Sunday, June 27, 2010

कॉमनवेल्थ गेम्स बनाम मोटेराम का सत्याग्रह

आपने प्रेमचंद की मोटेराम और सत्याग्रह नाम की कहानियां शायद पढ़ी हों या फिर अगर आप नाटक देखने या करने के शौक़ीन हो तो इन्ही कहानियों पर लिखा नाटक मोटेराम का सत्याग्रह देखा हो। इस नाटक को लिखा था हबीब तनवीर और सफ़दर हाश्मी ने। नाटक की कहानी अंग्रेजों के ज़माने की है। बनारस शहर में वायसराय का दौरा तय हुआ है। अब वायसराय आ रहे हैं तो तैयारी भी खास होनी चाहिए। शहर का अधिकारी सर पार्किन्सन इसी वजह से बेहद परेशान है। अपने मातहत अधिकारीयों के साथ वो वायसराय के स्वागत सत्कार से लेकर बनारस को चमकाने की योजना बनता है। जैसा की हमेशा से होता आया है... वहां भी सामान्य तौर पर विकास के काम की रफ़्तार सुस्त ही रहती है..लेकिन जैसे ही वायसराय के आने की खबर मिलती है इन कामों में बला की तेज़ी आ जाती है। शहर से सारी गन्दगी हटा दी जाती है। भिखारियों को पकड़-पकड़ कर किसी दूसरे शहर भेजने की कवायद शुरू हो जाती है। वायसराय को खुश करने के लिए नाच गाने का भी पूरा इंतजाम किया जाता है। आप सोच रहे होंगे की मैं इतनी देर से इस नाटक का जिक्र क्यों किये जा रहा हूँ। दरअसल ये नाटक मुझे आज बेहद प्रासंगिक लग रहा है। दिल्ली में इन दिनों वैसा ही नज़ारा देखने को मिल रहा है। अक्टूबर में कॉमनवेल्थ गेम्स होने हैं और हर तरफ उसी की तैयारियां चल रही है। कहीं पुलों और ओवरब्रिजों का निर्माण हो रहा है तो कहीं सड़कों और फुटपाथों का। बनी हुई सड़कें फिर से बनायीं जा रही हैं तो कहीं नालियां खोदी जा रहीं हैं। मेट्रो का निर्माण भी जोर-शोर से चल रहा है। कभी शहर से भिखारियों को दूर करने का फरमान सुनाया जा रहा है तो कभी पुरानी गाड़ियों को सड़क से हटाने का। पहले झुग्गी बस्तियों को शहर बदर करने की योजना तैयार की गयी। कुछ को हटा दिया गया तो कुछ को छिपाने की कवायद चल रही है। इसके लिए बांस के झुरमुटों से लेकर विदेशी चटाई तक का इंतजाम किया जा रहा है। दिल्ली को हरा भरा दिखने के लिए देश भर से पेड़ पौधे गमलों सहित लाखों लाख रूपए खर्च कर मंगवाए गए हैं। यमुना के किनारे खेल गाँव बनाया गया है.... दिल्ली यूनिवर्सिटी के होस्टल्स खाली कराये जा रहे हैं। खेल शुरू होने में अब गिनती के दिन बचे हैं और सरकार के पास काम बहुत है सो अफरा-तफरी जारी है। अरबों खरबों रूपए यूं फूकें जा रहे हैं। खेलों की तैयारियों को लेकर पहले भी काफी छीछालेदर हो चुकी है वहीँ अब इतने दिनों से चुप्पी साध कर बैठे पूर्व केंद्रीय मंत्री मणि शंकर अय्यर ने भी आयोजन में खर्च हो रहे बेहिसाब पैसों को लेकर मोर्चा खोल दिया है। उनके मुताबिक आयोजन में साठ हज़ार करोड़ रूपए का खर्च आएगा जो बेमानी साबित होगा। हालाँकि अय्यर साहब ने अपना मुहं खोलने में काफी देर लगा दी। ये आयोजन अब देश की प्रतिष्टा की बात भी बन गए हैं और लग रहा है की अब जैसे भी हो बस ये खेल जल्दी से निपट जाये। रही बात मोटेराम के सत्याग्रह की.... तो उस समय भी यही हाल था आज भी वही है। आखिर कैसे सरकारों के लिए उसकी जनता से ज्यादा झूठी शान महत्वपूर्ण हो जाती है। कैसे इन आयोजनों का पूरा खर्च सरकार जनता की जेब से निकलती है... कैसे आयोजन हासिल करने से लेकर अंत में तम्बू उखाड़ने तक पैसे की बंदरबांट की जाती है। हाय रे सरकार और हाय रे जनता...

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