Wednesday, September 12, 2012

पत्रकारिता पुरस्कार

मेरे लिखे हुए और मेरे कार्यक्रम की मेरे हितैषी इतनी पैनी नज़र से समीक्षा करते है कि हर बात एकदम सच्चाई से और बिना किसी चाशनी के मेरे सामने बोल देते है। उनकी इस साफगोई का ही नतीज़ा है कि मैं अपने-आप में कई सुधार कर पाई हूँ। खासकर अपने काम में। चार से मैं लगातार रिपोर्टिंग कर रही हूँ। मेरा कार्यक्रम हर हफ्ते ऑन एअर होता है। इन चार साल में ऐसे कुछ गिने-चुने लोग ही होगे जिन्होंने मेरा ये कार्यक्रम देखा है। और, जिन गिने-चुने लोगों ने देखा वो मेरे हितैषी है सो उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के उसकी समीक्षा की। समीक्षा का अगर असल असर होता तो मैं अब तक रिपोर्टिंग कर छोड़ चुकी होती। लेकिन, मैं इतना ज़रूर समझ चुकी हूँ कि मैं एक ऐसा काम करती हूँ जिसे करने के लिए मैं नहीं बनी हूँ। कुछेक जो तारीफ कर भी देते है वो साफ समझ आ जाती है कि मेरे मन को बहलाने के लिए कर रहे हैं। कुछ तो कार्यक्रम को देखते ही नहीं है केवल एंकरिंग देखकर महादेव या बालिका वधू पर स्वीच कर जाते है। पांच मिनिट की मेरी एंकरिंग शायद उन्हें मेरी हफ्तेभर की रिपोर्टिंग में लगी मेहनत से ज्यादा पसंद आती है। खैर, कड़ी और तीखी आलोचना के बीच, मैं भी ढीठ की तरह काम किए जा रही हूँ। इस बीच अचानक से कल मेरे कार्यक्रम की तारीफ हुई। अचानक से, अनजान इंसान के मुंह से तारीफ सुनकर मैं अचंभित थी। दरअसल कल मैट्रो में एक लड़की ने अचानक मुझसे पूछा क्या आप जर्नलिस्ट हो... मैंने कहा हाँ। तो बोली कि लोकसभा में हो ना... मैं आपका शो रेगुलर देखती हूँ... आपकी हिन्दी बहुत अच्छी है... मुझे देखना पसंद है... और न जाने क्या-क्या... मुझे तो जैसे कोई झटका सा लगा हुआ था। मैं केवल मुस्कुरा रही थी और उसकी इन बातों को सुन रही थी। मुझसे उस लड़की को धन्यवाद भी नहीं बोला जा रहा था। मैंने सबसे पहले आश्चर्य जताते हुए पूछा आप मेरा कार्यक्रम देखती है... आपको वो पसंद आता है... उसने मुस्कुरा कर कहा हाँ... मुझे बहुत अच्छा लगता है... और, फिर वही बातें जो पहली बोली दोहरा दी। मेरा स्टेशन आ गया और मैं उतर गई। मेरे लिए ये एक बहुत बड़ी बात है कि मेरे कार्यक्रम को लोग देखते भी है और पसंद भी करते हैं। तीखी आलोचनाओं के बीच एक अनजान के मुंह से हुई तारीफ की ये बारिश मुझे सुकून दे गई। आज तक मैंने किसी पत्रकारिता पुरस्कार के लिए आवेदन नहीं किया है लेकिन, मैट्रो के सफर के दौरान एक अनजान प्रशंसक के मुंह से निकले वो शब्द मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं।   

1 comment:

Bhuwan said...

वाकई यूं अचानक कोई अनजान... ऐसे तारीफ कर दे तो सुखद आश्चर्य होना स्वभाविक है... लेकिन मुझे इस बात का आश्चर्य होता है कि तुम्हें कैसे पता चलता है कि तुम्हारा कार्यक्रम सिर्फ तुम्हारे जानने वाले ही देखते हैं... ये तुम्हारा तुम्हारे खुद के कार्यक्रम के लिए बना पूर्वाग्रह है... शायद इसलिए जब उस लड़की ने तुम्हारी तारीफ की तो तुमने उससे पूछ लिया कि वो तुम्हारा कार्यक्रम देखती है ?