Wednesday, May 6, 2009

खांचों में खिंचे हम लोग...

सुबह-सुबह ही भास्कर की वेब साइट पर जयप्रकाश चौकसे का पर्दे के पीछे पढ़ा। चौकसेजी हमेशा ही अपनी बेहतरीन लेखनी से किसी ऐसे फ़िल्मी मुद्दे पर लिखते है जो कही न कही सीधे समाज से जुड़ जाता है। आज उन्होंने फ़िल्मों के मर्दाना और जनाना होने पर लिखा है। उनका ये लेख आप भास्कर की वेब साइट पर पढ़ सकते हैं।
ये हमारे जीवन का, हमारे समाज का एक बहुत बड़ा सच है कि हमने हर काम को वर्गीकृत कर दिया हैं। जैसे कि घर में झाड़ू महिलाएं ही लगाती हैं या फिर ये कि ऑटो या रिक्शा मर्द ही चला सकते हैं। हालांकि आज के वक़्त में इनके विरोधाभास हर जगह मौजूद हैं। फिर भी हम कही न कही इन सब में जकड़े हुए हैं। हमारे अंदर तक ये बातें इस कदर घर कर गई है कि आधुनिक सोच का डंका बजानेवाले हम लोग घर जाते ही कुछ और बन जाते हैं। ऑफ़िस में अपने साथी के लिए कॉफ़ी का मग उठाना बुरा नहीं लगता, लेकिन घर आकर पत्नि और अपना चाय का मग किचन से रूम तक लाना भारी लगने लगता है। इन कामों के वर्गीकरण में भी कुछ काम तो घर के दायरे में महिलाएं करती हैं और उस दायरे के बाहर पुरुष। जैसे कि किसी बड़े नामचीन हॉटेल का हेड शेफ़ अधिकांशतः कोई पुरुष ही होता है। ऐसे घर की गाड़ी भले ही पूरी तरह महिला चलाए लेकिन, बाहर जाने के लिए कार पुरुष ही ड्राइव करता है। मेरे ही ऐसे कई दोस्त हैं जो दोपहिया गाड़ी में पीछे बैठना पसंद नहीं करते हैं ख़ासकर जब कोई महिला उसे चला रही हो। ऐसे ही वर्ग हमने जातियों के भी बना रखे है। हर जाति के लिए एक काम तय है, वो केवल उसे ही कर सकती है कुछ और किया तो हंगामा। कई काम उम्र के दायरे तय करते हैं। शादी करने की उम्र, पढ़ने की उम्र, लड़ने की उम्र। कई बार ये महसूस होता है कि हम हर काम को पहले खांचों में बांट देते हैं और फिर उसे करते है। कई बार ये खांचे किसी काम के प्रति घृणा को उजागर करते है। तो कई बार किसी काम को करने की ललक दिखाते है। जैसे कि जाति के आधार पर किया गया वर्गीकरण। जिसमें जो बलशाली था उसने अपने लिए क़ानून बनाने या राज करने को अपने वर्ग में रख लिया और कमज़ोर को हुकम की तालीम करने में लगा दिया। इंसान का पूरा जीवन इन खांचों में बंटा हुआ हैं और शतरंज की गोटियों की तरह अपनी क़िस्मत के हिसाब से एक खांचे से दूसरे में कूदते रहते हैं। और, अगर कही किसी ने भी इसे मानने से मना किया तो या तो वो समाज में पिट जाता है या फिर नए संघर्ष को जन्म देता है...

2 comments:

आशीष कुमार 'अंशु' said...

Achhi samiksha kar dee aapne to Chukase ji ke lekh kee...

sandeep sharma said...

bahut khoob...