Wednesday, April 15, 2009

अपने हौसलों के ज़रिए जीना सिखाते लोग...


कोई भी इंसान सम्पूर्ण नहीं होता है। कोई कोई कमी हर किसी में होती है। कोई शीरीरिक रूप से विकलांग होता है, तो कोई मानसिक, तो कोई व्यवहार के मामले में। ये बात मुझे विनोद कुमार मिश्रा ने अपने इंटरव्यू के दौरान कही। अपने कार्यक्रम हौसलों की उड़ान के दौरान मेरी उनसे मुलाक़ात हुई। मिश्रा अस्सी फ़ीसदी विकलांग है। वो फ़िलहाल सेन्ट्रल इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड में चिफ़ मैनेजर के पद पर काम कर रहे हैं। मेरा ये कार्यक्रम हौसलों की उड़ान एक साप्ताहिक डॉक्यूमेन्ट्री कार्यक्रम है। जिसमें हम किसी भी तरह से विकलांग या समाज में उपेक्षित व्यक्ति के जीवन संघर्ष उसकी हिम्मत को लोग तक पहुंचाते हैं। इसी दौरान जब हम मिश्राजी के घर पहुंचे तो उन्होंने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया। एक मध्यवर्गीय परिवार की तरह ही है उनका भी परिवार। जब बातचीत शुरु हुई तो मिश्राजी ने बताया कि कैसे उन्हें तीन साल की कम उम्र में ही पोलियो हो गया था और कैसे धीरे-धीरे उनके दोनों पैरों की शक्ति चली गई। मिश्राजी रूड़की विश्वविद्यालय से इंजिनीयरिंग की डिग्री प्राप्त कर चुके हैं। उस वक़्त में जब विकलांगों के लिए किसी तरह की कोई सुविधा मौजूद नहीं थी तब मिश्राजी का ये संघर्ष काबिले तारीफ़ था। वो आज भी एक सामान्य इसांन से ज़्यादा सक्रिय है। विज्ञान के मूलभूत नियमों को हिन्दी भाषी छात्रों के लिए उपलब्ध करवाने के मक़सद से वो कई किताबें भी लिख चुके हैं। मिश्राजी अकेले ही ऐसे साहसी नहीं हैं। चंदा भी इसका एक उदाहरण है। चंदा नेत्रहीन है। वो एक छोटे से गांव से दिल्ली आई थी। मन में केवल इतना था कि कुछ बनना है, कुछ करके दिखाना है। काफ़ी संघर्ष के बाद चंदा आज दिल्ली के मिरांडा हाऊस कॉलेज में असिसटेन्ट प्रोफ़ेसर है। चंदा एक बेहद ही ज़िंदा दिल इंसान है, उनसे बात करके लगता है जैसे सारी थकान दूर हो गई। वो एक सामान्य लड़की तरह ही रोज़ाना बस से सफ़र करती है, घर के काम करती है और साथ-साथ नौकरी और अपने शौक के लिए भी वक़्त निकाल लेती है। राजेश भी हिम्मत और साहस का ऐसा ही एक उदाहरण है। राजेश भी एक छोटे से गांव से दिल्ली कुछ बनने के लिए आए थे। यहाँ आकर उन्होंने पढ़ाई की, ख़ुद को साबित किया और आज वो हंसराज कॉलेज में प्रोफ़ेसर है। राजेश भी चंदा की तरह ही नेत्रहीन है। वो बताते है कि सही इलाज मिल पाने के चलते उनके आंखों की रौशनी चली गई थी। हमारे समाज में ऐसे कई लोग मौजूद जो किसी किसी विकलांगता से जूझ रहे हैं। लेकिन, उनकी हिम्मत उनका जोश एक सामान्य इंसान से कहीं ज़्यादा हैं। इन लोगों ने अपनी कमज़ोरियों से उठकर कुछ करने की हिम्मत दिखाई हैं। इन सभी का मानना है कि वो कभी समाज से कुछ पाने की उम्मीद नहीं करते हैं, बल्कि आगे होकर कुछ देने की ललक उनमें रहती हैं। एक बात और जो इन लोगों से मिलकर मालूम चलती है वो ये कि ये सभी कही कही परिवारों के लापरवाह रवैये का शिकार होते हैं। किसी भी बिमारी के हो जाने पर परिवारवालों का सही वक़्त पर इलाज करवाना और शरीर के किसी अंग के खराब हो जाने पर उसे हीन भावना से देखना इन सभी को खलता हैं। यही वजह है कि समाज की नज़रों में बेचारे बन चुकें ये लोग किसी और को ऐसा नहीं बनने देना चाहते हैं। मिश्राजी ने विकलांगों के लिए क़ानून और आरक्षण के लिए पूरी एक मुहिम चलाई हुई है।

वही बचपन में अपनी आंखें खो चुके जवाहरलाल कौल, जोकि नेत्रहीन होने के बावजूद घर से भागकर दिल्ली गए थे ख़ुद को साबित करने के मक़सद से ने भी एक संस्था खोल रखी हैं। जिसमें

वो विकलांग हो चुके लोगों को सबसे क़ीमती चीज़ देते है- उनका खोया हुआ आत्मविश्वास। ऐसे ही कई लोग जानलेवा बीमारियों से खु़द दो चार हो जाने के बाद लोगों को उसके प्रति सचेत करने का बीड़ा उठा लेते हैं।

जैसे कि आर. अनुराधा। खु़द कैंसर से दो बार जीत चुकी अनुराधा अब लोगों को इसके प्रति सावधान करने के मक़सद से काउंसलिंग का काम करती है, साथ ही साथ एक ब्लॉग भी चलाती है जिस पर वो सरल भाषा में लोगों को इस बीमारी से लड़ना सीखाती हैं। कई बार इन लोगों से मिलकर, इनके जस्बे को देखकर मन में सवाल आता है कि किसी मिट्टी के बने हैं ये लोग। आखिर कैसे ये लोग इतना साहस. इतनी हिम्मत जुटा लेते हैं। कैसे अपनी कमज़ोरी को ताक़त में बदल देते हैं। और, सबसे बड़ी बात कि इतनी विपरीत परिस्थितियों में रहते हुए भी ये लोग अपनी ही तरह के दूसरे लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। बिना किसी आर्थिक मदद के, बिना किसी प्रोत्साहन के, बिना किसी प्रचार के चुपचाप ये लोगों कइयों की मदद करने में लगे हुए हैं। और, जब भी मैं इनसे ये पूछती हूँ कि आखिर क्यों ये आप कर रहे हैं। सब का जवाब एक ही होता है- जो हमने सहा वो कोई और सहे। अगर किसी भी रूप में हमारे अनुभव किसी के काम जाएं तो समझिए हमारा जीवन सफ़ल......

5 comments:

admin said...

इन प्रेरणाप्रद लोगों को मेरा सलाम पहुंचे।

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तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

निर्मला कपिला said...

bahut badiyaa prerak alekh hai badhaai v dhanyvaad

अजय कुमार झा said...

bahut hee prernaadaayee aalekh prastut kiya aapne ,anuradha jee ke baare mein jaan kar unke prati shraddha aur badh gayee hai, sach kaha aapne aise logon ke bare mein jaankar jeevan ke prati sakaraatmak drishtikon badh jaata hai.

Ashish Khandelwal said...

प्रेरणादायक व्यक्तित्व की झलक दिखाने के लिए आभार

विष्णु बैरागी said...

सचमुच में बडी ताकत मिली ये कहानियां पढ कर। काश, ब्‍लाग की दुनिया, पूरी दुनिया से बडी होती।