Monday, August 27, 2012

अफवाहें, आग से ज्य़ादा ज्वलनशील

बातें आग से ज्यादा ज्वलनशील होती है। जल्दी फैलती है। और, पानी या रेत किसी से नहीं बुझती है। कल हमारे घर के सामनेवाले घर में लगी आग और उसके बाद बने हालात से मैं इस नतीज़े पर पहुंची हूँ। शाम के छः बजे थे। घर से जैसे ही बाहर निकले तो देखा कि सामनेवाले फ्लैट में आग लगी है। वहाँ रहनेवाले दोनों लड़के डर के मारे बाल्कनी में खड़े हैं। पूछने पर कोई जवाब नहीं दे रहे है। जब जोर से डांट लगाई तब धीरे से बोले अंकल को और फायर ब्रिगेड को फोन कर दो सिलेन्डर में आग लग गई है। भुवन अपनी आदत के मुताबिक़ मदद के लिए भागा। मैं अपनी आदत के मुताबिक डरी हुई वहीं से खड़े होकर सब देखने लगी। थोड़ी देर में ही आग और भड़क गई। भुवन और आसपास के लड़के मदद के लिए रेत, बालू और न जाने क्या-क्या उपाय करने लगे। फायर ब्रिगेड और पुलिस को फोन कइयों ने कई बार फोन कर दिया था। इसी बीच मेरे पड़ोसी ने बोलना शुरु किया- सिलेन्डर तो बस फट ही जाएगा। छत तो टूट ही जाएगी। बिल्डिंग को भी कुछ हो सकता है। मेरी नज़रों के सामने भुवन उस फ्लैट में आग को काबू करने में लगा हुआ है और कान में ये सारी बातें सुनाई दे रही है। मेरा गुस्से का पारा एकदम चढ़ा। पड़ोसी लड़के को मैंने घूर के देखा और कहा- एक तो मदद करने की तुम्हारी हिम्मत नहीं है और यहाँ खड़े होकर बकवास कर रहे हो। या तो मदद करो या चुपचाप अंदर जाओ। लेकिन, ये तो बस शुरुआत थी बातों के बनने की। नीचे पुलिस और लोगों की भीड़ में और भी कई बातें घुल चुकी थी। बाल्कनी में दुबके लड़के को एक बुज़ुर्ग ने चोर घोषित कर दिया था। मैंने उन्हें भी चुप कराया। लेकिन, हम मुंह से बातें आग से भी ज्यादा जल्दी निकल रही थी। हर कोई दास्तानगोह बन चुका था। हमारे गांव में ऐसा हुआ, हमारे घर में ऐसा हुआ, चाची की मौसी के घर का किस्सा और ना जाने क्या-क्या... पुलिसवाले को आग से ज्यादा इस बात में दिलचस्पी थी कि वो घर किसी लड़के का है और इस सबके बाद वो किस की गर्दन पकड़ेगा। खैर, बीस मिनिट के नाटकीय घटनाक्रम के बाद आग बुझ गई। और, इसके दस मिनिट बाद फायर ब्रिगेड वहाँ पहुंची। छोटी सी गली में घुसना और फिर उसका निकलना बातों और किस्सों का अलग मुद्दा बना। देर रात तक आग और उसके बुझने को लेकर बिल्डिंग और गली में बातें होती रही। किस्से बनते रहे। आग तो बुझ चुकी थी लेकिन, बातें अभी-भी सुलग रही थी।  

2 comments:

fatoori said...

बहुत ही पैनी टिप्पणी है. ये बिलकुल सही बात कही है तुमने. पता नहीं और देशों के लोग क्या करते हैं, पर हमें तो बकैती का इतना नशा है कि कोई भी मौका नहीं छोड़ते. भले ही सामने कोई दुर्घटना या त्रासदी क्यों ना घाट रही हो. " आग तो बुझ चुकी थी लेकिन, बातें अभी-भी सुलग रही थी."

Bhuwan said...

वाकई ये घटनाक्रम और उसके बाद की चर्चा काफी दिलचस्प रही... सबके पास कोई ना कोई कहानी थी... जो दूसरों को जबरदस्ती सुनाना चाह रहा था।