Thursday, December 17, 2009

क्या आप सुनना चाहते हैं?

घर की बड़ी बेटी ऑफ़िस से काम निपटाकर जैसे ही घर के अंदर क़दम रखती हैं उसके हाथ से गाड़ी की चाबियाँ ले ली जाती है। वो कुछ समझ पाए उससे पहले ही उसे ये कहा जाता है कि- जब से गाड़ी मिल गई है तब से तुम और भी मनमर्ज़ी चलाने लगी हो। दरअसल वो कुछ 15 दिनों बाद ऑफ़िस गई थी। परीक्षाओं के चलते छुट्टी पर थी और पेन्डिंग काम निपटाने में उसे आने में देर हो गई थी।
ये कोई काल्पनिक घटना नहीं है। वो लड़की मैं हो सकती हूँ, मेरी बहन भी, मेरी दोस्त भी या फिर कोई भी लड़की। ऐसी परिस्थितियों से हरेक लड़की को रोज़ाना ही दो-चार होना पड़ता है। आज भी माँ-बाप की नज़रों में लड़कियों के लिए शिक्षक की नौकरी और सही समय पर शादी दो ऐसे परम सत्य है जैसे कि सूरज का पूरब से उगना और पश्चिम में डूबना। समाज बहुत आगे बढ़ चुका है। समाज में कई परिवर्तन आ चुके हैं। समाज अब ज़्यादा खुलकर सोचने लगा हैं। लेकिन, वो समाज कहाँ रहता है ये मुझे नहीं मालूम। मेरे आसपास आज भी अपनी मर्ज़ी का जीवनसाथी चुनना या फिर अपनी मर्ज़ी का व्यवसाय चुनना या फिर महज अपनी मर्ज़ी का स्कूल या कॉलेज चुनना भी किसी युद्ध से कम नहीं। अपनी मर्ज़ी के स्कूल में पढ़ने के लिए मैंने पापा से खूब लड़ाई की थी। हालांकि अपनी ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन मैंने उनकी मर्ज़ी के कॉलेज से ही की है। लड़कियों को ज़िंदगी के हरेक क़दम पर लड़ाई लड़नी पड़ती हैं। ऑफ़िस या कॉलेज में होनेवाले व्यवहार या फिर भेदभाव को हम ये सोचकर सह जाते है कि ज़रूरी नहीं कि हरेक इंसान हमें और हमारी परेशानियों को समझे। लेकिन, जब ऑफ़िस से थककर घर जाते हैं तो ज़रूर मन में ये उम्मीद होती है कि वहाँ एक अच्छा माहौल और हमें समझनेवाले लोग मिलेंगे। ऐसे में जब घर पहुंचते ही माँ या पापा के मुंह से ये सुनने को मिले कि- ऑफ़िस में ही जाकर बस जाओ या फिर जब से नौकरी लगी है तेवर ही बदल गए हैं तो ऐसा लगता हैं कि अब कहाँ जाया जाए। ख़ासकर लड़कियों को माँ से उम्मीद होती हैं कि वो तो ज़रूर समझेगी। आज भी अधिकतर लड़कियों के लिए ऑफ़िस में ओवर टाइम करना, ऑफ़िस की पार्टी में जाना या फिर अपनी तनख्वाह को अपने मुताबिक़ खर्च करना आसान नहीं। जहाँ लड़की देर से पहुंची माँ-बाप उन ससुरालवालों की दुहाई देने लगते हैं जिनका कोई अता-पता नहीं। सुनने को मिलता हैं कि यहाँ ऐसे करोगी तो वहाँ कैसे निभाओगी। मन में आता है कि- सच है जब यहाँ कोई नहीं समझ रहा हैं तो वहाँ कौन समझेगा। मैं घर से दूर रहकर काम कर रही हूँ इस वजह से इस तरह की बंदिशें कुछ कम हैं। लेकिन, असल बात यही है कि मैं ख़ुद ही किसी पार्टी में या देर को कई नहीं जाती। इस बात पर मैंने बहुत सोचा कि ऐसा मैं क्यों करती हूँ और वजह है कि बचपन से ही मुझे कही ऐसी जगह जाने ही नहीं दिया गया। आज हालात ये हो गए हैं कि अब मन इस सबके प्रति उदासीन हो गया है। लड़की के लिए हरेक चीज़ उसकी शादी से जुड़ी होती हैं। ऑफ़िस में काम करना या नहीं करना भी शादी पर निर्भर करता हैं। आखिर ऐसा क्यों है। क्या लड़कियाँ अपनी ज़िंदगी अपने मुताबिक़ नहीं जी सकती हैं। क्यों लड़कियों के लिए शादी ही एक मात्र लक्ष्य रह जाता है। मेरी बुआ 55 साल की है और उन्होंने शादी नहीं की हैं। अपनी ज़िंदगी अपने मुताबिक़ जी है। वो इसी समाज का हिस्सा है और उनका समाज में पूरा सम्मान भी हैं। समाज सुधर रहा है, आगे बढ़ रहा हैं, समाज में रहनेवालों की सोच खुल रही हैं। लेकिन, आखिर वो समाज कहाँ है? मेरे आसपास क्यों नहीं है...

6 comments:

कुश said...

लड़की खुद ब खुद ये समझने लगती है कि वो टीचर की नौकरी के लिए बनी है.. और वो खुद ढूँढने लग जाती है.. सिस्टम में ढल जाती है.. और चुपचाप जीती भी जाती है समाज की रवायते.. पता नहीं क्यों ?

Ashok Kumar pandey said...

आपकी चिंता जायज़ है।
मेरी पत्नी नौकरी करती हैं और उनकी तमाम दोस्तों के अनुभव सुनने के बाद यही लगता है कि केवल नौकरी से भी पूरी आज़ादी संभव नहीं। शायद समाज की मानसिकता बदलने के लिये इससे आगे के कदम उठाने होंगे।

prabhat gopal said...

हमें ये बात समझ में नहीं आती है कि शादी महिला की स्वतंत्रता में बाधक कैसे है? आज के दौर में पुरुष और महिला दोनों ही घर में समान भागीदारी निभाते हैं, ऐसे में शादी को नारी स्वतंत्रता में बाधक मानना गलत होगा। जहां तक समाज में किसी के सम्मानित होने की बात है, तो वह स्त्री हो या पुरुष, अपने कर्म से होता है। वैसे आप महिला होने के कारण इस मामले को ज्यादा समझती होंगीं।

कडुवासच said...

... लगातार बदलाव आ ही रहा है बहुत ज्यादा चिंतित रहने की बात अब नही रही, प्रसंशनीय लेख !!!!!

Anonymous said...

उस दिन का इंतजार रहेगा जब... लड़कियां बगैर ये जाने प्यार करने लगेगी की आपके पर्स की मोटाई कितनी है... खुले ख्याल की लड़कियों की बड़ी कमी है अपने देश में...

PD said...

मैं तो जब भी घर देर से लौटता था तब अक्सर मेरे हाथ से भी गाड़ी की चाभी छीन ली जाती थी.. मजाक में सच्चाई बयान कर रहा हूं, इसे अपने पोस्ट के विरोध में मत समझियेगा.. :)