Monday, February 20, 2012

उत्पाद को खरीदने से नहीं, उसके विज्ञापन से डर लगता है...

युवराज सिंह के कैंसर पीड़ित होते ही उनका एक विज्ञापन टीवी पर आप हर ब्रेक और हम चैनल में देख सकते हैं। जब तक बल्ला चलेगा तब तक ठाठ है... जिस दिन रूका कोई पूछेगा भी नहीं... पहले तो विज्ञापन देखकर लगा कि देखो युवराज ने विज्ञापन में जो बोला वो असल में उसके साथ हो गया। लेकिन, जब ये विज्ञापन लूप में चलने लगा तब महसूस हुआ कि इतना भी क्या ये कंपनी एक विज्ञापन लगातार चला रही है। दरअसल इसे ही कहते है असली विज्ञापन। युवराज जैसा खिलाड़ी जोकि शारीरिक रूप से इतना स्वस्थ है वो खुद ही जब कैंसर से पीड़ित हो गया तो हमारी क्या औकात... कंपनी ने ये विज्ञापन भले ही ये सोचकर न करवाया हो कि युवराज बीमार हो जाए इसे करने के बाद लेकिन, इतना ज़रूर है कि कंपनी को इस बात की खुशी ज़रूर हुई होगी कि हमारा विज्ञापन अब ज्यादा सार्थक और लोगों को खींचनेवाला हो गया। जहां एक ओर युवराज के कैंसर ने एक को फायदा पहुंचाया वही दूसरी दवा कंपनी को अपने लिए दूसरा चेहरा ढूंढ़ना पड़ गया। जी भर के जिने का संदेश देनेवाली इस कंपनी को लगा कि ग्राहक कही ये न सोच लें कि इसे के खाने से कैंसर हो गया। वैसे अब जो हीरो इस दवा के विज्ञापन में है वो भी पिछले 6 महीने में अपने पेट के 4 ऑपरेशन करवा चुके है। यही हाल जगजीत सिंह के किए गए विज्ञापन का हुआ है। उनकी मृत्यु के इतने समय बाद भी वो दवा उनकी खांसी आज तक दूर कर रही है। सच में विज्ञापन कभी-कभी इतने भ्रामक और संग-दिल होते है कि उन्हें देखकर उस उत्पाद से ही चिढ़ हो जाती है। खासकर ये हाल बीमा और दवा कंपनी के साथ ज्यादा है। बच्चे के पैदा होने की खुशी भी माँ बाप नहीं बना पाते हैं कि उनको ये समझा दिया जाता है कि अभी से हमारा बचत प्लान लो नहीं तो बड़े होकर यही बच्चा चोर नहीं तो कही चपरासी बन जाएगा। संस्कृत की कक्षा में पड़ा वो दोहा कि - "पूत सपूत तो क्यों धन संचय और पूत कपूत तो क्यों धन संचय" आज के समय में लागू नहीं होता सा दिखाई दे रहा हैं। गोरे होनेवाली क्रीम के विज्ञापनों को लेकर तो कई बार लोग हंगामा और विरोध दर्ज करते रहे हैं। लेकिन, इस विरोध से निपटने का भी उनके पास हथियार मौजूद था अब लड़की का रिश्ता नहीं टूटता अब उसकी नौकरी छूट जाती है। उसका करियर दांव पर लग जाता है और जैसे ही वो गोरी हो जाती है उसकी सुन्दर आवाज़ हरेक को पसंद आने लगती है। विज्ञापन बनवाने और बनानेवाली कंपनियाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ भावुकता से साथ खेल रही है। बच्चे के पैदा होते ही उसके माँ बाप को डराती, सांवली लड़की को गोरे न होने के लिए डराती, मोटे गालवाले लड़के को अंटीजी के प्यार से डराती और बीमारी के नाम पर डराती... सच में उत्पाद को खरीदने से नहीं, उसके विज्ञापन से डर लगता है...

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