Monday, March 12, 2012
टैबू
नेशनल जॉग्राफी के हिन्दी में हो जाने से मेरे जैसे हिन्दी दर्शकों को बहुत आसानी हुई है। इस चैनल पर आनेवाली खोजी पत्रकारिता से जुड़ी हुई सीरीज़ इन्वेस्टिकेट्स बहुत ही शानदार बनी हुई है। भोपाल गैस त्रासदी पर बने इस सीरीज़ के एपिसोड को देखकर ही गुणवत्ता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। लेकिन, फिलहाल बात टैबू की। पूरे विश्व में अलग-अलग जगह की ऐसी प्रथाएं और नियमों को इसमें दिखाया जाता है जोकि किसी न किसी तरह से समाज में प्रतिबंधित है। सीरीज़ का नाम ही टैबू रखा गया है मतलब कि प्रतिबंधित। अभी तक सीरीज़ की दो कड़ियां देख चुकी हूँ और केवल दो को देखकर रीसर्च टीम की मेहनत और प्रोडक्शन के हुनर को समझा जा सकता है। पहला अंक समाज के तीसरे लिंग और समाज में उसकी परिस्थिति को दर्शाता है। मुझे तो इस मामले में केवल भारतीय समाज ही रूढ़ीवादी लगता था। लेकिन, विश्व के कई कोने ऐसे है जहां लिंग भेद भारत से बहुत ज्यादा और संकीर्ण है। पहले अंक ने ही कई बातों में मेरी भ्रांतियां दूर कर दी। मैसीडोनिया में कैसे पुरुषविहिन परिवार की ज़िम्मेदारियों को संभालने के लिए घर की एक लड़की को ज़िंदगीभर के लिए पुरुष बनकर रहने को मज़बूर होना पड़ता है। और, कैसे महिलाएं अपने हक़ के लिए आवाज़ तक नहीं उठा पाती है। कल के अंक में देखा प्यार के कुछ ऐसे तरीक़ों को जिसे समाज में प्रतिबंधित माना जाता है। भारत में आदिवासी समाज में महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा हक़ प्राप्त है लेकिन, यही हाल दुनिया के अन्य आदिवासियों में भी है ये मैंने कल ही जाना। प्यार में अपने प्रेमी की ज्यादा से ज्यादा तवज्जो और समय की चाहत में महिलाएं ऐसे पुरुषों के साथ शादियां कर लेती है जो ज़िंदगीभर के लिए जेल की सज़ा काट रहे होते हैं। साल में कभी एक बार मिलने और केवल चिठ्ठियों के सहारे चल रही ऐसी शादियों का भविष्य आखिर क्या होता होगा। हमारा समाज और इसमें रहनेवाले लोगों की सोच और उनके तरीक़े कितने अजीब और असामाजिक हो सकते हैं ये आप इस सीरीज़ को देखकर समझ सकते हैं। टैबू न सिर्फ़ विषयों के चुनाव को लेकर एक बेहतरीन सीरीज़ है लेकिन, इसका फिल्मांकन भी बहुत शानदार है। टीवी पर इस तरह की ज्ञानवर्धक और रोचक सीरीज़ को देखकर आप ताज़ा महसूस करते है...
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