Monday, July 27, 2009

दो महिलाएं


आज जब मैं बस में चढ़ी तो भीड़ ज़्यादा नहीं थी। मुझे आराम से सीट मिल गई हमेशा की तरह मैं कानों में इयर प्लग लगाकर गाने सुनने लगी। बस पुल क्रॉस करके लक्ष्मी नगर पहुंची तो कुछ और लोग चढ़े और भीड़ हो गई। इनमें एक अधेड़ महिला भई चढ़ी जोकि मेरे पीछेवाली सीट पर बैठी हुई थी। साथ ही एक पति-पत्नि भी चढे़। पति की गोद में सालभर की बच्ची थी सो एक बुज़ुर्ग ने उसे साथ में बैठने को जगह दे दी। महिला मेरे ही पास खड़ी हुई थी। मेरे पीछेवाली सीट पर बैठी अझेड़ महिला दिखने में बहुत ही सामान्य पंजाबी महिला लग रही थी जोकि किसी ऑफ़िस में काम करती होगी। महिला के पास एक 20-22 साल का लड़का बैठा था। उस लड़के बस की खिड़की से बाहर जैसे ही थूका महिला ने उसे समझाना शुरु कर दिया। महिला उसे कह रही थी- ये सब मत खाया करो, ये सब बुरी चीज़ें होती हैं बीमारी की जड़... मेरे कानों में गाने चल रहे थे इसलिए मुझे ठीक से सुनाई नहीं दिया तो मैंने इयर प्लग उतारा और उस महिला की नसीहतें सुनने लगी। महिला बार-बार उस लड़के को ये भी कह रही थी देखो बेटा बुरा मत मानना मेरी बात का तुम तो मेरे बेटे जैसे हो इसलिए मैं तुम्हें समझा रही हूँ। वो लड़का बड़ी शालीनता से उस महिला की बातें सुनना रहा। पहले तो बीच में बात को काटने के लिए कुछ कहा भी लेकिन, बाद में वो चुपचाप सुनता रहा। थोड़ी देर बाद वो महिला भी चुप हो गई।
वही खड़ी हुई महिला जिसकी उम्र शायद 28 से 29 होगी कन्डक्टर से किचकिच कर रही थी। वो सातवाले टिकिट की जगह 5 का ही टिकिट ले रही थी। कन्डक्टर ने जब चिल्लाया तो उसने उपने पति की तरफ देखा कि वो चार रुपए देगा। उसका पति उम्र में बहुत बड़ा लग रहा था। थोड़ी देर बाद वो महिला मेरे आगेवाली सीट पर बैठ गई। जैसे ही वो बैठी उसे नींद आने लगी और उसकी गर्दन इधर-उधर डोलने लगी। थोड़ी देर में उसके पति की गोद में बैठी उसकी बेटी रोने लगी और उस महिला की तरफ उम्मीद भरी नज़रें उसने गड़ा ली जैसे वो कह रही हो अब माँ की गोद चाहिए। महिला का पति उसे कहने लगा कि उसे गोद में लो लेकिन, महिला ने साफ़ मनाकर दिया उस बच्ची को रोते देख भी वो महिला सोती रही। जैसे ही उसका पति कुछ कहे वो ऐसा मुंह बनाए कि जैसे उसे न कुछ दिख रहा है न सुनाई दे रहा है। थोड़ी देर में बच्ची ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी और बस के सारे यात्री महिला को घूरने लगे। तब कही महिला ने उसे गोद में लिया, उसे दूध पिलाया और फिर पति को उसे वापस लेने को कहा। लेकिन, बच्ची उसकी गोद से जाना ही नहीं चाहती थी। वो बहुत ही अनमने तरीके़ से और बहुत गुस्से में उसे पकड़कर खड़ी रही।
मैं उन दोनों ही महिलाओं को देख रही थी। एक महिला ऐसी कि जो किसी अन्जान नौजवान में अपना बेटा देख रही थी और सही रास्ते की सीख दे रही थी और एक महिला ऐसी कि जिसे अपनी रोती बच्ची पर भी दया नहीं आ रही थी...

12 comments:

M VERMA said...

विसंगतिया हर तरफ है

अनिल कान्त said...

दुनिया में तमाम किस्म के लोग हैं

Anonymous said...

बहुत रोचक वाकया था, एक माँ का ऐसा रूप !

mehek said...

duniya aise hi logon se bhari hai.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

शायद ये वर्तमान पीढी के मानसिक बदलाव का नतीजा है।

विनोद कुमार पांडेय said...

tarah tarah ke log hai is duniya me..
sansaar vividhataon se bhara padahai..

par aapka observation bahut badhiya laga..
dhanywaad..

कुश said...

जैसी बची है.. वैसी की वैसी बचा लो रे दुनिया..

Udan Tashtari said...

हर तरह के लोग हैं.

सुजाता said...

एक महिला ऐसी कि जो किसी अन्जान नौजवान में अपना बेटा देख रही थी और सही रास्ते की सीख दे रही थी और एक महिला ऐसी कि जिसे अपनी रोती बच्ची पर भी दया नहीं आ रही थी...
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दीप्ति , केवल वर्णन पढा तो बहुत कुछ लिखने का मन हुआ पर जैसे ही आपका यह निष्कर्ष देखा और कमेंट पढे तो लगा कि सब कितनी जल्दी मे हैं निष्कर्षो तक पहुँचने की।

Harshvardhan said...

samaj me katyi tarah ke log hote hai.........

Harshvardhan said...

samaj me kayi tarah ke log hote hai.....

Aadarsh Rathore said...

विश्लेषक निगाहें...