Monday, November 16, 2009

इंडिया बनता भारत और अंकल बनते चाचा...

उम्र होगी यही कोई 60 से 65 के बीच। मटमैला-सा पजामा और उसके ऊपर बिना प्रेस किया कुर्ता पहने हुए। पान खा-खाकर दांत कुछ गिर चुके हैं और कुछ लाल रंग से रंगा गए हैं। साथ में डरी सहमी-सी खिचड़ी बालोंवाली, सीधे पल्ले की साड़ी और बड़ी-सी सिंदुरी बिंदी लगाई पत्नी। दोनों मैट्रो स्टेशन को कुछ ऐसे देख रहे है कि अजूबा देख लिया हो। स्वचलित सीढियों पर डर-डरकर पैर रखते इस जोड़े की आंखों की चमक में आप उस चमक को महसूस कर सकते हैं जोकि आजकल दिल्ली में तेज़ी से फैल रही हैं। फिलहाल बात बस इस चमक की। चमक के पीछे छिपे अंधेरे की नहीं।
मैट्रो के अंदर ऐसे ही दो जोड़े जोकि एक ही समाज के हैं लेकिन, फिर भी उन्हें देखकर लगता है कि दोनों में कम से कम दो पीढ़ियों का अंतर हैं। एक जोड़ा पति-पत्नी का। साड़ी में लिपटी हुई पत्नि और दर्जी़ से सिलवाया हुआ पेन्ट शर्ट पहने पति। दोनों एक कोने में अपने नवजात शिशु को पकड़े खडे़ थे। एक की नज़रें एक तरफ़ थी तो दूसरे की दूसरी तरफ़। दोनों चुपचाप खड़े थे। वही दूसरा जोड़ा किसी विदेशी कंपनी के कपड़े पहने शायद कॉलेज जा रहा था। दोनों एक दूसरे पर झूले जा रहे थे। कोई और आसपास है उन्हें इस बात की कोई ख़बर नहीं।

मैट्रो के चालीस मिनिट के सफर के दौरान आप आप आसानी से ये देख सकते हैं कि कैसे हमारा भारत इंडिया में और हमारे चाचाजी अंकल में तब्दील हो रहे हैं। सामान्यतः ये वृद्ध दंपति हमारे लिए चाचा-चाची या फिर ताऊ-ताई होते हैं। लेकिन, आजकल हम इन्हें अंकल-अंटी कहने लगे हैं। आज तब अश्रर धाम मैट्रो स्टेशन पर मैं मैट्रो के इंतज़ार में खड़ी थी तो देखा कि कैसे वो स्टेशन भारत और इंडिया का संगम स्थल बन गया है। एक तरफ ठेठ गांव का एक परिवार स्टेशन के एक खंभे के आस पास मंडली जमाए बैठा था। गार्ड बार-बार उन्हें खड़े होने का निर्देश दे रहा था लेकिन, वो तो आलथी-पालथी मारे बैठे थे। दूसरी तरफ एक जोड़ा जोकि शायद हनीमून पर आया होगा। पत्नी चमकीली साड़ी में, आर्टिफ़िशियल ज्वैलेरी पहने हुए, आखों पर रंगीन चश्मा चढ़ाए हुए और पति अपने कैमरे से उसके तस्वीरें उतारता हुआ। तीसरी तरफ कॉलेज जानेवाले युवाओं का एक ऐसा समूह जोकि नाइकी की टी-शर्ट और ली-वाइस की इतनी ढीली जीन्स पहने हुए कि ज़रा-सा खींचा तो उतर जाए। ये समूह कुछ ऐसा था कि जिसे सार्वजनिक स्थलों पर अपने प्यार के प्रदर्शन से कोई आपत्ति नहीं। सब कुछ हमारे बदलाव को दर्शाते हुए। हर समाज बदलाव के इस दौर से गुज़रता रहता हैं। कभी सिनेमा देख आंखों में चमक जाती थी, तो कभी रंगीन टीवी देखकर, तो कभी मोबाइल के हरे और लाल बटन परेशान करते है, तो कभी मैट्रो की स्वचलित सीढ़ियों पर क़दम डगमगाते हैं। ये बदलाव की बयार आपको हर जगह नज़र आ जाएगी लेकिन इतनी साफ नहीं जितनी कि मैट्रो में।

2 comments:

amar anand said...

उम्दा लगी बदलाव की ये बयार। हक़ीक़त के बिल्कुल करीब।

अमर आनंद

कुश said...

इण्डिया और भारत का विलय हो रहा है.. पर ये भारतनुमा इण्डिया होगा या इण्डियानुमा भारत.. ?