Wednesday, May 30, 2012

अतिसाधारण, हारते हुए लोग...

डॉनल्ड डक हमेशा से मेरा पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर रहा। मीकी माऊस की भलमन्साहत और हमेशा ही आराम से होते काम मुझे कभी पसंद नहीं आए। डॉनल्ड डक के साथ होनेवाले हादसे और उसका उनसे निपटना मुझे हमेशा से भाया। उसका गुस्सा होना, चिढ़ना और अपने चचेरे भाई ग्लेडस्टोन ग्लैन्डर की किस्मत से जलना और कुढ़ना सब कुछ मुझे अच्छा लगता था। किसी भी काम में ईमानदारी के साथ जुड़ना और फिर उसका धीरे धीरे उल्टा होते जाना और आखिर में हार जाना डॉनल्ड डक की निशानी रहा है। ऐसे ही मुझे राजाराम पुरुषोत्तम जोशी हमेशा बाशुदेव से ज्यादा पसंद आया। राजाराम अतिसाधारण आदमी अपनी अतिसाधारण ज़िंदगी में खुश और दोस्त के बुरे बर्ताव के बाद भी सब कुछ भूलकर फिर अतिसाधारण ज़िंदगी जीने के लिए तैयार... और, ऐसे ही कई किरदार मुझे पसंद आते रहे है जोकि अपनी ज़िंदगी में हारे हुए है लेकिन, बाज़ीगर नहीं है। वो विशुद्ध रूप से हारे हुए है लेकिन, खुश है। ऐसे जैसे कि वो हारने के लिए पैदा हुए थे। लेकिन, उनकी हार में भी एक मासूमियत है एक काबलियत है जोकि सिनेमा या कार्टून को देखते समय हमें तो नज़र आ जाती है लेकिन, उनके आसपासवालों को नहीं। कुछ दिनों से ऐसा महसूस हो रहा है कि हम भी ऐसे ही किसी किरदार को असल ज़िंदगी में निभा रहे है। बेहतरीन काम करने के बावजूद किसी प्रंशसा की उम्मीद किए बिना जी रहे है। ग़लती हो जाने पर एकता कपूर सीरियल की वैम्प से लगनेवाले बॉस और सहकर्मियों से मुंह छुपाते हुए। सिर को झुकाए हुए और अपने स्तर को झुकने से बचाते हुए हम काम किए जा रहे है। अपनी छुट्टी के लिए अजीब-ओ-गरीब झूठ बोलते हुए और मन में उस झूठ के बोझ को झेलते हुए हम जीए जा रहे है। किसी पुलिया पर पैर लटकाए हम लोगों को तिकड़म भिड़ाकर, अपनी प्रतिभा को प्रस्तुत करके, खुद को आगे कैसे बढ़ाए के गुर को अपनाए हुए आगे बढ़ते हुए देख रहे हैं। हम बस वही उस पुलिया पर बैठे उस दुनिया का इंतज़ार कर रहे जहाँ असल को असल माना जाए जहाँ बिना किसी सुन्दर प्रस्तुतिकरण के हमारे मन और काम की सुन्दरता को परखा जाए... लेकिन, अंत में हम जानते है कि हम जाने भी दो के विनोद और सुधीर से ज्यादा कुछ नहीं है। सच के लिए ईमानदारी से कितना भी लड़ ले... अंत में हर ग़लती के लिए सज़ा भुगतकर भी हम मुस्कुराने ही वाले है...

1 comment:

pankaj ramendu said...

राजाराम.पु.जोशी जैसे साधारण लगने वाले इंसान जब अपने आदर्शों की बदौलत जीत जाते हैं या यूं कहों की जब उन्हे हारा हुआ मानने वाला किसी दूसरे विकल्प की तलाश में उनके पास आता है तब भी अंत में जीतने वाले राजाराम.पु.जोशी के हाथ में जो फूलों को गुलदस्ता आता है वो भी मुरझाया हुआ रहता है। जिसे पाकर भी वो खुश है। क्योंकि हम ढीठ हैं।