Friday, October 22, 2010
चैनलों के बीच झूलता दर्शक !
इन दिनों टीवी पर रीयलिटी शो की एक बाढ़-सी आई हुई हैं। अचानक से ही नौ बजे का समय सबसे व्यस्त समय बन गया है। टीवी का रिमोट हाथ में रहता है और दिमाग और ऊंगलियों का तालमेल कुछ यूं बनता हैं कि अचानक से कौन बनेगा करोड़पति के सवाल से उचककर हम बिग बॉस के घर में घुस जाते हैं और फिर अचानक से ही याद आता है कि उस सवाल का जवाब क्या होगा और जैसे ही हम उचककर हॉट सीट तक पहुंचते है तो देखते हैं कि प्रतियोगी ही बदल गया है। फिर बिग बॉस के घर में लौटते ही लगता है कि अरे, अभी तो सब ठीक था ये लड़ाई का मुद्दा क्या है। ये चैनलवालों ने एक साथ इतने सारे शो शुरु करके बहुत ही ग़लत काम किया है। सप्ताहांत में भी हमारा दिमाग और रिमोट यूं ही पिसते रहते हैं। न तो ये मालूम चल पाता है कि सारेगामापा का हाल क्या है और न ही ये कि कॉमेडी सर्कस में क्या हो रहा है। आजकल तो ऐसा महसूस हो रहा है कि हम किसी झूले में सवार इधर से उधर डोल रहे हैं। ऐसे में खबर आती हैं कि इसकी टीआरपी ज़्यादा रही और इसकी कम। मैं तो यही सोचती रह जाती हूँ कि ये टीआरपी किस पैमाने पर निकाली जाती है। क्या केवल एक मिनट भी किसी सो से देखने से वो टीआरपी में आ जाता हैं या फिर एक ऐसा दर्शक वर्ग अभी हैं जोकि पूरी तन्मयता से एक शो को देखता है। जिस तरह से ज़्यादा से और एक ही वक़्त पर अलग अलग खा लेने से हाजमा खराब हो जाता हैं वैसे ही हाल फिलहाल टीवी के दर्शकों के हैं। उम्मीद हैं कि ऐसे में लोग हाजमें की मज़ेदार और धीरे धीरे चूस खाई जानेवाली गोलियों को अपनाना शुरु कर देंगे। यहां हाजमे की गोलियों का अर्थ किताबें हैं। दरअसल, आजकल कई बार ऐसा होने लगा कि इस चैनल की कूद फांद के बीच में अचानक से टीवी बंद कर देती हूँ और कोई एक किताब निकालकर पढ़ना शुरु कर देती हूँ। यकीन मानिए किताब पढ़ने में इतना सुकून इससे पहले कभी नहीं आया। अब नौ बजते ही मेरे जैसा टीवी का कीड़ा टीवी को बंद कर किताब से चिपक जता है....
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6 comments:
इस बीमारी से तो निजात पा राखी है ...... अब अखबार को और छोडना है.
agar kisime khud ko sahej kar rakhne ka vivek naa ho,to use jhoolta hi rahana hoga......
nice post..
mere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
Lyrics Mantra
आजकल अच्छी किताबें मिलती है क्या? मैं "आप भी जीत सकते हैं" या किसी नाकाम पटकथा लेखक की पटकथाओं के संकलन को अच्छी किताब नही मानता हूँ...
@ भैया- आजकल की नहीं तो पुराने लेखकों की पढ़ ले। ऐसा तो है नहीं कि सारी किताबें नई पुरानी हम पढ़ ही चुके हैं। बहुत सी ऐसी मिल जाएगी।
हाल तो अपना भी यही है..
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