Wednesday, May 27, 2009

काश! क़िस्मत भी तत्काल में जागनेवाली होती...

माँ की तबीयत कुछ दिनों से कुछ नरम है। वैसे इस उम्र में ऐसा होता ही है। फिर भी पिछले 10 महीने से घर नहीं गया हूँ और ऐसे में माँ की तबीयत ख़राब होने पर मन बार-बार उनके पास जाने का हो रहा है। बिहार का रहनेवाला हूँ और कई सालों से बाहर रह रहा हूं यही वजह है कि जानता हूँ टिकिट मिलने में कितनी परेशानियाँ आती हैं। फिर भी रेल्वे की तरफ से मिलनेवाली नई सहूलियतों के चलते मैंने सोचा कि मैं माँ से मिल पाऊगा। इसी के चलते पिछले दो हफ़्ते से मैं परेशान हूँ। सामान्य तरीक़ों से तो इस वक़्त टिकिट मिलने से रहा। ऐसे में मैंने ई-टिकिट लेने की सोची। सुबह सात बजे से मैं अपने कम्प्यूटर पर इंडियनरेल की वेब साइट खोलकर बैठ जाता था। इंटरनेट की स्पीड भी ठीक रहती थी, वेब साइट भी आसानी से खुल जाती थी। लेकिन, जैसे ही आठ बजते सब बैठ जाता। इंटरनेट की स्पीड उतनी ही लेकिन, इंडियन रेल की वेब साइट पर सर्वर नॉट फ़ॉउन्ड का मैसेज आने लगता। ठीक आठ बजकर दस मिनिट पर सब ठीकठाक हो जाता हैं। वेब साइट खुलने लगती है। और, जैसे ही टिकिट बुक करने के लिए स्टेटस देखता तो वेटिंग दिखाई देता। मेरा ये अनुभव किसी एक दिन का नहीं और ना ही किसी एक इन्टरनेट कनेक्शन का हैं। पिछले दो हफ़्ते में कई अलग-अलग जगह से ये कोशिश कर चुका हूँ। आखिर क्या होता है रोज़ाना दस मिनिट के लिए इंडियन रेल की साइट को कि वो ठप्प पड़ जाती है और दस मिनिट में ही ठीक भी। आज मैं थक हारकर रेल्वे काउन्टर पर गया। साढ़े छः बजे से मैं खड़ा था। इस सबके बावजूद मेरा नम्बर दसवां था। मेरे आगे लगे लोगों में कइयों को केवल अपने रिज़र्वेशन कैन्सिल करवाने थे। लगा कि क्या मतलब तत्काल सेवा का। कोई अलग लाइन नहीं थी जहाँ तत्काल का टिकिट कट सकें। मेरा नम्बर आते ही जैसे ही मैंने पर्ची दी मुझे बताया गया आठ वेटिंग हैं। मैं बिना टिकिट कटाएं वापस आ गया। सोचा कि तत्काल टिकिट के लिए आराम से उठनेवाली क़िस्मत नहीं तत्काल जाग जानेवाली क़िस्मत चाहिए...

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