Wednesday, March 3, 2010

नेतागिरी का स्कूल

भई अब नेतागिरी की भी पढ़ाई होगी। जी हाँ ये मज़ाक नहीं सच है। दरअसल पिछले दिनों कुछ काम से सिलसिले में नोयडा जाना हुआ। गोलचक्कर मैट्रो स्टेशन के खंभों पर एक संस्थान का विज्ञापन देखकर आश्चर्य हुआ और अचानक ही हंसी छूट पड़ी। ये विज्ञापन एक इंस्टीट्यूट का था। लेकिन, किसी कम्प्यूटर या इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स के इंस्टिट्यूट का नहीं बल्कि नेतागिरी सिखाने का था। वैसे अगर कहा जाए तो कोई कुछ भी माँ के पेट से सीखकर नहीं आता हैं! जो भी वो सीखता है..अच्छा या बुरा वो यही सीखता है लेकिन, नेता बनने के गुण भी सिखाए जा सकते हैं ये बात कुछ हजम नहीं हुई। पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान भोपाल में हमारी यूनिवर्सिटी से अच्छा ख़ासा पैसा लेकर हमें पढ़ानेवाले अतिथि पत्रकारों के मुंह से एक न एक बार ये ज़रूर निकल जाता था कि पत्रकारिता पढ़ाई नहीं जा सकती है। ये गुण तो इंसान के अंदर अपने आप ही जन्म लेते हैं। हो सकता है इसके पीछे ख़ुद के पास ऐसी कोई डिग्री न होने की खुन्नस हो। ऐसे लोग रोज़ाना किसी नये संस्थान में पत्रकारिता के गुर सिखाते दिख जाएंगे। साथ ही आपको पत्रकारिता पर लिखी इनकी ढ़ेरों किताबें भी मिल जाएगी। खैर, पत्रकारिता में चल रहे इस द्वन्द से इतर राजनीति के इस नए कोर्स में मुझे एक नई शुरुआत दिखाई दे रही है। अब तक तो नेता बनने के लिए या तो किसी नेता के घर जन्म लेना ज़रूरी है और नहीं तो दिन रात स्कूल से लेकर कॉलेज में चप्पलें खानी और मारनी पड़ती हैं। वैसे भी हमारे देश में नेता बनने के लिए किसी तरह की कोई शैक्षणिक योग्यता की ज़रूरत नहीं। अंगूठा छाप भी यहाँ नेता ही नही मंत्री भी बन सकता है। ऐसे में अगर नेतागिरी से लेकर राजनीति के दांवपेंच तक सिखानेवाला कोई संस्थान खुल जाए तो हो सकता है कुछ योग्य नेता हमें मिल जाए। वैसे पत्रकारिता के संस्थानों से निकले पत्रकार और एक्टिंग इंस्टिट्यूट से निकले सुपर हिट अभिनेता हो ज़रूरी नहीं। वैसे ही नेतागिरी के गुर सिखानेवाले ये बेहतरीन नेता बनाए ये भी ज़रूरी नहीं। वैसे उस विज्ञापन में एक बात की कमी नज़र आई और वो थी प्लेसमेंट की गांरटी। आज के समय में जहाँ अधिकांश संस्थान सौ प्रतिशत जॉब की गांरटी दे रहे हैं वहीं इस कोर्स के बाद नेतागिरी की डिग्री थामें युवा को कौन सी पार्टी टिकिट देंगी इसकी कोई गांरटी नहीं।

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