Thursday, September 18, 2008

बेबसी...

माँ - हम भी तो तुम्हारे ही हैं। हमारे साथ ऐसा ना करो...
बेटी - मैं कुछ नहीं कर सकती हूँ।
नाती - नानी आप अगर हमारे घर चली तो पापा और दादी आपको घर से धक्के देकर निकाल देंगे।
बेटी - तुम चुप रहो, बीच में मत बोलो।
माँ - बेटा, अपनी माँ से बोलो ना हमें यूँ ना छोड़ दे। हमें अपने साथ ले चलो।
नाती - हाँ नानी हम समझते हैं। माँ तुम नानी के लिए कुछ क्यों नहीं करती हो, वो तुम्हारी माँ है।
बेटी - मैं कुछ नहीं कर सकती हूँ।


शाम के सात बजे। दिल्ली के एक बस स्टॉप पर भीड़ बढ़ती जा रही थी। बारिश और अंधेरा दोनों तेज़ी से बढ़ रहे थे। कोई भी बस आती लोग भागकर देखते कौन-से नंबर की है। एक बस आई और मैं उसमें चढ़ गई। मेरे ही साथ चढ़ी वो माँ, बेटी और नाती। उन सभी को पहाड़ गंज जाना था। लेकिन, बस नहीं मिल पा रही थी और वो इसमें चढ़ गए। आगे ही थोड़ी दूर पर उतरने के लिए। मेरे आगे वाली सीट पर ही वो बैठे थे। इसलिए आवाज़ें साफ सुनाई दे रही थी। मामला कुछ ऐसा होगा कि माँ को बेटा-बहू ने घर से निकाल दिया और अब बेटी भी इस परिस्थिति में नहीं थी कि उन्हें अपने घर ले जा सकें।
माँ लगातार अपनी बेटी से विनती कर रही थी कि हमें यूँ ना छोड़ो हमें और अपने नाती को समझा रही थी कि वो बी अपनी माँ को समझाए। बेटी का चेहरा एकदम कठोर था वो लगातार ना करती जा रही थी। लेकिन, उसकी आंखों से आंसू की धार लगातार बह रही थी। उनके बीच हो रही बातें ना चाहते हुए भी मेरे कानों तक पहुंच रही थी। अपनी ज़िंदगी पहली बार किसी माँ को यूँ बेटी के आगे याचक बना देख रही थी। बेटी किस हद तक असहाय हो सकती है यो देख रही थी। लेकिन, इस सबसे ज़्यादा दुखद थी उस छः या सात साल के बच्चे का बातें। वो बहुत तेज़ आवाज़ में लगातार बोल रहा था। नानी अगर आप साथ में चली तो पापा और दादी हमें भी धक्का मार कर निकाल देंगे। आपको अब हम कहाँ रखेंगे। माँ तुम कुछ करती क्यों नहीं रोने से कुछ नहीं होगा....
उसके ये शब्द तीर की तरह चुभ रहे थे। पूरी बस खमोश थी और उस परिवार की बेबसी की मूक दर्शक बनी हुई थी। वो तीनों बाराखंबा पर उतर गए। उसके बाद क्या हुआ होगा... उस बेटी ने क्या किया होगा... माँ ने कहाँ रात गुज़ारी होगी... नाती की बातें रूकी होंगी या नहीं...

1 comment:

Anonymous said...

very deep and touchy thing :(