेव समाज के लोगों के लिए पूजनीय है. दशहरे पर सभी दूर रावण को जलाया जाता है. खानपुरा की प्रतिमा की पूजा कर केवल प्रतीकात्मक वध किया जाता है.

रावण की रिश्तेदारी परम्परा के अशोक बघरेवाल का कहना हैं कि इकत्तीस फीट ऊँची इस प्रतिमा की देखरेख का जिम्मा स्थानीय प्रशासन और स्थानीय निकाय के पास है लेकिन प्रतिमा की बदहाली से इस समाज के लोग आहत है. इसी सप्ताह प्रतिमा की साज़ सम्हाल और रंग रोगन के दौरान रावण की प्रतिमा का एक सिर टूट कर गिर गया. नगरपालिका के जिम्मेदार अधिकारियों ने तत्काल उसे जोड़ा और अब प्रतिमा दशहरे पर पूजा के लिये तैयार है.

नामदेव समाज के स्वामित्व वाली इस रावण प्रतिमा का इतिहास काफी पुराना है. लगभग पिचहत्तर वर्ष पहले से खानपुरा में रावण की सीमेंट निर्मित विशाल प्रतिमा के होने के प्रमाण हैं .इस पर एक बार बिजली गिरने से यह प्रतिमा टूट गई थी. केवल प्रतिमा के विशाल पैर बचे थे.नौ साल पहले तत्कालीन नगर पालिका अध्य्क्ष (मौजूदा विधायक)  यशपाल सिंह सिसौदिया के कार्यकाल में ढाई लाख रुपए लगाकर इसका पुनर्निर्माण कराया गया था और रावण की प्रतिमा को पुराना स्वरूप देते हुए वर्ष 2005 में प्रतिमा को तैयार किया था. वर्ष 2007 में तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष प्रहलाद बंधवार ने भी रावण की प्रतिमा की ओर ध्यान देकर प्रतिमा के सभी सिर नये सिरे से लगाये थे.

मन्दसौर के इतिहासकार कैलाश पाण्डे का मानना है कि रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका मंदसौर का था इसके ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं है मगर खानपुरा मेंं रावण प्रतिमा के होने और नामदेव समाज द्वारा उस प्रतिमा के आराधना के प्रमाण दो सौ साल पुराने हैं. परम्परा ही सही मगर रावण को यहाँ का दामाद मानने की किस्सागोई तो है ही ! 

राजा दुबे 

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