Friday, February 26, 2010

अपने से सचिन...

ऑफ़िस से रूम की तरफ़ जा रही थी। मैट्रो में थी सो कानों में मोबाइल का इयरपीस लगा हुआ था। दरअसल दिल्ली आते ही मेरे एक मित्र ने मुझे ये गुरु मंत्र दिया था कि अगर मोबाइल चोरी होने बचाना है तो पूरे समय कानों गाने सुनते रहो। बस उसी का अनुसरण आज तक कर रही हूँ। मैट्रो जब तक ज़मीन के अंदर रहती है एफ़एम से दूरी रहती हैं। जैसे ही वो आसमान में उड़ना शुरु करती है एफ़एम का साथ भी मिल जाता हैं। जैसे ही मंडी हाउस से प्रगति मैदान के लिए मैट्रो बढ़ी मैंने अपने गानों की प्ले लिस्ट को बंद किया और एफ़एम शुरु कर दिया। इधर उधर सर्फ़ करने के बाद हाथ एफ़एम रेन्बों पर रुक गए। उस पर भारत- साउथ अफ़्रीका के एकदिवसीय मैच का सीधा प्रसारण चल रहा था। ये सुनते ही कि सचिन 150 रन पारकर चुके है दिल धड़कने लगा। हमेशा से ही ये दिली तमन्ना रही हैं थी कि सचिन ही वो पहले खिलाड़ी हो 200 रन बनाएं। इसके बाद पूरे रास्ते दिल दिमाग कान पर टिक गए। सचिन के हर शॉट के साथ ऊपर की सांस ऊपर और नीचे कि नीचे रह जाती। स्टेशन से उतरी तो भी किसी तरह का कोई शोर सुनाई ही नहीं दे रहा था। जो सुनाई दे रहा था वो था एक एक रन सचिन का आगे बढ़ना। दूध लेने पहुंची तो दूकानवाले भैया ने क्या कहा क्या पूछा कुछ नहीं सुना बस मुस्कुराती रही और झट से रूम की ओर चल दी। रूम पहुंचकर सारा सामान यूँ फेंक बैठ गई टीवी के सामाने और देखा सचिन को इतिहास लिखते। क्रिकेट मुझे बस पंसद है बहुत पंसद नहीं। किसी खिलाड़ी के आउट होने या फिर शतक मारने पर भी कोई ख़ास खुशी या ग़म मुझे महसूस नहीं होता है। लेकिन, सचिन तो ना जाने क्यों अपने से लगते हैं। सचिन पर किसी ने कोई एलिगेशन लगाया बस ख़ून मेरा खौल जाता हैं। सचिन के कारण ही मैंने कढ़ी खाना शुरु किया। छोटी थी तो मम्मी कहा करती थी कि सचिन भी खाता है तभी तो रन बनाता है। बस मैं भी कटोरा भर कर खा जाती। सचिन ने कभी किसी से कोई बदतमीज़ी नहीं कि किसी भी आरोप पर कुछ नहीं कहा। बोला तो सिर्फ़ उनका बल्ला। सचिन से न कभी मिली हूँ और न ही मिलने की कोई बहुत प्रबल इच्छा हैं। बस इतना है कि सचिन तो अपने है...

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