Wednesday, July 29, 2009

चोरी का माल चकाचक...


साल 2007 में रीलीज़ हुई फ़िल्म दस कहानियाँ वैसे तो एक फ़्लॉप फ़िल्म थी लेकिन, मुझे पसंद आई। दस अलग-अलग कहानियों को एक साथ दिखाने का ये प्रयोग अच्छा लगा था। इन दस कहानियों में से मेरी पसंदीदा कहानी थी- राइस प्लेट जोकि रोहित रॉय का डायरेक्टोरियल डैब्यू था। एक ऐसी ब्राह्मण महिला की कहानी जो मुस्लिमों से नफ़रत करती है और उनके छुए हुए से अगर सट भी जाए तो दस बार भगवान का नाम लेती है। ये महिला अपनी बेटी के घर जाने के लिए रेल्वे स्टेशन जाती है और वहाँ एक रेस्टोरेन्ट में खाना खाने बैठ जाती हैं। हाथ धोकर जब वो वापस आती है तो देखती उसका खाना एक मुस्लिम बुज़ुर्ग खा रहा है। महिला पहले चिल्लाती है और फिर गुस्से में उसी प्लेट में खाने लगती है। बुज़ुर्ग महिला को मुस्कुराकर देखता है और पानी का ग्लास थमाकर चला जाता है। ब्राह्मण महिला को अचानक लगता है कि उसका सामान गायब है, उसे लगता है कि वो बुज़ुर्ग ही सामान चोर है और वो शोर मचाने लगती है। तब ही उसकी नज़र बाजूवाली टेबल पर जाती है जहाँ उसका सामान और खाना वैसा ही पड़ा हुआ था। महिला को अपने व्यवहार और मुस्लिमों के प्रति उसकी सोच पर शर्मिंदगी होती है। एक बहुत ही सरल कहानी थी ये। एकदम सपाट-सी। बिना किसी ड्रामे और बड़े-बड़े डायलॉग के सीधे शब्दों में बात को कहा गया था। इस फ़िल्म को कुल मिलाकर पाँच लोगों ने लिखा हैं। जोकि गुलज़ार, जावेद अख़्तर, कमलेश पाण्डे, विशाल भारद्वाज और शिवानी हैं। पूरा अंतरजाल खोज लेने के बाद भी मैं ये पता नहीं कर पाया कि राइस प्लेट का लेखक इनमें से कौन है। खैर, ये सारी मेहनत इसलिए कि कल मेरी साप्ताहिक छुट्टी थी और मैंने अपना पूरा दिन किताब पढ़ने में बिताया था। मैं विश्व की प्रसिद्ध कहानियों की किताब पढ़ रहा था। इसमें कल मैंने एक कहानी पढ़ी - भूल। जोकि थॉमस ग्लेविनिक (Thoams Glavinic) की लिखी हुई कहानी थी, मैं मूल कहानी का हिन्दी अनुवाद पढ़ रहा था। थॉमस एक ऑस्ट्रियाई लेखक है। दो पन्नों की इस छोटी-सी कहानी को मैंने आधा ही पढ़ा था कि मुझे लगा कि इसका अंत मैं जानता हूँ। मैं चौंका कि अरे ये तो राइस प्लेट की कहानी है। राइस प्लेट एक ओरिजनल कहानी नहीं थी ये भूल की कॉपी थी। बस इसमें देशी और विदेशी के भेद को हिन्दू और मुस्लिम से बदल दिया गया था। खैर, मैंने कहानी पूरी की और मन ही मन अफ़सोस जताया कि क्यों मैं ये सोच बैठा था कि हिन्दी फ़िल्मों में इतनी बेहतरीन कहानी ओरिजनल हो सकती है...

5 comments:

संदीप said...

दस कहानियां की राइस प्‍लेट तो मुझे भी अच्‍छी लगी थी, जिसे देखकर यही सोचा था कि हिंदी फिल्‍मों में अच्‍छा काम हो रहा है। लेकिन यह अच्‍छा काम कहां से सटकाया गया है, अब मालूम चला।

Waterfox said...

चलो देर से ही सही, मालूम तो हुआ. मुझे भी ये कहानी अच्छी लगी थी. और नसीरुद्दीन शाह और शबाना आज़मी ने उसे और बेहतर बना दिया था.

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

आभार/शुभकामनाए
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
SELECTION & COLLECTION

amit said...

bahut badhiya, mujhe bhee ye achhi lagi

Aadarsh Rathore said...

सर चोरी नहीं प्रेरणा कहिए...